ऐसा कौनसा व्रत, अनुष्ठान या तप है जिससे बड़े रोग का नाश हो जाए?

यह प्रवचन श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के द्वारा “ऐसा कौनसा व्रत, अनुष्ठान या तप है जिससे किसी अपने के बड़े रोग का नाश हो जाए?” विषय पर दिया गया है। इसमें पौराणिक शास्त्रों के अनुसार प्रारब्ध (कर्मों का लिखा भाग्य) और उसकी भोग्यता, संतों की अनुभव कथाएँ, भजन-नामजप की महिमा तथा वास्तविक समाधान क्या है, इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। ब्रह्म ऋषियों, सिद्ध संतों के दृष्टांत के साथ इस प्रसंग का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। निम्नांकित लेख में पूरी चर्चा का विवरण और विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।


प्रारंभ: प्रश्न की गूढ़ता

भक्ति मार्ग के पथिक जब जीवन में विपत्ति, बीमारी या बड़े रोग का सामना करते हैं, तब स्वाभाविक रूप से मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई ऐसा तप, व्रत या अनुष्ठान है जिससे अपने प्रियजन की बड़ी से बड़ी पीड़ा समाप्त हो जाए? इसी प्रश्न का उत्तर महाराज जी गहराई से देते हैं। वे सबसे पहले स्पष्ट करते हैं कि शास्त्रों के प्रमाण के अनुसार, शरीर के निर्माण काल में जो प्रारब्ध लिखा जाता है – वही मनुष्य को भोगना ही पड़ता है। प्रारब्ध की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं कि इसे मिटाया नहीं जा सकता।


प्रारब्ध: शास्त्रों का प्रमाण

महाराज जी ‘तस्मात् शास्त्रम प्रमाणम् ते’ का उल्लेख करते हैं — यानी शास्त्र ही प्रमाण है। वशिष्ठ जी जैसे महापुरुष भी सृष्टि की रचना कर सकते हैं; वे भरत जी से भी कहते हैं कि भावी (प्रारब्ध) प्रबल है, मुनि हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस आदि केवल प्रारब्ध से ही निर्धारित होते हैं। संत-महापुरुष बताते हैं कि प्रारब्ध के विधान में मनुष्य चाहकर भी कोई बदलाव नहीं कर सकता।


प्रारब्ध के अनुभव – संत-महापुरुषों की कथाएँ

प्रारब्ध के विधान को सिद्ध संत स्वयं भोगते हैं। रामकृष्ण परमहंस, साक्षात् सिद्ध महापुरुषों को भी अपने प्रारब्ध भोगने पड़े। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा – “अवश्य में उपभोक्तव्यम्” अर्थात् किया गया शुभ-अशुभ कर्म अवश्य भोगना पड़ता है।

एक कथा के माध्यम से महाराज जी बताते हैं, राधाकुंड के एक सिद्ध संत दिन-रात नामजप, भजन में लगन रखते थे। बुढ़ापे में एक दिन उनके पास दुर्गंधयुक्त व्यक्ति आया — प्रारब्ध के रूप में। उसने संत से कहा – बारह वर्ष तक आपको कुष्ठ रोग होगा, संत ने कहा हमारे पास समय नहीं, राधाकुंड की सेवा करनी है। प्रारब्ध ने छः वर्ष, फिर एक महीना, फिर केवल 24 घंटे का विकल्प दिया। संत ने स्वीकार किया, 24 घंटे कुटिया में रहकर अत्यंत पीड़ा झेली; पूरा शरीर सड़ गया, मगर प्रारब्ध उसी एक दिन में भोग लिया। यह सिद्ध संतों की सामर्थ्य का चरम उदाहरण है, परंतु सामान्य मानव को प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है।


प्रारब्ध का भूगतान और भजन की महिमा

मूल प्रश्न का उत्तर देते हुए महाराज जी स्वीकारते हैं कि प्रारब्ध को मिटाना असम्भव है, किन्तु भजन-नामजप से दुख सहने की सामर्थ्य मिल सकती है। वे कहते हैं कि भजन भगवान की प्राप्ति कराता है, पर प्रारब्ध को मिटाता नहीं; भजन से आवागमन (जन्म-मरण) के चक्र से मुक्ति तो मिल सकती है, मगर शरीर की पीड़ा सहनी ही पड़ती है।

