
Here is a detailed article raised in the video Bhajan Marg”, then presenting Maharaj Ji’s answer in a pointwise, verbatim way, interspersed with explanations. Each portion is carefully referenced and expanded per instructions.youtube
प्रश्न और महाराज जी का उत्तर (संत-महात्मा पूरा जीवन… Bhajan Marg)
प्रश्न 1 :
संत महात्मा पूरा जीवन भगवान की भक्ति में लगा देते हैं तभी उन्हें कृष्ण की प्राप्ति होती है, निकुंज वास मिलता है। लेकिन हम सामान्य लोग, जो मृत्यु लोक के पापी हैं, जो अनजाने में हर दिन न जाने कितना पाप कर लेते हैं, कुछ ही माला करते हैं, संतों के मुकाबले दुःखद तौर पर बहुत कम नाम जपते हैं… तो क्या हमें भगवान की प्राप्ति संभव है?
महाराज जी का उत्तर (वर्ड टू वर्ड पॉइंटवाइज):
- “कभी आपने सोचा है—अगर डिब्बे का कनेक्शन इंजन से हटा दिया जाए तो कई किलोमीटर चल पाएगा एक चक्का नहीं घूमेगा नहीं। धीरे-धीर रुक जाएगा, अपनी कोई शक्ति नहीं।”
- “अगर ब्रेक लगा के और इंजन हटा दिया जाए तो जो 2500 डिब्बे जुड़े होते हैं, उनकी कोई सामर्थ्य है? बिल्कुल नहीं।”
- “अगर कनेक्शन कर दिया जाए तो जो इंजन जहां पहुंचेगा वही डिब्बा पहुंचते हैं कि नहीं?”
- “हम सब डिब्बा हैं। आचार्य गुरु और संत इंजन है।”
- “हम अपना कनेक्शन कर लेते हैं, उनके चरणों की शरणागति ले लेते हैं। हम उनसे अपना संबंध मान लेते हैं।”
- “हमारे गुरु हैं, हमारे स्वामी हैं, हमारे सर्वस्व हैं। तो हजारों को ले जाते हैं। इंजन में दो ही तीन होते हैं, लेकिन डिब्बा में 100-150 बैठे होते हैं।”
- “हर डिब्बा में सौ-सौ, डेढ़ सौ। दो-तीन सौ एक ट्रेन में जाते है।”
- “ऐसे संत जो भगवान के भजन में लगे हैं, हजारों को समेट के ले जा सकते हैं।”
- “जो अधिकारी नहीं है उनको भी—सा तरति सा तरति सा तरति सा लोक तारति, वो स्वयं तर जाते हैं, तर जाते हैं और लोक को तार देते हैं।”
- “मम भक्ति युक्त भनम पुनः (भगवद गीत)।
- “ऐसा मन में नहीं सोचना चाहिए कि वो इतना भजन करते हैं, तो हम कैसे भगवान को प्राप्त करेंगे?”
- “हम ऐसे प्राप्त कर सकते हैं जैसे पूरा फुल पावर इंजन में होता है। डिब्बे में कोई पावर नहीं, पर डिब्बे का कनेक्शन इंजन में होने से वो उसी पावरफुल इंजन के बराबर दौड़ता है। जहां इंजन पहुंचता है वहां वो डिब्बा भी पहुंच जाता है।”
- “हम लोग एक डिब्बे की तरह हैं। 500 लोग हमसे जुड़े हैं, लेकिन हममें अपनी सामर्थ्य भी नहीं कि कोई स्वयं कल्याण कर ले।”
- “हम आचार्य के शरणागत हैं। हम गुरुदेव की शरणागत हैं। वो भगवान पावर दिए हैं आचार्य को, गुरुदेव को। वो हमें पार कर देते हैं।”
- “हमारी सामर्थ्य नहीं कि एक मच्छर को भी भगवत प्राप्ति करा सकें।”
- “बस उनकी कृपा से, वो जिन हजारों को चयन करते हैं, उनकी कृपा से पास हो जाते हैं, पार हो जाते हैं।”
- “हमें विश्वास रखना चाहिए, संत पर, भगवान के आचार्यों पर, पूर्ण विश्वास करके उनकी आज्ञा के अनुसार चलना चाहिए, तो भगवान की प्राप्ति हो जाती है।”
प्रश्न 2 :
अगर हमारा संबंध आचार्य, गुरु, भगवान, स्वामी से है, तो क्या भगवान का कल्याण अपेक्षित है? क्या केवल संबंध से भगवत प्राप्ति हो सकती है?
