जीवन से ईर्ष्या, लोभ और मोह का त्याग कैसे करें?
Discover the deep spiritual conversation between a devotee and Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj in an intimate Ekantik Vartalaap. Learn Maharaj Ji’s detailed guidance on overcoming jealousy, ego, and worldly attachments through Naam Japa and Satsang. Read the full Hindi article.
SPRITUALITY


महाराज जी से एकान्तिक वार्तालाप: प्रश्न, उत्तर और आध्यात्मिक समाधान
परिचय
वृन्दावन के रसिक संत, परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के साथ एकान्तिक वार्तालाप (Ekantik Vartalaap) साधकों के लिए अत्यंत दुर्लभ और अमूल्य अवसर होता है। ऐसे वार्तालाप में साधक अपने हृदय के गूढ़तम प्रश्न रखते हैं और महाराज जी सरल, व्यावहारिक और गहन उत्तरों से उनका समाधान करते हैं।
इस लेख में हम 30 मई 2025 को हुए एक ऐसे ही एकान्तिक वार्तालाप का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसमें नोएडा से मेघा शर्मा जी ने महाराज जी से जीवन में ईर्ष्या, लोभ, मोह के त्याग और भजन के प्रभाव पर प्रश्न किया। महाराज जी ने अत्यंत सहज और गूढ़ उत्तर दिए, जो हर साधक के जीवन में मार्गदर्शक बन सकते हैं।
प्रश्न: जीवन से ईर्ष्या, लोभ और मोह का त्याग कैसे करें?
मेघा शर्मा जी ने महाराज जी से पूछा कि बहुत प्रयास करने के बावजूद भी ईर्ष्या, लोभ, मोह जैसे विकारों का त्याग करना अत्यंत कठिन लगता है। साधक कोशिश करता है, फिर भी मन बार-बार उन्हीं में उलझ जाता है। क्या इसका कोई स्थायी समाधान है?
महाराज जी का उत्तर: केवल भजन ही समाधान है
महाराज जी ने अत्यंत स्पष्टता से उत्तर दिया:
"ईर्ष्या, लोभ, मोह का त्याग कोशिश से नहीं, भजन से होता है। जितना आप भजन करेंगे, उतने निर्विकार होते जाएंगे। यदि नाम जप नहीं करेंगे, तो कोशिश कुछनहीं कर पाएगी।
समझाइश का सार
कोशिश बनाम भजन:
महाराज जी ने समझाया कि केवल मानसिक या बाहरी प्रयास से मन के विकार नहीं जाते। मन बार-बार प्रतिकूलता, जलन, ईर्ष्या की ओर आकर्षित होता है। जब तक भजन नहीं होगा, मन को रोकना असंभव है।नाम जप का प्रभाव:
जब साधक नियमित नाम जप करता है, उसकी बुद्धि जाग्रत होती है। वह यह समझने लगता है कि जो भी प्रतिकूलता या कटु वचन मिल रहे हैं, वे उसके पूर्व पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान द्वारा भेजे गए हैं। ऐसे में वह दूसरों को दोषी नहीं मानता, बल्कि अपने भीतर विवेक जाग्रत रखता है।विवेक और सहनशीलता:
जब विवेक प्रबल होता है, तो साधक प्रतिकूलता को सह लेता है। जब विवेक कमजोर होता है, तो वही साधक गाली देने, बुरा मानने या ईर्ष्या करने लगता है।ईर्ष्या का समाधान:
महाराज जी ने कहा, "ईर्ष्या करने की जरूरत क्या है? जिसने पुण्य किया, तपस्या की, वह आगे निकल गया। तुम भी भजन करो, तुम भी आगे निकल जाओगे।"
नाम जप और सत्संग: मन के विकारों का नाश
भजन का अहंकार कैसे दूर हो?
