अंतरात्मा की आवाज़ और कामना-जनित आवाज़ का भेद: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का दृष्टिकोण

जानिए अंतरात्मा की आवाज़ और कामना-जनित मन की आवाज़ में अंतर कैसे करें। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन से गहराई से समझें आत्मा और मन की वास्तविक प्रेरणाओं को।

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6/12/20251 मिनट पढ़ें

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अंतरात्मा की आवाज़ और कामना-जनित आवाज़: कैसे करें पहचान?

मानव जीवन में अक्सर यह भ्रम रहता है कि हमारे भीतर जो आवाज़ उठ रही है, वह सचमुच आत्मा की है या केवल मन की इच्छाओं की उपज। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन (06:39 से 09:50 मिनट) में इस गूढ़ विषय को अत्यंत सरलता और स्पष्टता से समझाया है1।

1. अंतरात्मा की आवाज़ क्या है?

महाराज जी कहते हैं, "विपरीत या विकट परिस्थिति में जो आदेश या प्रेरणा हमारे भीतर से आती है, और वह शास्त्रों द्वारा प्रमाणित, सत्य, और मंगलकारी हो—वही अंतरात्मा की आवाज़ है।"
अर्थात्, जब कोई स्थिति सामने आती है और भीतर से ऐसा संकेत मिलता है कि यह कार्य उचित नहीं है, यह पाप है, यह शास्त्र-विरुद्ध है—तो वह आवाज़ अंतरात्मा की मानी जाएगी।
अंतरात्मा की आवाज़ हमेशा पवित्र, निष्पाप, और मंगलमय होती है। उसमें कभी भी वासना, स्वार्थ या इंद्रियजन्य सुख की प्रेरणा नहीं होती। वह परमात्मा की आवाज़ होती है, जो हमारे भीतर विराजमान है।

2. कामना-जनित आवाज़ क्या है?

इसके विपरीत, जो आवाज़ इंद्रियों को भोगों की ओर आकर्षित करे, "चलो यह खा लेते हैं, यह देख लेते हैं, यह भोग लेते हैं,"—वह मन की आवाज़ है।
मन की यह आवाज़ वासनाओं, इच्छाओं, और भोग की प्रेरणा से उत्पन्न होती है। इसमें शास्त्रों का कोई प्रमाण नहीं होता, न ही यह मंगलमय होती है।
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि मन की आवाज़ हमें अक्सर पाप की ओर ले जाती है, जबकि अंतरात्मा की आवाज़ हमें पवित्रता और धर्म की ओर प्रेरित करती है।

3. पहचानने का व्यावहारिक तरीका

  • शास्त्र प्रमाण: अंतरात्मा की आवाज़ हमेशा शास्त्र-सम्मत होती है। कोई भी आदेश या प्रेरणा जो शास्त्रों के विरुद्ध है, वह मन की उपज है।

  • निर्वासनिकता: अंतरात्मा की आवाज़ कभी भी वासना या भोग की ओर नहीं ले जाती।

  • अंतर्मन की पीड़ा: यदि कभी भूलवश मन की आवाज़ पर चलकर पाप हो जाए, तो अंतरात्मा में तुरंत पश्चाताप, जलन और गलती दोहराने का डर उत्पन्न होता है।

  • नाम जप का प्रभाव: महाराज जी कहते हैं, "जो नाम जप करता है, वही अंतरात्मा की आवाज़ को ठीक से पहचान सकता है।"

  • विपत्ति में समाधान: जब कोई विषम परिस्थिति आती है और समझ नहीं आता कि क्या करें, तो एकाग्र होकर भगवान से प्रार्थना करें—"हे प्रभु, मुझे सही मार्गदर्शन दें।"
    कभी-कभी समाधान भीतर से आता है, कभी शास्त्र या संत के वचन से, और कभी किसी व्यक्ति के माध्यम से। यह भी परमात्मा की प्रेरणा ही होती है।

4. उदाहरण द्वारा समझाइए

महाराज जी उदाहरण देते हैं:
"मान लीजिए आप किसी स्त्री की ओर दोष दृष्टि से देखते हैं, भीतर से आवाज़ आती है—यह गलत है। यह अंतरात्मा की आवाज़ है, क्योंकि शास्त्र भी यही आदेश देते हैं। लेकिन अगर मन कहे—कोई बात नहीं, ऐसा कर लो—तो वह कामना-जनित आवाज़ है।"

5. भगवान का आश्रय ही सर्वोत्तम उपाय

महाराज जी कहते हैं कि विपत्ति में सबसे पहले भगवान का आश्रय लें, उनसे प्रार्थना करें। जब कोई मार्ग न दिखे, तब नहीं, बल्कि विपत्ति आते ही प्रभु का स्मरण करें।
भगवान अवश्य मार्गदर्शन देंगे—भीतर से, शास्त्र से, संत के वचन से, या किसी व्यक्ति के माध्यम से।

6. निष्कर्ष

  • अंतरात्मा की आवाज़ शुद्ध, शास्त्र-सम्मत, और मंगलमय होती है।

  • कामना-जनित आवाज़ मन की इच्छाओं, वासनाओं और भोग से उत्पन्न होती है।

  • पहचान का सबसे बड़ा आधार है—क्या वह प्रेरणा शास्त्र-सम्मत है? क्या उसमें पवित्रता है? क्या उसमें स्वार्थ या वासना है?

  • नाम जप और भगवान का आश्रय लेने से अंतरात्मा की आवाज़ को पहचानना सरल हो जाता है।

अंतिम विचार

आध्यात्मिक साधना में सबसे बड़ा मार्गदर्शन हमारी अंतरात्मा की शुद्ध आवाज़ है। जब भी कोई निर्णय लें, उसे शास्त्र, संत, और अपने भीतर की पवित्र प्रेरणा की कसौटी पर परखें। मन की इच्छाओं और वासनाओं से ऊपर उठकर, अंतरात्मा की आवाज़ को सुनें—यही सच्चा धर्म है, यही जीवन की सफलता का रहस्य है1।