जो भी परिस्थिति उत्पन्न हो, उसमें हम श्रीकृष्ण को लाकर बैठा दें Whatever situation arises, let us bring Shri Krishna in it

जो भी परिस्थिति उत्पन्न हो, उसमें हम श्रीकृष्ण को लाकर बैठा दें

यह लेख परम पूज्य श्री राधा बाबा (स्वामी चक्रधर जी महाराज) की पुस्तक ‘आस्तिकता की आधार-शिलाएं’ से लिया गया है.

जो भी परिस्थिति उत्पन्न हो, उसमें हम श्रीकृष्ण को लाकर बैठा दें और उन पर ही उस परिस्थिति का भार सौंप दें. तो परिणाम यह होगा कि उस परिस्थिति में यथोचित प्रकाश अवश्य-अवश्य-अवश्य-अवश्य मिल जाएगा. यानी कि श्रीकृष्ण की अनंत अपरिसीम कृप्या हमें अपनी ओर खींच रही है, इसका अनुभव भी हो जाएगा और साथ ही उस परिस्थिति का भी सुंदर समाधान अवश्य प्राप्त हो जाएगा. नहीं होता है, तो उसका विनम्र उत्तर यही है कि हम श्रीकृष्ण को बीच में ले ही नहीं आते हैं.

कोई भी विषम परिस्थिति हमारे सामने उपस्थित हुई हो, यदि सचमुच-सचमुच हम श्रीकृष्ण को बीच में ला रहे हों. तो उसका परिणाम यह निश्चित होगा कि उस परिस्थिति की तो हमें विस्मृति (भूल) हो ही जायगी, साथ ही मन, बुद्धि, चित्त में मात्र श्री कृष्ण का ही अस्तित्व छा जाएगा और थोड़ी देर बाद- हो सकता है कि एक दिन बाद, दो दिन बाद-हमारा जब उसकी और से मन हटेगा तो हमें भान यह होगा कि उस परिस्थिति का समाधान बड़े सुंदर ढंग से हो गया और साथ ही यह भान हो जाएगा कि सचमुच-सचमुच श्रीकृष्ण हमें अपनी ओर खींच रहे हैं.

किन्तु होता है सर्वथा इसके विपरीत. हम तो दिन रात परिस्थिति के चिन्तन में, तज्जनित ( उसके द्वारा उत्पन्न की हुई ) व्याकुलता में अपना समय बिता देते हैं कि ‘अरे अबतक नहीं हुआ. कैसे क्या होगा?’ मानो भगवान को ज्ञान ही नहीं है कि कब, क्या, कैसे करना चाहिए? यहाँ तो सरल विश्वास के साथ जब एक बार कह दिया तो दूसरी बार कहने कि आवश्यकता ही नहीं है. हमारा मन केन्द्रित हो जाना चाहिए, केवल उनकी ओर, जिसको भार सौंप दिया, वह जाने. हम क्यों चिंता करें. बिगड़े या बने, हमें क्या मतलब ? यह नितांत सत्य है कि आजतक जो अपना भार श्रीकृष्ण पर छोड़ गया है, छोड़ चूका है, उसको उस दरबार से कभी निराशा नहीं मिली है, नहीं मिली है, नहीं मिली है, नहीं मिलेगी, नहीं मिलेगी, नहीं मिलेगी. निराशा तो उसे ही मिलती है, मिलती है और मिलेगी, मिलेगी, जो भगवान पर न छोड़कर उस परिस्थिति अपना मन केन्द्रित किये हुए है और झूठ-मूठ कह रहा है कि ‘मैंने अपना सब भार भगवान पर छोड़ रखा है.’

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