महाराज जी का उत्तर (वर्ड टू वर्ड पॉइंटवाइज):
- “हमारा संबंध हो जाए कि हमारे गुरुदेव हमारे स्वामी हैं, हमारे भगवान हैं, हमारे इष्ट हैं।”
- “इसी संबंध से भगवान कल्याण कर देते हैं। संबंध में बड़ी ताकत है।”
- “हमारा जन्म जन्मांतर से भगवान से संबंध है। मैं ईश्वर का अंश हूँ।”
- “लेकिन यह भूल चुका हूँ और नए-नए संबंध बना लिए, भगवान का जो हमारा पुराना संबंध था, उसको भूल गया।”
- “इसीलिए हमारी दुर्गति हो रही है।”
- “गुरु के संग से भगवान के संबंध की होते हुए भी नवीन स्मृति जागृत हो जाती है।”
- “जब यह आया—मेरे भगवान मित्र, मेरे भगवान पति, मेरे भगवान पुत्र, मेरे भगवान स्वामी, तब भगवान की प्राप्ति सहज हो जाती है।”
प्रश्न 3 :
जैसे मीरा जी कहती हैं ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा ना कोई’, तो ऐसा अनुराग, ऐसा प्रेम, श्री जी के प्रति कैसे होगा? क्या हम मीरा जी बन सकते हैं?
महाराज जी का उत्तर (वर्ड टू वर्ड पॉइंटवाइज):
- “अब हम मीरा जी तो नहीं बन सकते, लेकिन मीरा जी के बताए हुए मार्ग पर चलकर जहां मीरा जी पहुंचीं वहां पहुंच सकते हैं।”
- “मीरा जी तो नहीं बन सकते, हलाहल विष का कटोरा पीकर के नाचती रही।”
- “मीरा जी जैसे हम नहीं बन सकते, मीरा जी तो मीरा जी हैं, अद्वितीय हैं।”
- “उनके जैसे जीवन में कभी किसी भोग को स्वीकार नहीं किया उस देवी ने।”
- “मेरे सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई, मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा ना कोई।”
- “बचपन से लेकर पूरा जीवन निर्वाह उसी प्रेम में। हम तो उनके चरणों की धूल की भी याचना करते हैं।”
- “मीरा जी बनना तो बात अलग है, मीरा जी कृपा कर दें तो थोड़ा सा श्रीकृष्ण प्रेम जागृत हो जाए, थोड़ा भगवन नाम में प्रीति हो जाए—यही बहुत बड़ी बात है।”
- “उन देवी जैसी हमारी सामर्थ्य किसी की नहीं है, क्योंकि वह बचपन से लेकर भगवान के प्रेम में मतवाली मीरा।”
- “हम लोग तो बचपन से लेकर भोगों में मतवाले हो रहे हैं, संसार में मतवाले हो रहे हैं।”
- “वह केवल बचपन से जब से सुधि संभाली, तब से श्रीकृष्ण प्रेम, श्रीकृष्ण प्रेम के सिवा कोई अन्य बात नहीं।”
- “तो मीरा जी जैसा बनने की बात, प्रह्लाद जी जैसा बनने की बात, ध्रुव जी जैसा बनने की बात नहीं कह सकते।”
- “हाँ, इन महापुरुषों की कृपा से, इनके बताए मार्ग पर चलने की सामर्थ्य हमें आ जाए, ऐसी बात मांग सकते हैं।”
प्रश्न 4 :
भगवत प्राप्ति का सबसे सरल, सबल मार्ग क्या है?
