प्रश्नकर्ता
राधे राधे गुरुवर राधेश्याम चेला।
गुरुवर मेरे घर में तुलसी माता का चार साल से घर पे है, हुकुम लेकिन एक महीने से तुलसी माता सूख जाती है गुरुवर और लड्डू गोपाल जी के नित्य सेवा करते हमारा परिवार पूरा लड्डू गोपाल जी की सेवा में समर्पित है लेकिन क्या संकट है गुरुवर हमारे घर पे?
समझ में नहीं आ रहा।
नीचे श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी द्वारा उपदेशित पूरी वार्ता को वीडियो ट्रांसक्रिप्ट से शब्दश: हिंदी लेख के रूप में प्रस्तुत किया गया है:
राधे राधे गुरुवर राधेश्याम चेला।
गुरुवर मेरे घर में तुलसी माता का चार साल से घर पे है हुकुम लेकिन एक महीने से तुलसी माता सूख जाती है गुरुवर और लड्डू गोपाल जी के नित्य सेवा करते हमारा परिवार पूरा लड्डू गोपाल जी की सेवा में समर्पित है लेकिन क्या संकट है गुरुवर हमारे घर पे?
समझ में नहीं आ रहा। आप ज्यादा नेगेटिव मत सोचिए, तुलसी का होना घर में बहुत शुभ होता है और तुलसी का प्रयोग गोविंद की सेवा में हो जाए तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं होता है।
इसलिए प्रयासपूर्वक और तुलसी का बिरवा ले आएं और उन तुलसी के बिरवे को संभालें। उसमें जल समय पर दें। जिन दिनों में जल नहीं देना चाहिए, उन दिनों में न दें। और जिन दिनों में जल देना चाहिए, बड़ी श्रद्धा पूर्वक जल अर्पण करके दीप दान करें।
जी गुरु। ऐसा कहते हैं कि…
रजस्वला स्थिति में अगर कोई स्त्री तुलसी के सानिध्य में चली जाए तो लोग कहते हैं यह नहीं करना चाहिए, पर तुलसी भी सूख जाती है। हमारे यहां कहते हैं ना, रसोई नहीं बनानी चाहिए, मंदिर नहीं जाना चाहिए, पूजा नहीं करनी चाहिए। और इसका जीता जागता प्रमाण है कि रजस्वला स्थिति में अगर तुलसी के सानिध्य में देवी चली जाए तो तुलसी भी सूख जाती है।
तो उस कंडीशन में सावधानी रखनी चाहिए। अशुद्ध अवस्था में पुरुष को भी नहीं जाना चाहिए। जैसे टॉयलेट होकर आए और सीधे तुलसी के सानिध्य में चले गए। उसके बाद स्नान करना चाहिए। तो अगर हम अशुद्धता के साथ तुलसी मां के सानिध्य में चले जाएंगे तो तुलसी मां रुष्ट हो जाएगी।
तो प्रयास यह करें कि आप जो भी तुलसी का बेरवा लाएं, उसमें उनके दर्शन, उनकी सेवा में पवित्रता और शुद्धता रहनी चाहिए। ठीक है।
गुरु जी, लेकिन एक महीने के ऊपर तुलसी सूख जाती है। हर हर अशुद्धता का पूरा ध्यान रखते हैं गुरुवर…
अशुद्धता का नहीं, शुद्धता का ध्यान रखना है। अशुद्ध-अशुद्ध नहीं, शुद्धता का ध्यान रखते हुए कोई भी वहां पे अशुद्ध नहीं। मतलब एक महीने से ज्यादा तुलसी नहीं चलती है।
एक, सबसे ज़्यादा दो महीना जो आपके घर में।
तो घर कहां है आपका? यहां हम आपके यहां बाजू में ही गुरुदेव जी, ऊपर मीरा रोड। मीरा रोड ऊपर फ्लैट पे है कि नीचे है? प्लेट में गुरुवर।
हां तो वहां थोड़ा हवा का भी प्रेशर रहता होगा, उसका भी चक्कर रहता होगा। फिर भी थोड़ा ट्राई करो और ज़्यादा सेवा करो, ग्रीनरी रखो आसपास में, तो भगवान ने चाहा तो ठीक हो जाएगा।
है ना, कोई संकट तो नहीं है हमारे ऊपर वैसा।
चेला हो तुम हमारे?
