अब T-Bills में निवेश होगा और भी आसान: RBI की नई ऑटो-बिडिंग सुविधा और NACH मैंडेट का पूरा तरीका, T-BILL में कितना मिलता है रिटर्न ? FD, BOND से कितना है बढ़िया ?

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परिचय

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने खुदरा निवेशकों के लिए ट्रेज़री बिल्स (T-Bills) में निवेश की प्रक्रिया को और भी सरल बना दिया है। RBI के रिटेल डायरेक्ट पोर्टल और ऐप पर अब ऑटो-बिडिंग सुविधा उपलब्ध है, जिसमें निवेशक NACH मैंडेट सेट करके अपने निवेश को ऑटोमेटिक कर सकते हैं। यह सुविधा खासतौर पर उन निवेशकों के लिए फायदेमंद है जो बार-बार मैन्युअल बिडिंग से बचना चाहते हैं और अपने निवेश को एक बार सेट करके ऑटोमेटिकली जारी रखना चाहते हैं।

RBI रिटेल डायरेक्ट ऑटो-बिडिंग सुविधा क्या है?

ऑटो-बिडिंग एक ऐसी सुविधा है जिसमें आप अपनी पसंद के अनुसार T-Bills की अवधि, बिड राशि, बिडिंग की आवृत्ति और नियम की वैधता तय कर सकते हैं। एक बार आपने ये नियम बना दिए, तो जब भी संबंधित T-Bill की नीलामी का विंडो खुलेगा, आपकी बिड अपने आप लग जाएगी। इसके लिए आपको NACH मैंडेट एक्टिवेट करना जरूरी है, जिससे आपके बैंक खाते से पैसे ऑटोमेटिकली डेबिट हो जाएंगे।

NACH मैंडेट क्या है और क्यों जरूरी है?

NACH (National Automated Clearing House) एक ऑटोमेटेड पेमेंट सिस्टम है, जिससे आपके बैंक खाते से निर्धारित राशि ऑटोमेटिकली डेबिट हो जाती है। RBI रिटेल डायरेक्ट पोर्टल पर ऑटो-बिडिंग के लिए NACH मैंडेट अनिवार्य है। इस मैंडेट को सेट करने के बाद, जब भी आपकी ऑटो-बिडिंग कंडीशन पूरी होगी, आपके खाते से पैसे अपने आप कट जाएंगे और निवेश पूरा हो जाएगा।

ऑटो-बिडिंग के मुख्य फीचर्स

  • सिर्फ T-Bills के लिए: यह सुविधा फिलहाल केवल ट्रेज़री बिल्स के लिए उपलब्ध है।

  • दो तरह के नियम:

    • जनरल रूल: आप T-Bill की अवधि, बिड राशि, बिडिंग फ्रीक्वेंसी और वैधता तय कर सकते हैं।

    • कैलेंडर रूल: आप RBI द्वारा जारी क्वार्टरली कैलेंडर में से किसी भी T-Bill नीलामी को चुन सकते हैं और बिड राशि निर्धारित कर सकते हैं।

  • रूल्स में बदलाव: आप अपने बनाए गए नियमों को कभी भी संशोधित, रोक या रद्द कर सकते हैं।

  • फंडिंग: आपके रजिस्टर्ड बैंक खाते से NACH मैंडेट के जरिए फंड्स डेबिट होंगे। खाते में पर्याप्त बैलेंस होना जरूरी है।

  • नोटिफिकेशन: हर एक्शन (रूल क्रिएशन, संशोधन, रद्दीकरण, बिड प्लेसमेंट आदि) पर आपको ईमेल और SMS अलर्ट मिलेंगे।

  • मैन्युअल बिडिंग भी जारी: ऑटो-बिडिंग के अलावा मैन्युअल बिडिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।

ऑटो-बिडिंग कैसे काम करता है? (स्टेप-बाय-स्टेप गाइड)

