प्रश्न – आज कल स्कूलोंका वातावरण अच्छा नहीं है; अतः बच्चों की शिक्षा के लिये क्या करना चाहिये ?
उत्तर- बच्चे को प्रतिदिन घरमें शिक्षा देनी चाहिये। उसको ऐसी कहानियाँ सुनानी चाहिये, जिनमें यह बात आये कि जिसने माता-पिता की बात मानी, उसकी उन्नति हुई और जिसने माता- पिता का कहना नहीं किया, उसका जीवन खराब हुआ। जब बच्चा पढ़ने लग जाय, तब उसको भक्तों के चरित्र पढ़ने के लिये देने चाहिये। बच्चे से कहना चाहिये कि ‘बेटा। हरेक बच्चेके साथ स्वतन्त्र सम्बन्ध मत रखो, ज्यादा घुल-मिलकर बात मत करो। पढ़कर सीधे घरपर आ जाओ। बड़ोंके पास रहो। कोई चीज खानी हो तो माँ से बनवाकर खाओ, बाजार की चीज मत खाओ; क्योंकि दूकानदारका उद्देश्य पैसा कमाने का होता है कि पैसा अधिक मिले, चीज चाहे कैसी हो। अतः वह चीजें अच्छी नहीं बनाता। बचपन में अग्नि तेज होनेसे अभी तो बाजारकी चीजें पच जायँगी, पर उनका विकार (असर) आगे चलकर मालूम होगा।’
गृहस्थ को चाहिये कि वह धन कमानेकी अपेक्षा बच्चोंके चरित्रका ज्यादा खयाल रखें; क्योंकि कमाये हुए धनको बच्चे ही काममें लेंगे। अगर बच्चे बिगड़ जायँगे तो धन उनको और ज्यादा बिगाड़ेगा ! इस विषयमें अच्छे पुरुषोंका कहना है- ‘पूत सपूत त क्यों धन संचै ? पूत कपूत तो क्यों धन संचै ?’ अर्थात् पुत्र सपूत होगा तो उसको धनकी कमी रहेगी नहीं और कपूत होगा तो संचन किया हुआ सब धन नष्ट कर देगा, फिर धनका संचय क्यों करें ?
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.