महाराज जी का उत्तर (वर्ड टू वर्ड पॉइंटवाइज):
- “नाम जप करो। नाम जप में सारी सामर्थ्य विराजमान है।”
- “नाम जप नहीं तो फिर सब नाटक हो जाएगा।”
- “नाम जप करो, खूब नाम जप करो—कृष्ण कृष्ण कृष्ण, राधा राधा राधा, राम राम राम राम।”
- “देखो, आप में सामर्थ्य आती है कि नहीं। खूब नाम जप करो।”
विस्तार एवं प्रत्याय
संतों के जीवन और साधारण मनुष्य
महाराज जी ने समझाया कि साधारण मनुष्य का मार्ग कठिन अवश्य है किंतु वह असंभव नहीं है। संत-महात्मा अपना समस्त जीवन भगवान की शरण में समर्पित करके ही भगवान को प्राप्त करते हैं; किन्तु साधारण भक्त भी यदि सच्चे गुरु, संत, आचार्य के चरणों की शरणागति स्वीकार कर लें, उनके चरणों से संबंध स्थापित कर लें, उनकी आज्ञा अनुसार जीवन जीयें, तो उनके साथ उनका कल्याण निश्चित है। ठीक वैसे ही जैसे ट्रेन के डिब्बे अपनी स्वयं की सामर्थ्य से नहीं, इंजन की शक्ति से गंतव्य तक पहुंचते हैं।
संबंध और आचार्य-गुरु की महिमा
भगवान से संबंध बनाना—यह सर्वोच्च साधन है। गर्व, अहंकार, बाह्य भोगों का त्याग कर, जब मनुष्य अपने इष्ट, गुरु, आचार्य के प्रति सम्बन्ध को जागृत करता है, पूर्ण विश्वास करता है, उनके आदेशों का पालन करता है, तो भगवान की कृपा प्राप्त होती है। भगवान से संबंध टूटने पर ही जीव दुर्गति को प्राप्त होता है, और वही गुरु आजीवन भगवान से संबंध का स्मरण कराते हैं। जब यह स्मृति नित्य जागृत हो जाती है कि ‘भगवान मेरे सब कुछ हैं,’ तब प्राप्ति सहज ।youtube
मीरा जी, प्रह्लाद जी, ध्रुव जी के आदर्श
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि मीरा जी जैसी दिव्य अनुभूति, प्रह्लाद जी जैसा तप, ध्रुव जी जैसी दृढ़ता सब के लिए नहीं, किन्तु उनके बताए मार्ग — भगवान के प्रति अनुराग, सम्पूर्ण प्रेम, निष्कामता, त्याग — को सभी अपना सकते हैं। ऐसे महापुरुषों के जीवन की विधि अपनाकर भगवान के पावन प्रेम तक पहुंचना संभव है ।youtube
भगवत प्राप्ति का सरल उपाय : नाम जप
समस्त उपदेश का सार है—भगवत नाम का जप। महाराज जी ने कहा, “नाम जप करो। नाम जप में सारी सामर्थ्य विराजमान है।” यदि नाम जप नहीं, तो सभी अन्य साधन केवल आडम्बर हैं। केवल नाम का जप, श्रद्धा से, प्रेम से, समर्पण भाव से—यह सबसे सुलभ, सबल, सफल मार्ग है।youtube
महाराज जी के कहे अनुसार (एक सूत्र रूपी सार)
- स्वयं की सामर्थ्य नहीं, संत-गुरु से संबंध होने पर भगवान की प्राप्ति।
- गुरु आचार्य इंजन हैं, हम डिब्बे। कनेक्शन जोड़ दो, गंतव्य मिल जायेगा।
- भगवान से संबंध की स्मृति, भरोसा, उनकी आज्ञा—यही कल्याण का राजमार्ग।
- मीरा जी, ध्रुव, प्रह्लाद जैसे बन पाना कठिन, किन्तु मार्ग उन्हीं का।
- सबसे बड़ा औजार : भगवद नाम का जप। इसमें संपूर्ण शक्ति है।
- नाम जप करो, शरणागत रहो, वही भगवत प्राप्ति का मार्ग है।
अंत में
पूरे प्रवचन के हर प्रश्न और उत्तर को विषद विस्तार एवं उनके शब्दानुसार पूर्णता देने का प्रयास किया गया है। संतों की शरण, आचार्य का कृपापात्र होना, भगवान से अपने संबंध को स्मरण करके पुनर्प्रतिष्ठित करना, और निरंतर भगवद नाम का जप यही भगवत प्राप्ति के अभेद्य उपाय हैं.youtube