    रिटेल डायरेक्ट अकाउंट बनाएं:सबसे पहले RBI रिटेल डायरेक्ट पोर्टल या ऐप पर अपना अकाउंट बनाएं।बैंक अकाउंट लिंक करें और NACH मैंडेट सेट करें:अपने बैंक अकाउंट को पोर्टल से लिंक करें और NACH मैंडेट एक्टिवेट करें। इसके लिए आपको नेट बैंकिंग या डेबिट कार्ड की जरूरत होगी।

  1. ऑटो-बिडिंग रूल सेट करें:

    • आप T-Bill की अवधि (91 दिन, 182 दिन, 364 दिन), बिड राशि, बिडिंग फ्रीक्वेंसी और वैधता तय करें।

    • चाहें तो कैलेंडर रूल के तहत किसी खास नीलामी को चुनें।

  2. फंड्स की उपलब्धता सुनिश्चित करें:आपके बैंक खाते में पर्याप्त राशि होनी चाहिए, जिससे बिडिंग के समय पैसे ऑटोमेटिकली डेबिट हो सकें।नोटिफिकेशन प्राप्त करें:हर एक्शन पर आपको SMS और ईमेल के जरिए सूचना मिलती रहेगी।रूल्स को कभी भी संशोधित, रोक या रद्द कर सकते हैं:निवेश की जरूरत के अनुसार आप अपने बनाए गए नियमों में बदलाव कर सकते हैं।

    निवेशकों के लिए फायदे

    • समय की बचत: बार-बार मैन्युअल बिडिंग करने की जरूरत नहीं।

    • ऑटोमेटिक निवेश: एक बार रूल सेट करने के बाद निवेश अपने आप होता रहेगा।

    • फ्लेक्सिबिलिटी: रूल्स को कभी भी एडजस्ट किया जा सकता है।

    • उच्च लिमिट: NACH के जरिए 1 करोड़ तक की बिडिंग संभव, जबकि UPI में यह लिमिट 5 लाख है।

    • सुरक्षा: RBI के पोर्टल पर पूरी तरह सुरक्षित प्रक्रिया।

    T-Bills क्या हैं?

    ट्रेज़री बिल्स (T-Bills) भारत सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले शॉर्ट टर्म डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स हैं, जो 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन की अवधि में आते हैं। ये ज़ीरो कूपन सिक्योरिटीज होती हैं, यानी इनमें ब्याज नहीं मिलता, बल्कि इन्हें डिस्काउंट पर जारी किया जाता है और मैच्योरिटी पर फेस वैल्यू मिलती है। निवेशक का रिटर्न इश्यू प्राइस और फेस वैल्यू के अंतर के बराबर होता है।

    UPI बनाम NACH: कौन सा बेहतर?

    • NACH में लिमिट ज्यादा: UPI से 5 लाख तक, NACH से 1 करोड़ तक निवेश संभव।

    • पेमेंट प्रोसेस: UPI में बिड के समय ही पैसा कट जाता है, NACH में नीलामी से दो दिन पहले।

    • लॉगिन प्रोसेस: NACH में बार-बार लॉगिन की जरूरत नहीं, UPI में हर बार लॉगिन और पेमेंट करना होता है।

    निष्कर्ष

    RBI की ऑटो-बिडिंग और NACH मैंडेट सुविधा ने T-Bills में निवेश को बेहद आसान, तेज़ और सुविधाजनक बना दिया है। निवेशक अब अपनी निवेश प्राथमिकताओं के अनुसार रूल्स सेट कर सकते हैं और बिना किसी मैन्युअल प्रक्रिया के, पूरी तरह ऑटोमेटिक तरीके से अपने निवेश को जारी रख सकते हैं। यह सुविधा खासकर उन लोगों के लिए वरदान है, जो रेगुलर इनकम के लिए T-Bills में बार-बार निवेश करना चाहते हैं।

    ट्रेज़री बिल्स (Treasury Bills) क्या हैं?

