गुजरात के राज्यपाल ने किया बड़ा खुलासा: पेस्ट्रोसाइड खाने से बढ़ रहा कैंसर, डीएनए बदल रहा, बच्चों की सेहत पर मंडरा रहा खतरा
गुजरात के राज्यपाल ने चेताया कि रासायनिक खाद और पेस्ट्रोसाइड का अत्यधिक सेवन न केवल कैंसर, हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का कारण बन रहा है, बल्कि अगली पीढ़ी की प्रजनन क्षमता और डीएनए को भी नुकसान पहुँचा रहा है। जानिए प्राकृतिक खेती के लाभ, वैज्ञानिक शोध, और भारत में इसके बढ़ते प्रभाव के बारे में विस्तार से।
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प्रस्तावना
भारत में कृषि के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में रासायनिक खाद (fertilizers) और कीटनाशकों (pesticides) का उपयोग तेज़ी से बढ़ा है। इससे पैदावार तो बढ़ी, लेकिन इसके दुष्प्रभाव अब गंभीर रूप से सामने आने लगे हैं। हाल ही में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने एक कार्यक्रम में चेतावनी दी कि रासायनिक खाद और पेस्ट्रोसाइड का अत्यधिक सेवन न केवल वर्तमान पीढ़ी की सेहत के लिए खतरनाक है, बल्कि यह अगली पीढ़ियों की प्रजनन क्षमता और डीएनए को भी नुकसान पहुँचा सकता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि पेस्ट्रोसाइड्स के सेवन से क्या-क्या खतरे हैं, वैज्ञानिक शोध क्या कहते हैं, बच्चों और महिलाओं पर इसका क्या असर है, और प्राकृतिक खेती क्यों है आज की सबसे बड़ी जरूरत।
पेस्ट्रोसाइड्स और रासायनिक खाद के खतरे
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव
कैंसर का खतरा:
जिन क्षेत्रों में रासायनिक कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होता है, वहां के लोगों में अन्य क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना अधिक कैंसर के मामले पाए गए हैं123।हृदय रोग और ब्लड प्रेशर:
वहां के लोगों में हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है123।बच्चों में मंदबुद्धि और डीएनए परिवर्तन:
शोध में पाया गया कि पढ़े-लिखे और इंटेलिजेंट माता-पिता के बच्चे भी मानसिक रूप से कमजोर पैदा हो रहे हैं। गर्भवती महिलाओं द्वारा पेस्ट्रोसाइड्स के सेवन से गर्भस्थ शिशु के डीएनए में भी बदलाव आ रहा है, जिससे आगे चलकर उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है।अगली पीढ़ी की प्रजनन क्षमता पर असर:
AIIMS की रिसर्च के अनुसार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में जहाँ यूरिया, डीएपी और पेस्ट्रोसाइड्स का अत्यधिक प्रयोग होता है, वहां की आने वाली पीढ़ियाँ संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हो सकती हैं।
2. बच्चों और महिलाओं पर विशेष असर
बच्चों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ, बौद्धिक विकास में कमी, ADHD, ऑटिज्म, अस्थमा, मोटापा, और जन्म दोष जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं4।
महिलाएँ, विशेषकर गर्भवती महिलाएँ, पेस्ट्रोसाइड्स के संपर्क में आने से गर्भस्थ शिशु की सेहत पर गंभीर असर पड़ता है, जिससे आगे चलकर मानसिक और शारीरिक विकार हो सकते हैं।
वैज्ञानिक शोध और सरकारी रिपोर्ट्स
AIIMS की रिपोर्ट:
AIIMS के डॉक्टरों ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूरिया, डीएपी और कीटनाशकों के प्रयोग वाले क्षेत्रों में ब्लड सैंपल लेकर रिसर्च की। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि इन रसायनों के कारण डीएनए में बदलाव, कैंसर, हृदय रोग, और प्रजनन क्षमता में गिरावट देखी गई है।अन्य शोध:
पेस्ट्रोसाइड्स के लगातार संपर्क से लिवर, किडनी, फेफड़े, और प्रजनन अंगों को भी गंभीर नुकसान पहुँचता है। बच्चों में बौद्धिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
प्राकृतिक खेती: समाधान की ओर
1. प्राकृतिक खेती क्या है?
प्राकृतिक खेती एक ऐसी पद्धति है जिसमें रासायनिक खाद, कीटनाशक, और अन्य सिंथेटिक इनपुट्स का प्रयोग नहीं किया जाता। इसमें जैविक और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता और फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है।
2. प्राकृतिक खेती के लाभ
मिट्टी की सेहत में सुधार:
प्राकृतिक खेती से मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों और केंचुओं की संख्या बढ़ती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता बेहतर होती है।खर्च में कमी:
किसान अपने खेत में उपलब्ध संसाधनों से ही खाद और कीटनाशक बना सकते हैं, जिससे लागत कम होती है।स्वस्थ फसलें और सुरक्षित भोजन:
प्राकृतिक खेती से उगाई गई फसलें रसायन मुक्त होती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिलता है5।पर्यावरण संरक्षण:
रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले जल, मिट्टी और वायु प्रदूषण से बचाव होता है।पशुपालन का महत्व:
प्राकृतिक खेती में पशुपालन को भी महत्व दिया जाता है, जिससे जैव विविधता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है5।
3. भारत में प्राकृतिक खेती की स्थिति
गुजरात में लगभग 9 लाख किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं और आंध्र प्रदेश में 10 लाख से अधिक किसान इस पद्धति पर काम कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग (NMNF) शुरू किया है, जिससे देशभर में लाखों हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिल रहा है।
मिथक और सच्चाई
1. क्या प्राकृतिक खेती से पैदावार कम हो जाती है?
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम नहीं होता, बल्कि यह जैविक खेती से अलग है और सही तरीके से अपनाई जाए तो किसानों की आय भी बढ़ा सकती है।
2. श्रीलंका का उदाहरण
कुछ लोग श्रीलंका के जैविक खेती के अनुभव को लेकर भ्रम फैलाते हैं कि रसायन मुक्त खेती से भुखमरी हो सकती है। लेकिन राज्यपाल के अनुसार, श्रीलंका ने जैविक खेती की थी, जबकि प्राकृतिक खेती की पद्धति अलग है और इसमें उत्पादन पर नकारात्मक असर नहीं पड़ता।
किसानों और समाज के लिए सुझाव
रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग कम करें या बंद करें।
प्राकृतिक खेती की पद्धति अपनाएं और इसके लिए सरकार द्वारा दी जा रही ट्रेनिंग और सहायता का लाभ लें।
पशुपालन और जैविक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करें।
समाज में जागरूकता फैलाएं कि सुरक्षित भोजन और स्वस्थ भविष्य के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र विकल्प है।
निष्कर्ष
रासायनिक खाद और पेस्ट्रोसाइड्स का अत्यधिक प्रयोग न केवल वर्तमान पीढ़ी की सेहत के लिए खतरा है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के डीएनए और प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिक शोध और सरकारी रिपोर्ट्स इस खतरे की पुष्टि करती हैं। ऐसे में प्राकृतिक खेती को अपनाना, न केवल किसानों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए आवश्यक हो गया है। प्राकृतिक खेती से न केवल मिट्टी, जल और पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी सुरक्षित और स्वस्थ जीवन मिलेगा।
नोट: यह लेख स्वास्थ्य जागरूकता और कृषि सुधार के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।