कई बार साधक को अपने भजन की संख्या या साधना पर अहंकार भी हो जाता है। महाराज जी ने बताया:
सत्संग का महत्व:
जब हम सत्संग सुनते हैं, बड़े संतों और भक्तों के चरित्र जानते हैं, तो अपने भजन का अहंकार स्वतः नष्ट हो जाता है। उनके सामने हमारा भजन तुच्छ प्रतीत होता है।नाम जप ही दवा है:
"नाम जप ही दवाई है", महाराज जी ने कहा। भजन का अहंकार भी नाम जप से ही दूर होता है।
"अहंकार को गला देगा नाम जप, पर डटकर नाम जप होना चाहिए।"
नाम जप की विधि और प्रेरणा
संख्या बढ़ाने का उपाय:
आजकल काउंटर या अंगूठी का प्रयोग करके नाम जप की संख्या बढ़ाई जा सकती है। इससे साधक को उत्साह मिलता है और भजन में निरंतरता आती है।भाव से या अश्रद्धा से:
महाराज जी ने कहा, "भाव से, कुभाव से, श्रद्धा से, अश्रद्धा से - जैसे भी नाम जप करोगे, परम मंगल होगा।"
संसार में सच्चा प्यार कौन करता है?
महाराज जी ने संसार की सच्चाई पर भी प्रकाश डाला:
स्वार्थमय संसार:
"यहाँ कोई किसी से सच्चा प्यार नहीं करता। अगर कोई प्यार करता है, तो वह पैसे, शरीर या योग्यता से करता है।"भगवान ही सच्चे प्रेमी:
"सच्चा प्यार केवल भगवान ही करते हैं। हर परिस्थिति में वही साथ देते हैं। संसार में कोई स्थायी साथी नहीं है।"नाम जप का महत्व:
"जहाँ कोई साथ नहीं देगा, वहाँ नाम साथ देगा।"
व्यवहारिक जीवन में भजन का समावेश
महाराज जी ने यह भी समझाया कि सांसारिक व्यवहार करते हुए भी भजन और अध्यात्म को कैसे जोड़ा जा सकता है2:
आंतरिक चिंतन:
"व्यापार या नौकरी संबंधी वार्ता करते हुए भी, भीतर से 'राधा' का स्मरण करें और वार्ता के अंत में उसे प्रभु को समर्पित कर दें। इससे भजन बाधित नहीं होगा।"हर व्यवहार प्रभु को समर्पित करें:
"हर व्यवहार में भगवान को देखें, फिर व्यवहार करें और उसे प्रभु को समर्पित कर दें। इससे आनंद मिलेगा।"
अकेलापन और भगवत प्रेम
कई साधकों को लगता है कि संसार से दूर होने पर अकेलापन घेर लेगा। महाराज जी ने स्पष्ट किया3:
भगवान का साथ:
"संसार में कोई स्थायी साथी नहीं है। असली साथी तो भगवान हैं, जो हर परिस्थिति में साथ रहते हैं।"भजन से आनंद:
"भजन जीवन में नहीं होगा, तो अकेलापन लगेगा। भजन से ही भगवत आनंद की अनुभूति होगी।"
सारांश: महाराज जी की शिक्षाएँ
विषयमहाराज जी की सलाहईर्ष्या, लोभ, मोहकेवल भजन से नष्ट होंगे, कोशिश से नहीं1भजन का अहंकारसत्संग और नाम जप से दूर होगानाम जप की विधिसंख्या बढ़ाएं, काउंटर या अंगूठी का प्रयोग करेंसंसार का प्यारसच्चा प्यार केवल भगवान करते हैंव्यवहारिक भजनहर व्यवहार प्रभु को समर्पित करें2अकेलापनभगवान ही सच्चे साथी हैं, भजन से आनंद मिलेगा3
निष्कर्ष
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के एकान्तिक वार्तालाप में स्पष्ट हुआ कि जीवन के गूढ़तम प्रश्नों का उत्तर केवल भजन, नाम जप और सत्संग में है।
ईर्ष्या, लोभ, मोह जैसे विकारों का नाश केवल भजन से संभव है, कोशिश से नहीं।
संसार में सच्चा साथी केवल भगवान हैं, और नाम जप ही वह शक्ति है जो हर परिस्थिति में साधक के साथ रहती है।
महाराज जी की शिक्षाएँ आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में भी साधक को संतुलन, शांति और आनंद प्राप्त करने का सरल मार्ग दिखाती हैं।
नोट:
यह लेख श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के 30 मई 2025 के एकान्तिक वार्तालाप के आधार पर तैयार किया गया है। अधिक जानकारी और सत्संग के लिए 'भजन मार्ग' यूट्यूब चैनल देखें1।