अलग-अलग मंदिरों में भगवान के स्वरूप अलग हैं, किसका ध्यान करें? श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अमृत वचन (EN)

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“अलग-अलग मंदिर में भगवान का स्वरूप अलग होता है, तो समझ नहीं आता किसका ध्यान करें?”

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचन

“आचार्य परंपरा से जब हम जुड़ते हैं तो जैसे अब हम हैं, तो हम जाएँ कहीं भी, लेकिन हम ध्यान करेंगे राधावल्लभ जी का, क्योंकि हरिवंश महाप्रभु के हम शिष्य हैं और राधावल्लभ जी हमारे इष्ट हैं। अब जैसे कोई स्वामी हरिदास जी का है, तो बांके बिहारी का ध्यान करेगा। अब जैसे आप नहीं जुड़े हैं, तो आपको मान लेना चाहिए कि मेरे बांके बिहारी जी हैं। दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान बिहारी जी का करो, ऐसे चला जाता है। भगवान के मार्ग में एक जगह कहीं अपनी निष्ठा कर ली जाती है और फिर सतमार्ग में चला जाता है।”

महाराज जी के वचन: निष्ठा और गुरु परंपरा का महत्व

  • “भगवान के मार्ग में एक जगह कहीं अपनी निष्ठा कर ली जाती है और फिर सतमार्ग में चला जाता है।”

  • “आचार्य परंपरा से जब हम जुड़ते हैं, तो चाहे हम कहीं भी जाएँ, ध्यान अपने इष्ट का ही करते हैं।”

  • “जैसे हम हरिवंश महाप्रभु के शिष्य हैं, तो हमारा ध्यान राधावल्लभ जी पर ही रहेगा, चाहे हम किसी भी मंदिर में जाएँ।”

  • “अगर आप किसी परंपरा से नहीं जुड़े हैं, तो आप जिस स्वरूप में मन लग जाए, उसी को अपना इष्ट मान लें।”

  • “दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान एक ही स्वरूप का करो।”

महाराज जी के अन्य अमृत वचन (Quotes)

1. गुरु-निष्ठा और साधना का मार्ग

“आचार्य परंपरा से जुड़ने के बाद, साधक को अपने इष्ट का ध्यान करना चाहिए। चाहे वह किसी भी मंदिर में जाए, उसका ध्यान अपने इष्ट पर ही केंद्रित रहना चाहिए।”

“भगवान के मार्ग में निष्ठा अत्यंत आवश्यक है। एक बार निष्ठा कर ली, फिर उसी मार्ग पर चलना चाहिए।”

2. मंदिरों के विविध स्वरूपों का रहस्य

“अलग-अलग मंदिरों में भगवान के स्वरूप अलग हैं, यह विविधता भक्तों की श्रद्धा और परंपरा के अनुसार है। लेकिन ध्यान में स्थिरता के लिए एक इष्ट का चयन करना चाहिए।”

“दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान एक ही स्वरूप का करो। इससे मन एकाग्र और भजन में स्थिरता आती है।”

3. भक्ति की सरलता और सहजता

“अगर आप किसी परंपरा से नहीं जुड़े हैं, तो अपने मन को जिस स्वरूप में शांति मिले, उसी को इष्ट मानकर ध्यान करो।”

“भगवान के मार्ग में भ्रम नहीं रखना चाहिए। एक बार निष्ठा कर ली, फिर उसी मार्ग पर चलना चाहिए।”

4. ध्यान और भजन की एकाग्रता

“ध्यान में विविधता नहीं, एकता चाहिए। विविधता से मन भ्रमित होता है, एकता से मन स्थिर और शांत रहता है।”

“जिस स्वरूप में मन को शांति मिले, उसी स्वरूप में ध्यान करो। यही भजन मार्ग की सरलता है।”

महाराज जी के वचन: भजन मार्ग का सार

  • “भगवान के मार्ग में एक जगह कहीं अपनी निष्ठा कर ली जाती है और फिर सतमार्ग में चला जाता है।”

  • “दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान एक ही स्वरूप का करो।”

  • “आचार्य परंपरा से जुड़ो, अपने इष्ट का ध्यान करो, यही भजन मार्ग का रहस्य है।”

  • “अगर किसी परंपरा से नहीं जुड़े हो, तो जिस स्वरूप में मन को शांति मिले, उसी को इष्ट मान लो।”

  • “ध्यान में विविधता से मन भ्रमित होता है, एकता से मन स्थिर रहता है।”

महाराज जी के वचन: भक्तों के लिए मार्गदर्शन

“जैसे कोई स्वामी हरिदास जी का है, तो बांके बिहारी का ध्यान करेगा। अब जैसे आप नहीं जुड़े हैं, तो आपको मान लेना चाहिए कि मेरे बांके बिहारी जी हैं। दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान बिहारी जी का करो, ऐसे चला जाता है।”

“भगवान के मार्ग में एक जगह कहीं अपनी निष्ठा कर ली जाती है और फिर सतमार्ग में चला जाता है।”

“आचार्य परंपरा से जुड़ो, अपने इष्ट का ध्यान करो, यही भजन मार्ग का रहस्य है।”

महाराज जी के वचन: भक्ति का अनुभव

  • “जिस स्वरूप में मन को शांति मिले, उसी स्वरूप में ध्यान करो। यही भजन मार्ग की सरलता है।”

  • “ध्यान में विविधता नहीं, एकता चाहिए। विविधता से मन भ्रमित होता है, एकता से मन स्थिर और शांत रहता है।”

  • “आचार्य परंपरा से जुड़ने के बाद, साधक को अपने इष्ट का ध्यान करना चाहिए। चाहे वह किसी भी मंदिर में जाए, उसका ध्यान अपने इष्ट पर ही केंद्रित रहना चाहिए।”

महाराज जी के वचन: निष्कर्ष

“भगवान के मार्ग में भ्रम नहीं रखना चाहिए। एक बार निष्ठा कर ली, फिर उसी मार्ग पर चलना चाहिए।”

“दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान एक ही स्वरूप का करो। इससे मन एकाग्र और भजन में स्थिरता आती है।”

अंतिम संदेश

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचन हमें स्पष्ट दिशा देते हैं—

  • “आचार्य परंपरा से जुड़ो, अपने इष्ट का ध्यान करो, यही भजन मार्ग का रहस्य है।”

  • “दर्शन सब जगह करो, लेकिन ध्यान एक ही स्वरूप का करो।”

  • “जिस स्वरूप में मन को शांति मिले, उसी स्वरूप में ध्यान करो।”

भक्ति की राह में यदि निष्ठा है, गुरु परंपरा का अनुसरण है, और मन में एकाग्रता है, तो भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।राधे-राधे!

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SOURCE:

  1. https://www.youtube.com/watch?v=97cAG3mG00g

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