शिखर धवन के हालिया इंटरव्यू में उनका दर्द और भावनाएँ साफ तौर पर झलकती हैं। उन्होंने खुलकर बताया कि कैसे अपने बेटे और बच्चों से दूर होना उनके लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हुआ, चाहे वह मैदान पर हों या मैदान के बाहर। इस लेख में, उनके अनुभव, विचार, और उस हिम्मत की कहानी को विस्तार से बताया गया है—कैसे बच्चे की कमी एक हंसते-हुए शख्स को भीतर से धीरे-धीरे खा गई, और कैसे उन्होंने उस खालीपन से निकलने की जद्दोजहद की।
शिखर धवन: मुस्कुराहट के पीछे की खामोशी
शिखर धवन को दुनिया फील्ड पर एक बेखौफ और हमेशा मुस्कुराते क्रिकेटर के तौर पर जानती है। लेकिन उनके जीवन के सबसे गहरे और कड़वे पल, उनकी मुस्कान के पीछे छुपे हैं—खासतौर पर बेटे से बिछड़ने की पीड़ा, जो उनकी पूरी शख्सियत को बदल गई।
धवन बताते हैं कि जब उनका तलाक हुआ, तो सबसे बड़ा दुख यही था कि वे अपने बेटे से बात नहीं कर सकते थे, उनका नंबर ब्लॉक्ड हो गया। बेटियों ने भी उनसे दूरी बना ली। वह कहते हैं—”मैं अपने बेटे को वापस लाने का सिर्फ एक जरिया है, वो है कनेक्शन, और उसमें भी पूरी कोशिश करता हूं”।
रिश्तों की दरार: एक पिता की तपिश
शिखर ने स्वीकार किया कि बेटियों और बेटे से अचानक दूर हो जाना उनके लिए बेहद दर्द भरा था। परिवार के साथ खुशी के पल अक्सर उनके जीवन से दूर हो गए। वह कहते हैं, “मेरी फैमिली को पता ही नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है, मैंने अकेले 28 टांके लगवाए, किसी ने पूछा तक नहीं।”
यह अकेलापन उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ने लगा, पर धवन ने इन सब के बावजूद aldri खुशी ढूंढने की ठानी। वे कहते हैं कि जीवन सिर्फ सर्वाइव करने के लिए नहीं, खुशी पाने के लिए है, और अगर खुश नहीं हैं, तो सब वेस्ट है।
खालीपन और उम्मीद: दूर बेटे के लिए दुआएं
धवन अपने बेटे के लिए हर रोज पॉजिटिव एनर्जी भेजते हैं। वह सफाई देते हैं—”फिजिकली नहीं हूं लेकिन स्पिरिचुअली वहां हूं। अगर मुझे उसको लाना भी है वापस तो बेस्ट तरीका यही है—पॉजिटिविटी”।
जब उनसे पूछा गया कि क्या कभी डर लगता है कि शायद कभी बेटे से मिले ही नहीं, धवन सहजता से कहते हैं, “मुझे डर नहीं लगता, मैं सोचता हूं, अगर नहीं भी मिलूंगा तो मालिक का शुक्र है, बेटा अच्छी सेहत में, अच्छी जिंदगी में है।”youtube
धवन के लिए अपने बच्चों से जुदा रहना किसी पहाड़ से कम नहीं था, मगर वे मानते हैं कि इमोशनल ताकत से इस पहाड़ को रुई सा हल्का किया जा सकता है।
वो खुशनुमा लम्हे, जो अधूरे रह गए
शिखर बताते हैं, “जब मैं रैना और यूसुफ पठान के बच्चों को देखता हूं तो फील करता हूं, काश मेरा बेटा भी उनके साथ बैट लेके खेलता…”।youtube
यह खालीपन उन्हें हर उस समय झकझोर जाता है, जब वे दूसरे खिलाड़ियों के बच्चों को देखते हैं या जब परिवार की खुशी से बाहर होते हैं। लेकिन, वे उस दर्द को साकारात्मक सोच के साथ संभालते हैं—”मैं कहता हूं बेटा छुट्टियां मनाने गया है, आ जाएगा। डिप्रेशन लूं तो बहुत नीचे चला जाऊंगा, लेकिन मैं blessings गिनता हूं।
हंसता-मुस्कुराता गब्बर: दर्द छुपाए भीतर
लोग अक्सर धवन के हंसते हुए चेहरे को देख उनके दुख को नहीं समझ सकते। खुद धवन मानते हैं, “दुनिया मेरे सारे साइड नहीं जानती, कुछ साइड मैं खुद छुपा लेता हूं।”youtube
वे मानते हैं कि परिस्थितियां ही इंसान को बदलती हैं। अपने बेटा-बेटियों के दूर जाने का शॉक लगा, मगर वे जल्दी ही खुद को बदलने की कोशिश करते हैं। “मैं दो दिन में आगे बढ़ जाता हूं, acceptance बढ़ जाती है अगर प्रैक्टिस करो जीवन में।”youtube
धवन मानते हैं कि उनकी सबसे बड़ी ताकत है जल्दी ही दर्द से निकलकर आगे बढ़ना। फिर चाहे करियर का झटका हो या परिवार का दर्द—हर बार आगे बढ़े हैं।
दूर बच्चों की कमी: रातों की तन्हाई
शिखर धवन ने स्वीकार किया कि जब वे अकेले थे, तो कई बार चुपचाप रो लेते थे। “कभी अकेले में रोया भी हूं—जो totally fine है मेरे लिए।”youtube
अकेलापन सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि शारीरिक भी था: कई बार चोटें लगीं, ऑपरेशन हुआ, लेकिन कोई परिवारवाला पूछने वाला नहीं था।
बेटे से दो साल से बात नहीं हो रही, फिर भी वे हर मुमकिन कोशिश करते हैं, “मैं ब्लॉक नंबर पर भी मैसेज करता हूं—पापा लव यू, पापा मिस यू—बस positivity भेजता हूं।”
इस खालीपन ने क्या बदल दिया?
