क्या हम किसी को कंठी माला पहना सकते हैं? श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचन

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों के अनुसार, क्या किसी को कंठी माला पहनाना उचित है? जानिए कंठी माला पहनाने की मर्यादा, गुरु-शिष्य संबंध, और आध्यात्मिक नियम, महाराज जी के उद्धरणों के साथ।

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6/25/20251 मिनट पढ़ें

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🌸 आध्यात्मिक जीवन में कंठी माला का महत्व

कंठी माला केवल एक बाहरी आभूषण नहीं, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक संकेत है। यह भगवान के प्रति समर्पण, शुद्धता और संकल्प का प्रतीक है। परंतु, क्या कोई भी किसी को कंठी माला पहना सकता है? इस विषय पर श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन में स्पष्ट और गूढ़ मार्गदर्शन दिया है1।

महाराज जी के वचन: कंठी माला पहनाने की मर्यादा

1. “अपने द्वारा नहीं होनी चाहिए ये क्रियाएं”

“हमें लगता है ये क्रियाएं अपने द्वारा नहीं होनी चाहिए। अपने को समर्थ नहीं समझना चाहिए। ये संतों के द्वारा होनी चाहिए, गुरुजनों के द्वारा। कोई ऐसा भाव दिखाई देता है तो हम किसी संत के पास ले जाते हैं, उसकी सामर्थ्य से उसका कल्याण होगा। अब हम कंठी माला उसको पहना दें, ऐसा ठीक नहीं है। किसी संत के हाथ से कंठी माला पहनवावे, तो भगवान का संबंध, भगवान की प्रार्थना से वो निर्वाह हो जाएगा। अभी आप में खुद सामर्थ्य नहीं है, आपने कंठी माला पहना दी, उतार के फेंक के मनमानी आचरण करने लगा, तो फिर ठीक नहीं है।”1

स्पष्टीकरण:
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि कंठी माला पहनाना साधारण क्रिया नहीं है। यह केवल संत, गुरुजन या जिनमें आध्यात्मिक सामर्थ्य है, उन्हीं के द्वारा होना चाहिए। यदि बिना योग्यता या अधिकार के कोई कंठी माला पहना देता है, और पहनने वाला बाद में गलत आचरण करता है, तो यह अनुचित है।

2. “कंठी माला कोई खिलवाड़ चीज है

प्रश्नकर्ता बोला, महाराज जी, मैं वृंदावन आता हूं ना, तो परिजन कहते हैं कि आप वहां से कंठी माला ले आइए।

महाराज जी ने उत्तर दिया, कंठी माला कोई ऐसे खिलवाड़ चीज है क्या? कंठी माला तुम्हें पहनना है तो किसी संत की शरण में चलो, वो अपने हाथ से कंठी माला दे, तब धारण किया। ऐसे थोड़ी बाजार से खरीदा, पहन लिया, ऐसे नहीं। ये भागवती तभी उसका कल्याण नहीं हुआ, अभी वो फिर अपने गंदे आचरणों में चला गया। कंठी माला का प्रभाव है जिनके गलों में कंठी बंध गई, हमें लगता है कि वह जीवन में शराब नहीं पिएंगे, मांस नहीं खाएंगे, गलत आचरण नहीं करेंगे, डरेंगे कि हमने कंठी बांध रखा है।”

स्पष्टीकरण:
महाराज जी बाजार से कंठी माला खरीदकर पहनने की प्रवृत्ति को अनुचित बताते हैं। वे कहते हैं कि कंठी माला केवल संत की शरण में जाकर, उनकी कृपा से ही धारण करनी चाहिए। कंठी माला का महत्व तभी है जब वह गुरु या संत के हाथों से मिले।

3. “कंठी माला का प्रभाव और डर”

“कंठी माला का प्रभाव है जिनके गलों में कंठी बंध गई, हमें लगता है कि वह जीवन में शराब नहीं पिएंगे, मांस नहीं खाएंगे, गलत आचरण नहीं करेंगे, डरेंगे कि हमने कंठी बांध रखा है, डर लगता है जैसे कंठी बांधे ना तो डर लगता है कि यार हम तिलक लगाएं, कंठी बांधे, भगवान के विरुद्ध आचरण कैसे करें। लेकिन जो मनमानी, तो फिर बाजारू, तो बाजार से खरीद लिया, पहन लिया, उतार दिया, फेंक दिया, कोई मतलब नहीं।”

स्पष्टीकरण:
महाराज जी बताते हैं कि कंठी माला पहनने से व्यक्ति के भीतर एक डर, एक अनुशासन आ जाता है कि अब उसे गलत आचरण नहीं करना है। लेकिन यदि यह केवल औपचारिकता या फैशन बन जाए, तो उसका कोई महत्व नहीं रह जाता।