नहीं गुरुवर, चेला अभी चेला नहीं हो। नहीं गुरुवर।
किसके चेला हो अभी तक?
गुरु दीक्षा नहीं ली गुरुवर, तो यही संकट है तुम्हारे ऊपर और क्या संकट होगा?
हां, हमारे यहां कहते हैं निगरे के हाथ से पानी नहीं पीना चाहिए।
और हमको तो लग रहा है तुलसी महारानी तुमको शिक्षा दे रही है कि तुम हमको रखे हुए हो और अपना कल्याण कर नहीं रहे हो। लड्डू गोपाल को रखे हुए, अपने कल्याण की चिंता नहीं है।
अब आया ना संकट, तुम्हारे मुंह से निकल के।
गुरु दीक्षा नहीं ली गुरुवर, नहीं ली ना। मेरे जाते ही कोई और संत महात्मा, कथाकार आए, सबसे पहला काम करो गुरु दीक्षा लो और फिर तुलसी महारानी को रखोगे तो शायद यहां भी कितने लोग फ्लैट में रहते हैं।
किस किस के घर में तुलसी है? दो महीने में सूखती है।
तो बेटा, तेरी भक्ति सूख रही है। तुलसी न सूख रही।
मैं बता रहा हूँ, ले ले गुरु मंत्र, ले ले गुरु मंत्र है।
तुम भी हरे-हरे रहोगे। तुलसी मैया भी हर आती रहेगी तुम्हारे घर में।
राधे राधे गुरु।
राधेश्याम गुरु जी, राधे राधे राधेश्याम…
गुरु जी, हमारे यहां ठाकुर जी का मंदिर बना है। जिसमें ठाकुर-ठाकुरानी का स्थापना हुआ।
वही बोल रहे हैं कि जो भक्त होते हैं, वह कभी भी मतलब ठाकुर जी को भोग लगा सकते हैं।
अच्छा, अपने घर में बना के वही मेरे मन में संतुष्टि नहीं हो रहा है। इसलिए अभी तक किया नहीं।
जब ऐसा होता है सूतक-पातक, तो मैं किसी और आदमी, वैष्णव से भोग लगवाता हूँ, बनवा के। मैं क्या करूं? आज्ञा करें।
आपने अब तक जो किया है वही करने योग्य है।
अपने द्वारा जब तक सामर्थ हो, भगवान के बदा बनाए हुए विधानों का खंडन नहीं करना चाहिए। भगवान को कोई सूतक नहीं, कोई पातक नहीं। यह सच है।
परंतु हम गृहस्थी हैं। जब शास्त्र कहते हैं, हमारे घर में सूतक लगने पर हम सेवा के योग्य नहीं रहते, हम पूजा के योग्य नहीं रहते, तो फिर हमें वह भी भगवान के ही आदेश है।
व्यास जी साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के अवतार हैं। तो व्यास जी ने जब हमको यह आदेश दिया है, तो हमें फिर उस आदेश का उल्लंघन करने का कोई राइट नहीं है।
भावना में तो हम लोग कुछ भी कर सकते हैं।
पर हम उस लेवल के भावना भक्त हैं क्या?
शबरी ने झूठे बेर खिलाए। हम उस शबरी के लायक हैं क्या?
शबरी ने गुरु की आज्ञा का 10,000 वर्ष तक प्रतीक्षा की, कि मेरे गुरु जी के वचन झूठे नहीं हो सकते।
और मैं कहूँ कि मैं आऊँगा, सुबह 9 बजे का समय निर्धारित कर दिया जाए कि सुबह आएंगे 9 बजे और दोपहर के दो-ढाई-तीन बजे तक न आए। क्या होगा?
