प्रश्न- माता-पिताके आचरण तो अच्छे नहीं हैं, पर उनको सन्तान अच्छी निकलती है- इसका क्या कारण है?
उत्तर- प्रायः माँ-बाप का स्वभाव ही सन्तान में आता है, पर ऋणानुबन्ध से अथवा गर्भाधान के समय कोई अच्छा संस्कार पड़ने से अथवा गर्भावस्था में किसी सन्त-महात्मा का संग मिलने से श्रेष्ठ सन्तान पैदा हो जाती है। जैसे, हिरण्यकशिपु के यहाँ प्रह्लादजी पैदा हुए। प्रह्लादजीके विषय में आता है कि तपस्या में बाधा पड़नेसे हिरण्यकशिप स्त्री से मिलने के लिये घर आया तो गर्भाधान के समय बातचीत में उसके मुख से कई बार ‘विष्णु’ नाम का उच्चारण हुआ। जब उसकी स्त्री कयाधू गर्भवती थी, तब गर्भस्थ बच्चेको लक्ष्य करके नारदजी ने उसको भक्ति की बातें सुनायीं। इन कारणों से प्रह्लादजी के भीतर भक्ति के संस्कार पड़ गये। जैसे जल का रस मधुर ही होता है, पर जमीन के संग से जल का रस बदल जाता है, अलग-अलग हो जाता है (प्रत्येक कुएँ का जल अलग-अलग होता है), ऐसे ही संग के कारण मनुष्य के भाव बदल जाते हैं।
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.