धवन कहते हैं, “बेटे से separation ने मुझे बहुत बदल दिया, बहुत difficult था accept करना, लेकिन positivity के जरिए खुद को मजबूत किया।”youtube
वे चाहते हैं कि उनका बेटा उनसे एक बात ज़रूर सीखे—”अच्छा इंसान होना, मस्तमलंग रहना। जो energy है, वो pass on करूं।” साथ ही, वे बेटे को सिखाना चाहते हैं कि कैसे जिंदगी को खुश होकर जीना चाहिए।
बच्चो की कमी को कैसे जिया शिखर ने
धवन बार-बार बताते हैं कि बच्चों की कमी हमेशा उनकी जिंदगी में रहेगी, लेकिन उन्होंने उसे अपनी ताकत बनाना चुना है।
वे कहते हैं, मैच हो या जीवन—खुश रहना सीखना जरूरी है। बच्चों से दूर रह कर वे खुद में जिंदा दिली लाने की कोशिश की।
वे बेटे से दूर रहकर, उसकी तस्वीर देखकर, इंस्टाग्राम पर पोस्ट डालकर, खुद को उसके करीब रखने की कोशिश करते हैं। “कई बार सोचता हूं, बेटा 12 साल का हो जाएगा, कहीं तो google पर news पढ़ रहा होगा, मेरे मैसेज उसे पहुँचेंगे।”
पिता की सोच, बेटे की सीख
शिखर धवन अपने बेटे के लिए सबसे बड़ी सीख यही देना चाहते हैं कि कैसे जवाबदेही और संयम से जिंदगी जी जाए। वो aggression था, मगर उस अंगर को कैसे positivity में बदलना है, ये सिखाना चाहते हैं।
खुद धवन कहते हैं—”मैं response देना सिखाना चाहता हूं rather than reacting aggressively।”
बच्चों की कमी कैसे खाती रही शिखर को
शिखर धवन की कहानी दरअसल उन तमाम माता-पिता की है, जो किसी न किसी वजह से अपने बच्चों से दूर हो जाते हैं।
- बच्चों की कमी ने शिखर को रातों की तन्हाई दी; लेकिन उसी खालीपन में खुद को रिसेट करने, आगे बढ़ने और खुश रहने का नया नजरिया भी दिया।
- परिवार से दूर रहकर, धवन ने अकेलेपन को अपनी strength बना लिया।youtube
- बेटे की तस्वीरें, पुराने मैसेज, यादें—इनमें उन्होंने रूहानियत, positivity और acceptance ढूंढी।
- धवन की मुस्कान के पीछे उस खालीपन का असर तो रहता है, मगर वो कहते हैं—”जिंदगी में blessings गिनना बहुत जरूरी है, ordinary चीजें भी special हैं।”
बच्चे, पिता और मानसिक मजबूती
धवन ने इस पूरे दौर में अपने मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह काम किया, उसका ज़िक्र भी किया। वह अक्सर डायरी लिखते हैं, triggers पहचानते हैं, गुस्से को समझते हैं, और खुशी बढ़ाते हैं। अपने irritability quotient पर काम करके खुद को पहले से कहीं ज्यादा शांत और जिंदादिल बना लिया है।youtube
वह कहते हैं, “अब छोटी बातें मुझे irritate नहीं करतीं; happiness ज्यादा है, काम में focus है।”
क्रिकेटर का जीवन, फील्ड से बाहर का संघर्ष
शिखर मानते हैं कि उनका जीवन भी अब एक एथलीट का जीवन है—structure, discipline, morning warm-up—सबकुछ ठीक वैसे ही चलता है जैसे क्रिकेट के मैच में।
वे मानते हैं कि फील्ड पर मिल रही खुशी से कहीं ज्यादा अहम है फील्ड के बाहर बच्चों और परिवार से जुड़ाव। लेकिन खालीपन के बावजूद, positivity रखने की कोशिश करते हैं।
उम्मीद और हौसले के गीत
शिखर कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी ताकत है—”positivity और आगे बढ़ जाने की आदत”। चाहे हारा हो, चाहे परिवार से दुःख मिला हो, हर बार फिर उठकर नए जोश के साथ आगे बढ़े हैं।