भजन, नामजप और भगवान के आश्रय में मनुष्य अपने दुखों का सामना मुस्कराते हुए कर सकता है। भजन-साधना विपत्ति में जीने की शक्ति देती है, जीवन संघर्षमय है, किंतु भगवान की कृपा से भक्त विचलित न होकर कष्ट झेलता है।


प्रारब्ध का अंत: सिद्धांत, अनुभव और समाधान

महाराज जी आगे कहते हैं कि प्रारब्ध को मिटाने का कोई सिद्धांत नहीं है। बड़े-बड़े ब्रह्म ऋषियों — विश्वामित्र, वशिष्ठ, परशुराम, सनक, सनंदन, सनातन, सनत कुमार आदि — किसी का प्रारब्ध बदल या मिटा नहीं पाए; हर किसी को प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है। अगर किसी बाबा के पास जाने से, प्रार्थना करने से कष्ट दूर हो जाता है, तो वह प्रारब्ध का अंत है — चाहे बाबा के पास जाएं या ना जाएं। प्रारब्ध समाप्त हो गया तो ठीक हो जाएंगे, नहीं तो चाहे बड़ा से बड़ा बाबा या सर्जन, कोई भी ठीक नहीं कर सकता।

विशेष कार्य के अंतर्गत सिद्ध संत अपने शिष्यों या भक्तों के प्रारब्ध को स्वयं भोग कर समाप्त कर सकते हैं, लेकिन स्वयं को कष्ट सहना पड़ता है। वे स्पष्ट कहते हैं, “हां, बड़े-बड़े संत अपने जनों के प्रारब्ध भोगे हैं, कोई जान नहीं पाया।” किंतु यह मंत्र या व्रत का चमत्कार नहीं है, यह संत की स्वयं की तपस्या और सामर्थ्य का परिणाम है।


कार्य-कारण संबंध: शुभ अशुभ कर्म की भूमिका

महाराज जी विशेष रूप से सतर्क करते हैं कि शुभ अशुभ कर्मों का भूगतान करना ही पड़ेगा। भविष्य में पाप कर्म ना बन पाए — अन्यथा वही आगे चलकर दंड, पीड़ा, विपत्ति देगा। लोक-परलोक, जीवन-मरण सब प्रारब्ध के अनुसार चलता है। इसलिए शुभ कर्म करना, पाप से बचना, भजन-साधना करना यही समाधान है।


नामजप और तप-तपस्या: असली लक्ष्य

महाराज जी बार-बार जोर देते हैं कि प्रारब्ध को कोई नहीं काट सकता, केवल भगवान के नाम का आश्रय जीवन में सामर्थ्य देता है। भजन-साधना का असली उद्देश्य भगवान की प्राप्ति और कर्मबंधन से मुक्ति है। शरीर की किसी बड़ी बीमारी, रोग या कष्ट में भी श्रद्धा, विश्वास और भजन भगवान में जुड़ाव बनाए रखता है — चाहे प्रारब्ध जैसा भी हो, हमें भोगना ही पड़ेगा।


व्रत, अनुष्ठान और मानवीय उम्मीदें

समाज और आमजन में व्रत, अनुष्ठान या कथित चमत्कारी तप करने से तुरंत रोग का नाश होने की उम्मीद रहती है। महाराज जी शास्त्रों के आधार पर इस धारणा का खंडन करते हैं। उनका कहना है कि “भुलावे में मत पड़ना” — शरीर रचना के समय प्रारब्ध जो लिखा गया, उसे मिटाया नहीं जा सकता। कई बार लोग विभिन्न व्रत, अनुष्ठान और पूजाएं करते हैं, किंतु शास्त्रसम्मत अगर देखा जाए, तो कृष्ण भगवान के वचन हैं — किया कर्म बिना भोगे नहीं कटता।


