जन्म से अमीर या गरीब क्यों? जानिए श्री प्रेमानंद महाराज से पूर्व जन्म के कर्मों का रहस्य
क्यों कुछ लोग जन्म से ही अमीर होते हैं और कुछ गरीब? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अनुसार पूर्व जन्म के कर्म, पुण्य, दान, भक्ति और जीवन का असली महत्व क्या है। पढ़ें पूरी व्याख्या और समाधान।
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प्रश्न “मुकेश कुमार जी राधे-राधे महाराज जी, गुरु जी कुछ जीवात्मा इस पृथ्वी पर जन्म लेते ही करोड़पति बन जाता है, कुछ जीवात्मा पूरा गरीब रहता है, ऐसा कौन सा पिछले जन्म का पूर्व का कर्म होता है?
उत्तर-
योगभ्रष्ट
पूर्व का कर्म होता है। उसने दान पुण्य किए, उसने तीर्थवगाहन किया, उसने दूसरों को उपकार किया, तो भगवान स्वयं गीता जी में कहते हैं कि जो मेरा भक्त पूर्णता को प्राप्त नहीं हो पाया, भगवत प्राप्ति नहीं कर पाया, और वह वासनाओं के जाल में बंधा रहा, मेरी भक्ति करता है, दान पुण्य करता है, पर उसके अंदर कामनाएं हैं, भोगों की इच्छाएं हैं, तो फिर उसको अगला जो जन्म होता है, वो श्रीमान, धनवान, कुलवान के यहां जन्म होता है, और भरपूर वासनाओं की पूर्ति की सामग्री होती है। और मेरी कृपा से वहां जन्म लेने पर भी वो भोगों में फंसता नहीं, उसकी पूर्व की साधना उत्थान करती है, और वह भजन में तन्मय होकर के समस्त भोगों का त्याग करके दूसरे जन्म में मेरे को प्राप्त कर लेता है। उसे योगभ्रष्ट कहते हैं।
तो जो पुण्यत्मा पुरुष होते हैं, वो ऐसे जन्मते हैं कि सब सुख सुविधाएं ऐसे हैं, और वहां जन्म लिया और उनको सत्संग मिला, और वो उन सब भोगों से वैराग्य प्राप्त करके भगवान को प्राप्त।
कुछ केवल पुण्य आत्मा होते हैं, भजनानंदी नहीं
कुछ ऐसा भी होता है कि पूरा जीवन ऐसे ही निकल जाए भोगों में, वो केवल पुण्य आत्मा होते हैं, भजनानंदी नहीं होते, उनका भगवान से, भजन से संबंध नहीं है। उन्होंने दान पुण्य किया, बहुत वृद्ध जनों की सेवा की, तीर्थ गान किया, भक्ति नहीं की, तो फिर पूरा जीवन भोगों में व्यतीत हो चला जाएगा। वैसे नष्ट जीवन माना जाता है, इसे कोई महत्वपूर्ण जीवन नहीं माना। महत्वपूर्ण जीवन माना जाता है जो भगवान से जुड़ा हुआ होता है, उसी का जीवन महत्वपूर्ण है।
‘हरि भगत हृदय नहीं आनी, जीवित सो समान ते प्राणी।’ इस मनुष्य जीवन की मान्यता है – हरि भज, हरि भज, छान न मान नर तन को। मति बछ रे, मति बछ तिल तिल धन को। यह मनुष्य जीवन का जो मान है, इस मनुष्य जीवन की जो महिमा है, वह भगवान के भजन की है, ना कि धन की। धन कोई महत्वपूर्ण बात नहीं, महत्वपूर्ण बात है भगवान से चित्त जुड़ा है कि नहीं जुड़ा है, यह बात है।”
निष्कर्ष
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएँ और धन जीवन का असली उद्देश्य नहीं हैं। असली उद्देश्य है – भगवान की भक्ति और सत्संग में मन लगाना। पूर्व जन्म के पुण्य कर्म से भले ही कोई अमीर या कुलीन घर में जन्म ले ले, लेकिन अगर भक्ति नहीं है, तो जीवन का असली लाभ नहीं मिलता।
जन्म से अमीर या गरीब होना पूर्व जन्म के कर्मों का फल है।
दान, पुण्य, तीर्थ, सेवा आदि से पुण्य आत्मा को अच्छा जन्म मिलता है।
भजन और भक्ति के बिना केवल भोगों में जीवन व्यर्थ है।
असली महत्व भगवान से जुड़े जीवन का है, न कि धन-संपत्ति का।
सारांश:
धन-दौलत, कुलीनता या गरीबी – ये सब हमारे पूर्व जन्म के कर्मों पर आधारित हैं। लेकिन जीवन का असली उद्देश्य भगवान की भक्ति है, जिससे आत्मा को शांति और परम आनंद की प्राप्ति होती है1