प्रश्न-माँ-बापका कोई सहारा न रहे तो ऐसी अवस्थामें विवाहित पुत्री माँ-बापका पालन कर सकती है या नहीं ?
उत्तर- वह असहाय माँ-बापकी सेवा कर सकती है। यदि विवाहित पुत्रीकी सन्तान है तो माँ-बाप उसके घरका अन्न-जल ले सकते हैं, उसके घरपर रह सकते हैं। परन्तु यदि उसकी कोई सन्तान नहीं है तो माँ-बापको उसके घर का अन्न-जल लेने का हुने अधिकार नहीं है।
माता-पिताने कन्याका दान (विवाह) कर दिया तो अब वे उसके घरका अन्न नहीं ले सकते: क्योंकि दान दी हुई वस्तुपर हिये द्वाताका अधिकार नहीं रहता। परन्तु कन्यासे सन्तान (पुत्र या पुत्री) किये होनेपर माता-पिता कन्याके यहाँका अन्न ले सकते हैं। कारण यह है कि कन्याके पति (दामाद) ने केवल पितृऋणसे मुक्त होनेके लिये ही दूसरेकी कन्या स्वीकार की है और उससे सन्तान होनेपर के वह पितृऋणसे मुक्त हो जाता है। अतः सन्तान होनेपर माता- ये पिताका कन्यापर अधिकार हो जाता है, तभी तो गोत्र न होनेपर भी दौहित्र अपने नाना-नानीका श्राद्ध-तर्पण कर सकता है।
यदि माता-पिता असहाय अवस्थामें हों तथा उनकी सेवा करने वाला कोई न हो तो उनकी सेवा करनेकी जिम्मेवारी पुत्रीपर ही है। अतः अपनी सन्तान न होनेपर भी विवाहित पुत्रीको उनकी सेवा करनी चाहिये। दूसरी बात, वर्तमान कानूनमें पिताकी सम्पत्तिमें पुत्र और पुत्रीका समान अधिकार माना गया है। अतः वर्तमान कानूनकी दृष्टिसे भी देखा जाय तो जब पुत्रीको सम्पत्ति देनेका अधिकार है तो फिर उससे सेवा लेनेका भी माता-पिता को अधिकार है!
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.