प्रारंभिक विचार:
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हमारी दिनचर्या बहुत ही पवित्र और नियमपूर्वक होनी चाहिए।
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साधारण प्रकृति के चिंतन में रहने वाले व्यक्ति असाधारण चिदानंद रस का अनुभव नहीं कर सकते।
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हम सभी परमात्मा के अंश हैं, इसलिए हमारी दिनचर्या भी असाधारण और परम पवित्र होनी चाहिए।
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यह धारणा छोड़ दें कि “हमसे नहीं होता”, यह बहुत बड़ी कायरता है। यह आपके मन और बुद्धि में बैठा हुआ भ्रम है, इससे सावधान रहें।
ब्रह्म मुहूर्त और दिनचर्या:
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रात्रि के चौथे भाग में, अर्थात प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
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श्रेष्ठ साधक 2 बजे, सामान्य साधक 3 बजे और साधारण साधक 4 बजे उठते हैं।
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यदि सूर्य उदय के समय उठते हैं, तो यह विषय-भोगी जीवन की दिनचर्या है।
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ब्रह्म मुहूर्त का समय अत्यंत पवित्र और साधना के लिए सर्वोत्तम है। इस समय प्रकृति शीतल और शांत होती है, जिससे अंतरमुख होकर मंत्र, भागवत, रूप, लीला, स्वरूप आदि का चिंतन किया जा सकता है।
नींद और जागरण:
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जीवन का लक्ष्य भागवत प्राप्ति है, इसके लिए दृढ़ निश्चय करें कि ब्रह्म मुहूर्त में उठना है।
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रात 10 बजे सोने का नियम बनाएं, ताकि 3 या 4 बजे उठ सकें।
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उत्तम साधक 3-4 घंटे की नींद में ही ताजगी पा लेते हैं, शेष समय साधना और भागवत चिंतन में लगाएं।
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गृहस्थी, व्यापार, शरीर की देखभाल आदि भी उपासक के लिए साधना के अंतर्गत आते हैं।
प्रातःकाल की साधना विधि:
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उठते ही बिस्तर छोड़ दें, सीधे बैठकर भजन न करें, पहले ताजे हो लें, मुख धोएं, फिर आसन पर बैठें।
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सबसे पहले अपने सद्गुरुदेव भगवान का ध्यान करें। गुरुदेव को सच्चिदानंद प्रभु मानकर, अपने मस्तक पर आज्ञा चक्र में सुंदर कमल का ध्यान करें जिसमें गुरुदेव विराजमान हैं।
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गुरुदेव के चरणों से निकलती ज्योति का ध्यान करें, जो आपके हृदय के अंधकार को नष्ट कर रही है।
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फिर अपने गुरु मंत्र या नाम का जाप करें।
मंत्र जाप और उसकी महिमा:
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यदि आपको शौच-स्नान की आवश्यकता लगे तो पहले कर लें, अन्यथा पहले भजन करें।
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मंत्र जाप में वृत्ति लगाएं, कम से कम 1-2 घंटे मंत्र जाप करें।
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मंत्र अत्यंत गुप्त और भागवत रहस्य को प्रकाशित करने वाला है। गुरुदेव द्वारा दिया गया मंत्र हृदय में दिव्य शक्ति का संचार करता है।
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मंत्र जाप से जन्म-जन्मांतर के पाप, तप, संस्कार भस्म होते हैं।
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जब आप मंत्र जाप करते हैं, तो मन में विषय-भोग की लालसा, प्रपंच आदि घबराएं नहीं, मंत्र शक्ति से वे सब नष्ट हो जाते हैं।
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मंत्र का अर्थ हृदय में प्रकाशित होने लगेगा, दिव्य ज्ञान का प्रकाश होगा, और अंतःकरण निर्मल हो जाएगा।
प्रातःकालीन संकल्प और व्यवहार:
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हर सुबह संकल्प लें कि आज के दिन मेरी हर क्रिया गुरुदेव, शास्त्र और भगवान के अनुकूल होगी।
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किसी भी परिस्थिति में, चाहे दुख, अपमान, निंदा हो, प्रभु का नाम नहीं भूलना है।
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किसी भी क्रिया से गुरुदेव या इष्टदेव को दुख न पहुंचे, यह ध्यान रखें।
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यदि मंत्र में वृत्ति न लगे तो प्रार्थना, स्तोत्र, पद या नाम कीर्तन करें।
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ध्यान रखें, यदि आपके पास कोई अन्य साधक मंत्र जाप कर रहा है तो आपकी आवाज़ से उसका ध्यान न भंग हो।
मंत्र की शक्ति और अंत में:
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मंत्र जाप से हृदय में शक्ति का संचार होता है, पाप संस्कार भस्म होते हैं।
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जैसे कांटा निकालने में पीड़ा होती है, वैसे ही प्रारंभ में साधना में संघर्ष होता है, लेकिन धैर्य और विश्वास से साधना करें।
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जब मंत्र का अर्थ प्रकाशित होगा, तो हृदय में दिव्य लीलाओं का अनुभव होगा।
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निरंतर मंत्र जाप से अंतःकरण निर्मल और भागवत स्वरूप हो जाता है।
महाराज जी का यह वीडयो देखे.