“पिछले 10 साल में प्रॉपर्टी के दाम, आमदनी और मिडिल क्लास का टूटा घर का सपना: क्या म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प था?”

पिछले 10 साल में प्रॉपर्टी के दाम और आमदनी में औसत बढ़ोतरी

प्रॉपर्टी के दाम कितने बढ़े?

  • 2015 से 2025 के बीच भारत में औसतन प्रॉपर्टी के दाम लगभग 67% बढ़े हैं1

  • कुछ बड़े शहरों (जैसे दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, हैदराबाद) में यह बढ़ोतरी और तेज रही है, जहां पिछले कुछ सालों में सालाना 9-10% तक की ग्रोथ देखी गई है23

  • 1991 से 2021 तक, प्रॉपर्टी के दाम 15 गुना बढ़े जबकि आमदनी सिर्फ 5 गुना3

  • औसत वार्षिक वृद्धि: 9.3% (1991-2021), पिछले दशक में भी यही ट्रेंड जारी रहा है।

आम आदमी की औसत आय कितनी बढ़ी?

  • 2014-15 में प्रति व्यक्ति आय: ₹86,647

  • 2022-23 में प्रति व्यक्ति आय: ₹1,72,000 — यानी लगभग 99% वृद्धि (दोगुनी)।

  • औसत वार्षिक वृद्धि: 5.6% (2014-2019, वास्तविक)।

  • यानी, आमदनी जितनी तेजी से बढ़ी, प्रॉपर्टी के दाम उससे कहीं ज्यादा तेजी से बढ़े हैं।

मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना क्यों मुश्किल हो रहा है?

1. प्राइस-टू-इनकम रेशियो (PTI) का बढ़ना

  • भारत में औसत PTI 11 है — यानी एक साधारण घर खरीदने के लिए परिवार को अपनी पूरी 11 साल की आय लगानी पड़ेगी।

  • अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार PTI 5 होना चाहिए, यानी 5 साल की आय में घर मिल जाना चाहिए।

  • अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में PTI 5-6 है, यानी वहां घर खरीदना आमदनी के हिसाब से ज्यादा आसान है।

2. प्रॉपर्टी की कीमतें आमदनी से कहीं ज्यादा बढ़ीं

  • पिछले 10 साल में प्रॉपर्टी के दाम 67% बढ़े, जबकि आमदनी करीब 99% बढ़ी — लेकिन आधार छोटा था, और घर की कीमतें पहले से ही आमदनी के मुकाबले बहुत ज्यादा थीं।

  • 30 साल में प्रॉपर्टी के दाम 15 गुना, आमदनी 5 गुना — यानी दाम तीन गुना तेज बढ़े।

3. अफोर्डेबल हाउसिंग की सप्लाई में गिरावट

  • टॉप 9 शहरों में ₹1 करोड़ या उससे कम कीमत वाले घरों की सप्लाई सिर्फ दो साल में 36% घट गई।

  • NCR, मुंबई, हैदराबाद में हालात सबसे खराब — NCR में 45% गिरावट, मुंबई में 60%, हैदराबाद में 69%।

  • बिल्डर्स का फोकस अब लग्जरी प्रोजेक्ट्स पर है क्योंकि उनमें मुनाफा ज्यादा है।

4. कंस्ट्रक्शन लागत, जमीन के दाम और फाइनेंसिंग की दिक्कतें

  • बिल्डर्स के लिए कम कीमत के घर बनाना घाटे का सौदा होता जा रहा है।

  • जमीन की कीमतें और सरकारी मंजूरियों की जटिलता भी दाम बढ़ाती है।

5. मिडिल क्लास की सेविंग्स का बड़ा हिस्सा पहले से ही रियल एस्टेट में फंसा है

  • 77% भारतीय घरों की संपत्ति रियल एस्टेट में फंसी है — इससे दूसरी निवेश विकल्पों में पैसा कम जाता है।

क्या म्यूचुअल फंड में निवेश करने से मिडिल क्लास को फायदा होता?

म्यूचुअल फंड्स के 10 साल के औसत रिटर्न

  • पिछले 10 साल में कई इक्विटी म्यूचुअल फंड्स ने 13% से 18% तक सालाना रिटर्न दिया है।

  • इंडस्ट्री का औसत 10 साल का रिटर्न लगभग 14-16% रहा है।

  • म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का AUM (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट) 2014 में ₹9.75 लाख करोड़ से बढ़कर 2024 में ₹61.16 लाख करोड़ हो गया — यानी 6 गुना वृद्धि

अगर मिडिल क्लास ने SIP या लंपसम म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया होता…

  • मान लीजिए किसी ने 2014 में ₹10 लाख म्यूचुअल फंड्स में लगाए और औसतन 15% सालाना रिटर्न मिला, तो 2024 में उसकी वैल्यू करीब ₹40.45 लाख हो जाती।

  • वहीं, प्रॉपर्टी में ₹10 लाख निवेश कुल 10 साल में 67% बढ़कर करीब ₹16.7 लाख होता।

  • यानी, म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने पर पूंजी प्रॉपर्टी के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ती।

निष्कर्ष: मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना इतना मुश्किल क्यों?

  • प्रॉपर्टी के दाम आमदनी से 3 गुना तेज बढ़े हैं, जिससे अफोर्डेबिलिटी लगातार घट रही है।

  • अफोर्डेबल घरों की सप्लाई घट रही है, जबकि लग्जरी प्रोजेक्ट्स बढ़ रहे हैं।

  • सरकारी योजनाएं और सब्सिडी भी मांग के मुकाबले नाकाफी हैं।

  • म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने से पूंजी तेजी से बढ़ सकती थी, जिससे भविष्य में घर खरीदना अपेक्षाकृत आसान हो सकता था।

  • लेकिन रियल एस्टेट में पैसा फंसा होने और वित्तीय जागरूकता की कमी के कारण मिडिल क्लास इस मौके का पूरा फायदा नहीं उठा पाया।

समाधान क्या हो सकते हैं?

  • सरकार को जमीन की सप्लाई, मंजूरियों और नीति में पारदर्शिता लानी होगी।

  • मिडिल क्लास को अपनी सेविंग्स में विविधता लानी चाहिए — SIP, म्यूचुअल फंड्स, शेयर मार्केट जैसे विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए।

  • अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए डेवलपर्स को प्रोत्साहन और फाइनेंसिंग आसान होनी चाहिए।

सारांश:पिछले 10 साल में प्रॉपर्टी के दाम आमदनी से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़े हैं, जिससे मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना सपना बनता जा रहा है। अगर मिडिल क्लास ने समय रहते म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया होता, तो उनकी पूंजी कहीं ज्यादा बढ़ सकती थी, जिससे घर खरीदना आसान हो सकता था। अब भी समय है कि निवेश की रणनीति बदली जाए और सरकार व डेवलपर्स मिलकर अफोर्डेबल हाउसिंग की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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