संतों के द्वारा प्रारब्ध भोगना: कथाएँ और उदाहरण

ऐसे प्रसंगों में महाराज जी बताते हैं कि संत-महात्मा अपने शिष्यों की पीड़ा लेने के लिए उनका प्रारब्ध स्वयं भोग सकते हैं — जैसे एक माहात्म्य कथा में सिद्ध पुरुष ने अपने शिष्य के कष्ट को स्वयं भोगकर उसकी पीड़ा को समेट लिया। मगर जन-सामान्य के लिए यह संभव नहीं है। अधिकांश संत स्वयं कठिन तप, साधना, भजन में लगे रहते हैं; उनके जीवन में भी प्रारब्ध के फलभूत कष्ट, पीड़ा आती है।


प्रारब्ध और चमत्कारी आशयों की समीक्षा

भारतीय संस्कृति में प्रारब्ध का विधान अत्यंत स्पष्ट है। सिर्फ विशेष जोग्य संत ही किसी अपनजनों का प्रारब्ध भोग कर सकते हैं, किंतु वे भी उसको काट नहीं सकते, सिर्फ स्वयं सह सकते हैं। यह सिद्धांत सार्वजनिक रूप से असर नहीं करता। बाबा या महापुरुष, चाहे कितने बड़े हों, किसी के प्रारब्ध का अंत केवल भगवत् इच्छा से ही संभव है — कोई निश्चित विधि नहीं है।


शास्त्रीय नीति: कर्म का अनुसरण

शास्त्रों में बार-बार यही शिक्षा मिलती है — शुभ कर्म करो, पाप कर्म से बचो, जितना हो सके भजन-स्मरण में जीवन बिताओ, संयम और श्रद्धा बनाए रखो। अनुष्ठान, व्रत, तप से व्यक्ति को आत्मबल मिलता है, विपत्ति सहने की शक्ति बढ़ती है, जीवन में शांति आती है, भजन भगवान से अविचलित जुड़ाव बनता है। यही वास्तविक समाधान है।


समाज में चालू मान्यताओं और उनका निवारण

लोकमान्यता में अनेक बार लोग सोचते हैं कि “फला व्रत करने से ये रोग दूर हो जाएगा”, “फला बाबा के पास जाने से मुसीबत दूर हो जाएगी”, किन्तु शास्त्र प्रमाण अनुसार — प्रारब्ध का फल भुगतना ही पड़ता है। सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, व्रत, अनुष्ठान व्यक्ति को मानसिक बल देते हैं, मगर वैज्ञानिक या चमत्कारिक रूप से रोग का नाश करना संभव नहीं है।


भजन-साधना: परम समाधान

अंत में, महाराज जी उपदेश देते हैं कि भगवान से प्रार्थना करें कि दुख को सहन करने की सामर्थ्य मिले; भजन-साधना करते रहें ताकि जीवन में विपत्ति आए तो उसे सहजता से भोग सकें। भजन-साधना व्यक्ति को मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है, जीवन के संघर्ष में मुस्कुराते हुए जीने की शक्ति देती है। प्रारब्ध कर्म को काटना असंभव है, लेकिन भजन के द्वारा भगवान से जुड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।


भजन का वास्तविक फल: भगवान की प्राप्ति

भजन का मुख्य लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है, लौकिक कामनाओं की पूर्ति नहीं। प्रारब्ध का फल भोगना ही है, मगर भजन के द्वारा आत्मबल मिलता है, जीवन में संतुलन आता है। संत महापुरुषों का जीवन इसी का उदाहरण है — विपत्ति में भी भजन के बल पर विवेक और धैर्य से जीवन जीते हैं, प्रारब्ध के कठिन कष्ट को सहते हैं।


निष्कर्ष

किसी बड़े रोग या पीड़ा का नाश सिर्फ व्रत, अनुष्ठान, या कथित चमत्कारी तप से संभव नहीं है, इसकी कोई शास्त्र सम्मत विधि नहीं है। प्रारब्ध शास्त्रीय विधान अनुसार भोगना ही पड़ता है। भजन-साधना, नामजप, भगवान से प्रार्थना यही जीवन संघर्ष में सामर्थ्य देती है। बिना भोगे किया गया शुभ-अशुभ कर्म नहीं कटता। संत अपने जनों का प्रारब्ध भोग सकते हैं, किंतु आमजन इसका समाधान नहीं कर सकते। भजन के द्वारा भगवद् प्राप्ति, आत्मबल, संयम और धैर्य ही जीवन का असली सहारा है।