कितने चेला रुके रहेंगे वहां? झूठे।
कितने चेला तो यूँ कह के चले जाएंगे, झूठ बोलते हैं गुरु जी भी।
फर्क है ना, वह त्रेता युग की है, हम कलयुग के हैं।
तो फर्क तो भावना में आता है। युग का प्रभाव होता है।
इसलिए हमें जितना भी व्यास जी ने आज्ञा दिया है, उस आज्ञा का पालन करना चाहिए।
और उचित व्यवस्था यही है कि उन दिनों में ब्राह्मण को बुलाकर, वैष्णव को बुलाकर, और से सेवा करवानी चाहिए।
स्वयं से सेवा नहीं करनी चाहिए। ठीक है जी गुरु जी, राधे राधे।
और कौन हाथ उठा रहे थे, भैया तुम भी हो जाओ खड़े पीछे, बोलो हेलो।
यह पूरी वार्ता श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के उपदेशों का सटीक हिन्दी रूपांतरण है, जिसमें घर की तुलसी के सूखने, उसकी सेवा, शुद्धता, गुरु दीक्षा, भक्ति की प्रक्रिया, सूतक-पातक के नियम, और भक्त की भावना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज का उत्तर– आप ज्यादा नेगेटिव मत सोचिए, तुलसी का होना घर में बहुत शुभ होता है और तुलसी का प्रयोग गोविंद की सेवा में हो जाए तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं होता है।
इसलिए प्रयासपूर्वक और तुलसी का बिरवा ले आएं और उन तुलसी के बिरवे को संभालें। उसमें जल समय पर दें। जिन दिनों में जल नहीं देना चाहिए, उन दिनों में न दें। और जिन दिनों में जल देना चाहिए, बड़ी श्रद्धा पूर्वक जल अर्पण करके दीप दान करें।
जी गुरु। ऐसा कहते हैं कि…
रजस्वला स्थिति में अगर कोई स्त्री तुलसी के सानिध्य में चली जाए तो लोग कहते हैं यह नहीं करना चाहिए, पर तुलसी भी सूख जाती है। हमारे यहां कहते हैं ना, रसोई नहीं बनानी चाहिए, मंदिर नहीं जाना चाहिए, पूजा नहीं करनी चाहिए। और इसका जीता जागता प्रमाण है कि रजस्वला स्थिति में अगर तुलसी के सानिध्य में देवी चली जाए तो तुलसी भी सूख जाती है।
तो उस कंडीशन में सावधानी रखनी चाहिए। अशुद्ध अवस्था में पुरुष को भी नहीं जाना चाहिए। जैसे टॉयलेट होकर आए और सीधे तुलसी के सानिध्य में चले गए। उसके बाद स्नान करना चाहिए। तो अगर हम अशुद्धता के साथ तुलसी मां के सानिध्य में चले जाएंगे तो तुलसी मां रुष्ट हो जाएगी।
तो प्रयास यह करें कि आप जो भी तुलसी का बेरवा लाएं, उसमें उनके दर्शन, उनकी सेवा में पवित्रता और शुद्धता रहनी चाहिए। ठीक है।
प्रश्नकर्ता
गुरु जी, लेकिन एक महीने के ऊपर तुलसी सूख जाती है। हर हर अशुद्धता का पूरा ध्यान रखते हैं गुरुवर…
अशुद्धता का नहीं, शुद्धता का ध्यान रखना है। अशुद्ध-अशुद्ध नहीं, शुद्धता का ध्यान रखते हुए कोई भी वहां पे अशुद्ध नहीं।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज का उत्तर
मतलब एक महीने से ज्यादा तुलसी नहीं चलती है।
एक, सबसे ज़्यादा दो महीना जो आपके घर में।
तो घर कहां है आपका? यहां हम आपके यहां बाजू में ही गुरुदेव जी, ऊपर मीरा रोड। मीरा रोड ऊपर फ्लैट पे है कि नीचे है? प्लेट में गुरुवर।
हां तो वहां थोड़ा हवा का भी प्रेशर रहता होगा, उसका भी चक्कर रहता होगा। फिर भी थोड़ा ट्राई करो और ज़्यादा सेवा करो, ग्रीनरी रखो आसपास में, तो भगवान ने चाहा तो ठीक हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता -कोई संकट तो नहीं है हमारे ऊपर वैसा।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज–
चेला हो तुम हमारे?
नहीं गुरुवर, चेला अभी चेला नहीं हो। नहीं गुरुवर।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज– किसके चेला हो अभी तक?
प्रश्नकर्ता – गुरु दीक्षा नहीं ली गुरुवर
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज– तो यही संकट है तुम्हारे ऊपर और क्या संकट होगा?