उनकी कहानी, हर उस इंसान को नई दृष्टि देती है, जिसे जीवन में किसी रिश्ते की कमी खल रही हो।
निष्कर्ष: खालीपन था, मगर उन्होंने उसे ताकत बना लिया
शिखर धवन की कहानी दरअसल मुस्कान के पीछे की खामोशी, पिता के जज्बात और बेटे के प्रति चाहत की कहानी है। बच्चे की कमी अपने आप में एक दर्द है, लेकिन उसी दर्द को साकारात्मक सोच, मेहनत, और blessings गिनकर धवन ने अपनी strength बना लिया।
उनकी बातें हमें यही सिखाती हैं कि मुस्कराहट के पीछे दर्द भी हो सकता है, और उस दर्द को जीते हुए भी जिंदगी को खुश रहकर जिया जा सकता है। फिर चाहे बेटा पास हो या दूर—एक पिता हमेशा अपने बच्चे के लिए positivity, दुआएं और प्यारे लम्हे संजोते रहता है।
शिखर धवन की शादी ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली पेशेवर किकबॉक्सर आयेशा मुखर्जी से 30 अक्टूबर 2012 को दिल्ली के एक गुरुद्वारे में हुई थी। आयेशा बंगाली पिता और ब्रिटिश मां की बेटी हैं, उनका जन्म भारत में हुआ पर उन्होंने अपनी पढ़ाई और जीवन ऑस्ट्रेलिया में बिताया। आयेशा की यह दूसरी शादी थी—पहले उनकी शादी एक ऑस्ट्रेलियन बिजनेसमैन से हुई थी, जिससे उनकी दो बेटियाँ रिया और अलीया हैं। शिखर और आयेशा की पहली मुलाकात फेसबुक के जरिए हुई, जिसमें भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह ने इंटरवर्ड्यूस कराया था। दोनों ने तीन साल रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी कर ली।
तलाक और इसके पीछे की कहानी
धवन और आयेशा का वैवाहिक जीवन शुरू में सुखद रहा, 2014 में उनके बेटे जोरावर का जन्म हुआ। पर धीरे-धीरे दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं। मुख्य कारणों में आयेशा का लगातार ऑस्ट्रेलिया में रहना, संपत्ति के विवाद, और धवन से बेटे को दूर रखना शामिल रहा। खबरों के मुताबिक, आयेशा ने शिखर से मांग की थी कि ऑस्ट्रेलिया की तीन संपत्तियों में से 99% हिस्सा उनके नाम कर दिया जाए और अन्य संपत्तियाँ भी उनके साथ साझा की जाएं।
अंततः 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट ने शिखर धवन को ‘मानसिक क्रूरता’ के आधार पर तलाक दे दिया। कोर्ट ने पाया कि आयेशा ने शिखर को लंबे समय तक बेटे से दूर रखा, बार-बार संपत्ति के मामले को लेकर परेशान किया और शादी को बेमतलब बना दिया। कोर्ट ने बेटे जोरावर के लिए विजिटेशन राइट्स भी दिए लेकिन चूंकि बेटा अब ऑस्ट्रेलिया में रहता है, धवन के लिए उससे संपर्क रखना मुश्किल हो गया। खुद शिखर धवन ने कई बार सोशल मीडिया पर बेटे को मिस करने की भावनाएँ साझा की हैं, और बताया है कि आयेशा ने उन्हें हर माध्यम से ब्लॉक कर दिया है।
पृष्ठभूमि संक्षेप
- शिखर धवन : भारतीय क्रिकेटर, दिल्ली से।
- आयेशा मुखर्जी : पेशेवर किकबॉक्सर, बंगाली-ब्रिटिश मूल, ऑस्ट्रेलिया निवासी।
- शादी : 30 अक्टूबर 2012, दिल्ली।
- बच्चे : बेटा (जोरावर, 2014) और दो बेटियाँ (आयेशा के पहले पति से)।
- तलाक : 2023, ‘मानसिक क्रूरता’ के आधार पर, बेटे की कस्टडी अब भी विवादित।
शादी का आरंभ प्यार और विश्वास से हुआ था, मगर धीरे-धीरे रिश्तों में दूरियां, संपत्ति विवाद, बच्चों की कस्टडी और भावनात्मक पीड़ा ने रिश्ता तोड़ दिया।