महत्वपूर्ण बिंदु

  • प्रारब्ध के विधान को मिटाना असम्भव है, शास्त्र प्रमाण यही है।
  • भजन-साधना से दुख सहने की सामर्थ्य मिलती है।
  • सिद्ध महापुरुष अपने शिष्यों का प्रारब्ध स्वयं भोग सकते हैं, मगर उन्हें भी पीड़ा सहनी पड़ती है।
  • कर्म का फल भोगना ही पड़ता है, बिना भोगे शुभ-अशुभ कर्म नहीं कटता।
  • संत-महापुरुषों, ब्रह्म ऋषियों ने भी प्रारब्ध को नहीं मिटाया।
  • व्रत, अनुष्ठान, तप से जीवन को मानसिक बल मिलता है, मगर चमत्कारिक तौर पर रोग का नाश सम्भव नहीं है।
  • भजन-नामजप का मुख्य उद्देश्य भगवान की प्राप्ति और कर्मबंधन से मुक्ति है।
  • प्रारब्ध का फल भोगना आवश्यक है — भगवान से प्रार्थना करें, भजन करें, शुभ कर्म करें, यही जीवन का मार्ग है।

इस प्रकार, यह पूरा प्रवचन और उसका विश्लेषण भारतीय अध्यात्म, शास्त्र और संतमत की दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है — जिसमें जीवन की कठिनाई, रोग, प्रारब्ध तथा उसका वास्तविक समाधान भजन-साधना, भगवान के नाम और कर्म के सिद्धांत में निहित है।youtube

  1. https://www.youtube.com/watch?v=neUsAbbr1WM

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करना बहुत जरुरी है. हर कोई बड़ी रकम से प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकता लेकिन हजार रुपए से म्यूच्यूअल फण्ड निवेश कर सकता है. इसमें निवेश कोई फ्रॉड नहीं कि म्यूच्यूअल फण्ड आपका पैसा लेकर भाग जाएंगे. ऐसा नहीं होता. इसलिए डरे ना.

Related Posts

कौन सी चीज है जिसके पीछे इंसान जन्म से मृत्यु तक दौड़ता रहता है ?

महाराज जी का उत्तर– सुख, शांति और प्यार यह जो तीन शब्द कहे-इन पर विचार करो. हर व्यक्ति सुख चाहता है-जिसमें दुख ना मिला हो. हर व्यक्ति शांति चाहता है…

Continue reading
लड़ते-लड़ते थक गया हूँ, हस्तमैथुन की लत नहीं छूट रही

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का शब्दशः उत्तर नीचे प्रस्तुत है, विस्तारपूर्वक – राधा राधा श्री राधा वल्लभ लाल की समस्त संत हरि भक्तन की श्री वृंदावन धाम…

Continue reading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You Missed

हम आपको बताएंगे कौन सी पनीर खानी चाहिए

हम आपको बताएंगे कौन सी पनीर खानी चाहिए

MrBeast कैसे बना, खुद MrBeast से जाने

MrBeast कैसे बना, खुद MrBeast से जाने

ऐसा कौनसा व्रत, अनुष्ठान या तप है जिससे बड़े रोग का नाश हो जाए?

ऐसा कौनसा व्रत, अनुष्ठान या तप है जिससे बड़े रोग का नाश हो जाए?

इंदिरापुरम-वैशाली बेस्ट, मकान-दुकान खरीदने या रेंट के लिए संपर्क कर सकते हैं

इंदिरापुरम-वैशाली बेस्ट, मकान-दुकान खरीदने या रेंट के लिए संपर्क कर सकते हैं

कौन सी चीज है जिसके पीछे इंसान जन्म से मृत्यु तक दौड़ता रहता है ?

कौन सी चीज है जिसके पीछे इंसान जन्म से मृत्यु तक दौड़ता रहता है ?

Gold Price : Chandni Chowk का माहौल और क्या बोले Expert?

Gold Price : Chandni Chowk का माहौल और क्या बोले Expert?