हां, हमारे यहां कहते हैं निगुरे के हाथ से पानी नहीं पीना चाहिए।
और हमको तो लग रहा है तुलसी महारानी तुमको शिक्षा दे रही है कि तुम हमको रखे हुए हो और अपना कल्याण कर नहीं रहे हो। लड्डू गोपाल को रखे हुए, अपने कल्याण की चिंता नहीं है।
अब आया ना संकट, तुम्हारे मुंह से निकल के।
प्रश्नकर्ता– गुरु दीक्षा नहीं ली गुरुवर
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज
नहीं ली ना। मेरे जाते ही कोई और संत महात्मा, कथाकार आए, सबसे पहला काम करो गुरु दीक्षा लो और फिर तुलसी महारानी को रखोगे तो शायद यहां भी कितने लोग फ्लैट में रहते हैं।
किस किस के घर में तुलसी है? दो महीने में सूखती है।
तो बेटा, तेरी भक्ति सूख रही है। तुलसी न सूख रही।
मैं बता रहा हूँ, ले ले गुरु मंत्र, ले ले गुरु मंत्र है।
तुम भी हरे-हरे रहोगे। तुलसी मैया भी हर आती रहेगी तुम्हारे घर में।
अन्य प्रश्नकर्ता का सवाल
राधे राधे गुरु जी।
राधेश्याम गुरु जी, राधे राधे राधेश्याम…
गुरु जी, हमारे यहां ठाकुर जी का मंदिर बना है। जिसमें ठाकुर-ठाकुरानी का स्थापना हुआ।
वही बोल रहे हैं कि जो भक्त होते हैं, वह कभी भी मतलब ठाकुर जी को भोग लगा सकते हैं।
अच्छा, अपने घर में बना के वही मेरे मन में संतुष्टि नहीं हो रहा है। इसलिए अभी तक किया नहीं।
जब ऐसा होता है सूतक-पातक, तो मैं किसी और आदमी, वैष्णव से भोग लगवाता हूँ, बनवा के। मैं क्या करूं? आज्ञा करें।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज
आपने अब तक जो किया है वही करने योग्य है।
अपने द्वारा जब तक सामर्थ हो, भगवान के बदा बनाए हुए विधानों का खंडन नहीं करना चाहिए। भगवान को कोई सूतक नहीं, कोई पातक नहीं। यह सच है।
परंतु हम गृहस्थी हैं। जब शास्त्र कहते हैं, हमारे घर में सूतक लगने पर हम सेवा के योग्य नहीं रहते, हम पूजा के योग्य नहीं रहते, तो फिर, वह भी भगवान के ही आदेश है।
व्यास जी साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के अवतार हैं। तो व्यास जी ने जब हमको यह आदेश दिया है, तो हमें फिर उस आदेश का उल्लंघन करने का कोई राइट नहीं है।
भावना में तो हम लोग कुछ भी कर सकते हैं।
पर हम उस लेवल के भावना भक्त हैं क्या?
शबरी ने झूठे बेर खिलाए। हम उस शबरी के लायक हैं क्या?
शबरी ने गुरु की आज्ञा का 10,000 वर्ष तक प्रतीक्षा की,
अब आज के समय कहे कि मेरे गुरु जी के वचन झूठे नहीं हो सकते।
और मैं कहूँ कि मैं आऊँगा, सुबह 9 बजे का समय निर्धारित कर दिया जाए कि सुबह आएंगे 9 बजे और दोपहर के दो-ढाई-तीन बजे तक न आए। क्या होगा?
कितने चेला रुके रहेंगे वहां?
कितने चेला तो यूँ कह के चले जाएंगे, झूठ बोलते हैं गुरु जी भी।
फर्क है ना, वह त्रेता युग की है, हम कलयुग के हैं।
तो फर्क तो भावना में आता है। युग का प्रभाव होता है।
इसलिए हमें जितना भी व्यास जी ने आज्ञा दिया है, उस आज्ञा का पालन करना चाहिए।
और उचित व्यवस्था यही है कि उन दिनों में ब्राह्मण को बुलाकर, वैष्णव को बुलाकर, और से सेवा करवानी चाहिए।
स्वयं से सेवा नहीं करनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता
ठीक है जी गुरु जी, राधे राधे।
यह पूरी वार्ता श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के उपदेशों का सटीक हिन्दी रूपांतरण है, जिसमें घर की तुलसी के सूखने, उसकी सेवा, शुद्धता, गुरु दीक्षा, भक्ति की प्रक्रिया, सूतक-पातक के नियम, और भक्त की भावना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है।