    ट्रेज़री बिल्स (T-Bills) सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स या अल्पकालिक ऋणपत्र (शॉर्ट टर्म डेट इंस्ट्रूमेंट्स) हैं। भारत सरकार इन्हें अपनी शॉर्ट टर्म फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए जारी करती है। वर्तमान में ट्रेज़री बिल्स तीन अवधियों में जारी किए जाते हैं — 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन।

    ट्रेज़री बिल्स की मुख्य विशेषताएँ:

    • शून्य कूपन प्रतिभूति (Zero Coupon Securities): इन पर कोई ब्याज (इंटरेस्ट) नहीं मिलता।

    • डिस्काउंट पर जारी: इन्हें फेस वैल्यू (मूल्य) से कम कीमत पर जारी किया जाता है और मैच्योरिटी पर पूरी फेस वैल्यू मिलती है।

    • लाभ: निवेशक को जो लाभ मिलता है वह इश्यू प्राइस (जारी कीमत) और मैच्योरिटी पर मिलने वाली फेस वैल्यू के अंतर के बराबर होता है।

    उदाहरण:

    अगर 91 दिन की ट्रेज़री बिल की फेस वैल्यू ₹100 है और यह ₹98.2 पर जारी होती है, तो निवेशक को मैच्योरिटी पर ₹100 मिलेंगे। यानी, निवेशक का लाभ ₹100 – ₹98.2 = ₹1.8 होगा।

    बॉन्ड यील्ड की गणना में डे काउंट कन्वेंशन (Day Count Convention) क्या है?

    डे काउंट कन्वेंशन वह तरीका है जिससे किसी बॉन्ड या इंस्ट्रूमेंट के लिए होल्डिंग पीरियड (कितने दिन तक रखा) की गणना की जाती है, ताकि उस पर मिलने वाले ब्याज या यील्ड की सही-सही गणना की जा सके। अलग-अलग डे काउंट कन्वेंशन अपनाने से ब्याज की गणना में फर्क आ सकता है, इसलिए बाजार में एक मानक कन्वेंशन अपनाना जरूरी है।

    भारत में अपनाए जाने वाले कन्वेंशन:

    1. बॉन्ड मार्केट: 30/360 कन्वेंशन

    • इसमें हर महीने के दिन 30 माने जाते हैं और साल के दिन 360 माने जाते हैं, भले ही असल में महीने या साल में कितने भी दिन हों।

    • इसका उपयोग लॉन्ग टर्म बॉन्ड्स और डेट इंस्ट्रूमेंट्स की ब्याज गणना में किया जाता है।

    2. मनी मार्केट: Actual/365 कन्वेंशन

    • इसमें असल में जितने दिन होते हैं, वही लिए जाते हैं (जैसे 91 दिन, 182 दिन आदि), और साल में कुल 365 दिन माने जाते हैं।

    • ट्रेज़री बिल्स चूंकि मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स हैं, इसलिए इन पर Actual/365 कन्वेंशन लागू होता है।

    सारांश

    • ट्रेज़री बिल्स सरकार द्वारा जारी शॉर्ट टर्म, बिना ब्याज वाले (डिस्काउंट पर जारी) सिक्योरिटीज हैं, जो 91, 182 और 364 दिन की अवधि में आती हैं।

    • डे काउंट कन्वेंशन ब्याज या यील्ड की गणना के लिए मानक तरीका है।

    • बॉन्ड मार्केट: 30/360 कन्वेंशन

    • मनी मार्केट (जैसे T-Bills): Actual/365 कन्वेंशन

    इससे निवेशकों को अपने निवेश पर मिलने वाले लाभ की सही गणना करने में मदद मिलती है।

    ट्रेज़री बिल्स (T-Bills) पर रिटर्न और तुलना

    ट्रेज़री बिल्स (T-Bills) में निवेश पर मिलने वाला रिटर्न उनकी अवधि और बाजार स्थितियों पर निर्भर करता है। वर्तमान में (जून 2025 तक), भारत में T-Bills के यील्ड इस प्रकार हैं:

    • 91-दिन (3 महीने) के T-Bill: लगभग 5.31% प्रति वर्ष5

    • 182-दिन (6 महीने) के T-Bill: लगभग 5.93% प्रति वर्ष3

    • 364-दिन (1 वर्ष) के T-Bill: लगभग 6.55% प्रति वर्ष9

    T-Bills, FDs और बॉन्ड्स की तुलना

    1. लाभप्रदता (Profitability):

    • T-Bills vs FDs:

      • FDs आमतौर पर अधिक रिटर्न देते हैं (सीनियर सिटिज़न के लिए 7-8.8% तक)24

      • T-Bills का रिटर्न FDs से कम होता है, लेकिन टैक्स एफिशिएंसी के कारण नेट रिटर्न बेहतर हो सकता है।

    • T-Bills vs बॉन्ड्स:

      • बॉन्ड्स लॉन्ग-टर्म में अधिक रिटर्न दे सकते हैं (कॉरपोरेट बॉन्ड 7-9%)67

      • T-Bills शॉर्ट-टर्म में बेहतर हैं, लेकिन लॉन्ग-टर्म में बॉन्ड्स अधिक फायदेमंद हो सकते हैं।

    2. सुरक्षा (Safety):

    • T-Bills: भारत सरकार द्वारा बैक्ड, इसलिए ज़ीरो रिस्क माने जाते हैं।

    • FDs: ₹5 लाख तक DICGC बीमा के तहत सुरक्षित, लेकिन NBFC FDs में जोखिम अधिक हो सकता है।

    • बॉन्ड्स: सरकारी बॉन्ड सुरक्षित, लेकिन कॉरपोरेट बॉन्ड में क्रेडिट रिस्क होता है।

    3. लिक्विडिटी (Liquidity):

    • T-Bills: सेकेंडरी मार्केट में आसानी से बेचे जा सकते हैं, इसलिए अधिक लिक्विड26

    • FDs: प्रीमैच्योर विदड्रॉल पर जुर्माना लग सकता है28

    • बॉन्ड्स: लॉन्ग-टर्म होने के कारण कम लिक्विड, बेचने पर प्राइस फ्लक्चुएशन का रिस्क।

    4. टैक्सेशन (Taxation):

    • T-Bills: रिटर्न पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है (STCG: 20% इंडेक्सेशन के साथ)9

    • FDs: ब्याज आय पर इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स + TDS लगता है48

    • बॉन्ड्स: इंटरेस्ट इनकम टैक्सेबल + कैपिटल गेन टैक्स (होल्डिंग पीरियड पर निर्भर)।

    निष्कर्ष: क्या चुनें?

    शॉर्ट-टर्म (1 साल से कम):T-Bills बेहतर विकल्प हैं क्योंकि इनमें रिस्क नहीं, टैक्स बेनिफिट्स हैं, और लिक्विडिटी अधिक है।

  3. मीडियम/लॉन्ग-टर्म (1+ साल):

    • सुरक्षा चाहिए तो FDs (बड़े बैंकों में) या गवर्नमेंट बॉन्ड्स चुनें।

    • अधिक रिटर्न चाहिए तो कॉरपोरेट बॉन्ड्स पर विचार करें, लेकिन क्रेडिट रेटिंग जरूर चेक करें।

  4. अंतिम सलाह:

    • T-Bills में निवेश RBI रिटेल डायरेक्ट पोर्टल, बैंक या डीमैट अकाउंट के माध्यम से कर सकते हैं।

    • FDs या बॉन्ड्स चुनते समय बैंक/कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ जरूर चेक करें।

    • डायवर्सिफिकेशन अपनाएं: कुछ फंड T-Bills, कुछ FDs और कुछ बॉन्ड्स में निवेश करें।

    महत्वपूर्ण: बाजार की स्थितियां बदलती रहती हैं, इसलिए निवेश से पहले करंट यील्ड/रिटर्न जरूर चेक करें।

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