प्रश्न – माता-पिता ने बचपनमें ही बच्चोंको अच्छी शिक्षा नहीं दी; अतः पुत्र माता-पिताकी सेवा नहीं करते तो इसमें पुत्रों का क्या दोष ?
उत्तर-माता-पिताके द्वारा अच्छी शिक्षा नहीं दी गयी तो उसके दोषी माता-पिता हुए; क्योंकि उन्होंने अपने कर्तव्यका पालन नहीं किया। परन्तु माता-पिताके दोष देखना पुत्रका कर्तव्य नहीं है। उसको तो अपना कर्तव्य देखना चाहिये। दूसरोंका कर्तव्य देखनेसे मनुष्य अपने कर्तव्यसे पतित हो जाता है। दूसरोंका कर्तव्य देखना ही भयंकर दोष है। गीताने भी अपने-आपसे अपना उद्धार करनेकी, अपना सुधार करनेकी बात कही है*; क्योंकि अच्छी शिक्षा मिलनेपर भी धारण तो खुद ही करेगा। अच्छी शिक्षा मिलनेपर भी बालक उसको धारण न करे, बिगड़ जाय तो यह दोष स्वयं बालकका ही है। अतः अपना उद्धार और पतन मुख्यतासे अपनेपर ही लागू होता है।
* उद्धरेदात्मनात्मानं
नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ (गीता ६।५)
‘अपने द्वारा अपना उद्धार करे, अपना पतन न करे; क्योंकि आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है।’
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.