
मेदंता हॉस्पिटल की concall सर्च कर रहा था, क्यच पॉइंट्स देखे सोचा आपके साथ साझा करता हूँ. निम्नलिखित बिंदुओं में मेदान्ता हॉस्पिटल की मई और अगस्त 2025 की कॉनकॉल में बातें दी गई हैं जो कंपनी के लिए चुनौतियाँ हैं या उस पर दबाव बना सकती हैं: कंपनी का शेयर ख़रीदना या नहीं खरीदने के बारे मई कोई राय नहीं है.
प्रमुख बिंदु
- एआरपीओबी (प्रति बेड औसत राजस्व) में वृद्धि धीमी रही — मई कॉनकॉल में बताया गया कि एआरपीओबी में सिर्फ 1.3% की बढ़ोतरी हुई, वहीं विकसित हो रहे अस्पतालों (पटना, लखनऊ) में इसमें गिरावट आई, क्योंकि स्कीम मरीजों (आयुष्मान, सीजीएचएस आदि) का प्रतिशत बढ़ा है। ये स्कीम मरीज कम भुगतान करने वाले होते हैं, इससे एआरपीओबी पर दबाव रहता है।
- ईबीआईटीडीए मार्जिन पर दबाव — पुराने हॉस्पिटल्स में ईबीआईटीडीए मार्जिन में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ, बल्कि 1% की गिरावट देखी गई (वार्षिक तुलना में)। लखनऊ और पटना जैसे नए अस्पतालों में, राजस्व बढ़ा है लेकिन एआरपीओबी कम रहा, जिससे समग्र लाभप्रदता पर असर पड़ सकता है।
- निवेश (कैपेक्स) और ऋण (डेब्ट) की आवश्यकता — कंपनी विस्तार मोड में है और अगले 3-4 साल में लगभग ₹4000 करोड़ का पूंजी खर्च करेगी। इससे अल्पकालिक मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है और अधिक ऋण लेने की आवश्यकता हो सकती है, जो जोखिम हैं यदि नए प्रोजेक्ट समय पर वृद्धि नहीं दिखाते।
- स्कीम व्यवसाय का बढ़ना — आयुष्मान भारत, सीजीएचएस तथा अन्य स्कीमों के मरीजों का हिस्सा बढ़ रहा है, जिससे कम्पनी के लिए एआरपीओबी और मार्जिन में कमी का संकट उत्पन्न हो सकता है।
- शुल्क वृद्धि की सीमाएं — प्रबंधन ने स्पष्ट किया कि आगे चलकर शुल्क (टैरिफ) में सिर्फ नाममात्र बढ़ोतरी संभव है; अतः एआरपीओबी में अधिक वृद्धि की संभावना नहीं दिखती। इसका अर्थ है कि आगे चलकर टॉप-लाइन ग्रोथ मरीज संख्या पर ही निर्भर रहेगी।
- ऑपरेटिंग लीवरेज में देरी — विस्तारित होने वाले नए अस्पताल फिलहाल अपने प्रारंभिक चरण में हैं, अतः प्रारंभिक वर्षों में लाभ का मार्जिन कम रह सकता है जब तक मरीजों की संख्या में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं होती।
इन सभी बिंदुओं के कारण, अगले कुछ वर्षों में कंपनी की वृद्धि और लाभप्रदता पर दबाव बन सकता है, विशेष रूप से जब तक नये जोड़े गये बेड और हॉस्पिटल्स पूरी तरह से परिपक्व नहीं हो जाते.