नीचे दिए गए मामले का सारांश और फैसले कोआसान हिंदी भाषा में समझाया गया है।
परिचय
यह मामला श्री कुमार से जुड़ा है, जिन्होंने अपने बैंक खाते में ₹8,68,799 (लगभग 8 लाख रुपये) नकद जमा किए। इस जमा पर आयकर विभाग ने संदेह जताया और उन्हें नोटिस भेजा। विभाग ने इसे “अनुमानित व्यापारिक आय” मानते हुए उनके ऊपर टैक्स लगाया, जिससे विवाद शुरू हुआ।
मामला कैसे शुरू हुआ
- श्री कुमार ने अपने खाते में बड़ी रकम नकद जमा की।
- इस पर आयकर विभाग ने नोटिस भेजा और जांच शुरू की।
- विभाग ने धारा 44AD के अंतर्गत अनुमानित व्यापारिक आय मानकर टैक्स किया।
- श्री कुमार ने इसे चुनौती दी, परंतु आयकर अपीलीय प्राधिकरण [CIT(A)] ने भी आयकर अधिकारी के फैसले को सही ठहराया।
श्री कुमार का तर्क
- उन्होंने कहा कि विभाग सिर्फ उनके नकद जमा का स्रोत जांच सकता है, न कि व्यापारिक आय का अनुमान लगा सकता है।
- सेक्शन 44AD केवल व्यवसाय से आय के मामलों के लिए है, सीधे नगद जमा के लिए नहीं।
- यह जांच केवल “सीमित जांच” (limited scrutiny) के लिए थी, जिसमें अधिकारी केवल जमा हुए पैसे का स्रोत ही पूछ सकता है।
आयकर विभाग की कार्रवाई
- आयकर अधिकारी ने सीमा से बाहर जाकर, श्री कुमार की पूरी कमाई को नजर में रखते हुए, व्यवसाय से आय का अनुमान लगाकर ₹8,68,799 जोड़ दिया।
- उच्च अधिकारी (Principal CIT) की अनुमति के बिना जांच के दायरे को बढ़ाया गया।
अपील की प्रक्रिया
- श्री कुमार ने शुरुआत में आयुक्त (अपील) के पास अपील की, वहां हार गए।
- फिर उन्होंने इनकम टैक्स अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT), दिल्ली में अपील की।
- ITAT ने श्री कुमार के पक्ष में फैसला सुनाया, और विभाग की कार्रवाई को अवैध ठहराया।
ITAT का फैसला
- ITAT ने माना कि आयकर अधिकारी “सीमित जांच” के आदेश से बाहर चले गए थे।
- CBDT (Central Board of Direct Taxes) के निर्देश बहुत स्पष्ट हैं कि सीमित जांच केवल उसी विषय तक सीमित रहेगी, अन्यथा उच्च अधिकारी से अनुमति जरूरी है।
- एसेसिंग ऑफिसर द्वारा बिना अनुमति के नए मुद्दों पर विचार करना नाजायज है।
- ITAT ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले (PCIT Vs. Weilburger Coatings India Pvt. Ltd. 2023) का हवाला भी दिया जिसमें भी यही नियम बताया गया।economictimes.indiatimes
- ITAT ने यह भी कहा कि करदाताओं की उचित जांच और अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है कि अधिकारी अपनी सीमाओं में ही रहें।
- अंततः ITAT ने श्री कुमार के विरुद्ध जोड़ी गई राशि को हटा दिया और आदेश दिया कि यह जोड़ ‘अवैध’ है।
कानूनी और प्रशासनिक निर्देश
- CBDT के निर्देश स्पष्ट करते हैं कि सीमित जांच में नया मुद्दा जांचने के लिए Principal CIT की अनुमति लेनी जरूरी है।
- बिना अनुमति के यदि अन्य मुद्दों की जांच की जाए तो वह अवैध मानी जाती है, और ऐसे फैसले रद्द किए जा सकते हैं।
- कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश (PCIT v. Weilburger Coatings India Pvt. Ltd.) और सुख़धाम इंफ्रास्ट्रक्चर LLP की मिसाल दी गई।economictimes.indiatimes
इसका क्या मतलब है?
- यदि किसी को सीमित जांच के लिए नोटिस मिलता है, तो अधिकारी केवल उसमें लिखे गए मुद्दे ही देख सकते हैं।
- अधिकारी को यदि जांच विस्तारित करनी हो, तो उन्हें उच्च अधिकारी से लिखित अनुमति लेनी जरूरी है।
- यदि कोई भी नया मुद्दा (जैसे कि अनुमानित व्यापारिक आय) बिना अनुमति के जोड़ा जाता है, तो वह गलत है और करदाता उसे चुनौती दे सकते हैं।
आम नागरिक के लिए सीख
- यदि आपको बैंक खाते में जमा राशि के कारण सीमित जांच का नोटिस मिले, तो घबराएं नहीं।
- अधिकारी केवल उसी मुद्दे की जांच कर सकते हैं, जो नोटिस में लिखा है।
- अगर अधिकारी सवाल का दायरा बढ़ाते हैं, तो उनके फैसले को आप उच्च अदालत या ITAT में चुनौती दे सकते हैं।
- कोर्ट ने साफ कहा है कि करदाता के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिकारी को प्रक्रिया और नियमों का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष
श्री कुमार का मामला भारतीय आयकर कानून की प्रक्रिया, सीमित जांच और नागरिक अधिकार की एक अहम मिसाल है। आयकर विभाग को CBDT के निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए। यदि अधिकारियों ने अपनी सीमा पार की है, तो न्यायालय करदाता के अधिकारों को सर्वोपरि मानेगा और गलत जोड़ को हटा देगा।economictimes.indiatimes
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