4. “कंठी माला पहनाने की जिम्मेदारी”

“आप कह रहे हैं कि आपने किसी को कंठी माला का फल बताया और पहना दी, बाद में उसने उतार के मांस-मदिरा खाने लग गया, तो महाराज जी, उसकी दुर्दशा तो है, मेरे को तो पाप नहीं लगेगा? महाराज जी: हमें लगता है ये क्रियाएं अपने द्वारा नहीं होनी चाहिए। अपने को समर्थ नहीं समझना चाहिए। ये संतों के द्वारा होनी चाहिए, गुरुजनों के द्वारा...”1

स्पष्टीकरण:
यहां महाराज जी पुनः दोहराते हैं कि कंठी माला पहनाना गुरुजन या संतों का कार्य है। यदि आपने बिना अधिकार के किसी को पहनाई और वह गलत आचरण करने लगा, तो यह भी आपकी जिम्मेदारी मानी जा सकती है।

5. “कंठी माला धारण करने का सही तरीका”

“कंठी माला तुम्हें पहनना है तो किसी संत की शरण में चलो, वो अपने हाथ से कंठी माला दे, तब धारण किया। ऐसे थोड़ी बाजार से खरीदा, पहन लिया, ऐसे नहीं।”1

स्पष्टीकरण:
महाराज जी बार-बार यही संदेश देते हैं कि कंठी माला धारण करने के लिए संत की शरण और उनकी अनुमति अनिवार्य है।

कंठी माला और गुरु-शिष्य परंपरा

गुरु के बिना कंठी माला का कोई अर्थ नहीं

“कंठी माला का प्रभाव है जिनके गलों में कंठी बंध गई, हमें लगता है कि वह जीवन में शराब नहीं पिएंगे, मांस नहीं खाएंगे, गलत आचरण नहीं करेंगे, डरेंगे कि हमने कंठी बांध रखा है।”1

गुरु द्वारा दी गई कंठी माला, शिष्य के लिए एक अनुशासन, एक नियम, और एक संकल्प का प्रतीक बन जाती है। यह केवल गले में धारण करने की वस्तु नहीं, बल्कि जीवन के आचरण में परिवर्तन का संकेत है।

कंठी माला पहनाने के दुष्परिणाम: जब नियम टूटे

“अब हम कंठी माला उसको पहना दें, ऐसा ठीक नहीं है। किसी संत के हाथ से कंठी माला पहनवावे, तो भगवान का संबंध, भगवान की प्रार्थना से वो निर्वाह हो जाएगा। अभी आप में खुद सामर्थ्य नहीं है, आपने कंठी माला पहना दी, उतार के फेंक के मनमानी आचरण करने लगा, तो फिर ठीक नहीं है।”1

यदि बिना योग्यता के कंठी माला पहनाई जाती है और पहनने वाला उसका सम्मान नहीं करता, तो यह न केवल उसके लिए, बल्कि पहनाने वाले के लिए भी अनुचित है।

कंठी माला: बाजारू प्रवृत्ति या आध्यात्मिक संकल्प?

“कंठी माला कोई खिलवाड़ चीज है क्या? ऐसे थोड़ी बाजार से खरीदा, पहन लिया, ऐसे नहीं। ये भागवती तभी उसका कल्याण नहीं हुआ, अभी वो फिर अपने गंदे आचरणों में चला गया।”

महाराज जी बाजार से कंठी माला खरीदकर पहनने की प्रवृत्ति को नकारते हैं। वे कहते हैं कि यह कोई खिलौना नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक संकल्प है, जिसे केवल गुरु के माध्यम से ही धारण करना चाहिए।

महाराज जी के अन्य प्रेरक वचन (संदर्भित)

  • “कंठी माला का प्रभाव है, जिनके गलों में कंठी बंध गई, हमें लगता है कि वह जीवन में शराब नहीं पिएंगे, मांस नहीं खाएंगे, गलत आचरण नहीं करेंगे, डरेंगे कि हमने कंठी बांध रखा है।”

  • “अपने द्वारा नहीं होनी चाहिए ये क्रियाएं, संतों के द्वारा होनी चाहिए, गुरुजनों के द्वारा।”

  • “कंठी माला तुम्हें पहनना है तो किसी संत की शरण में चलो, वो अपने हाथ से कंठी माला दे, तब धारण किया।”

निष्कर्ष: कंठी माला पहनाने की सही प्रक्रिया

  • कंठी माला पहनाना केवल संत या गुरु के अधिकार क्षेत्र में है।

  • बाजार से खरीदकर या बिना गुरु की शरण में जाए कंठी माला पहनना अनुचित है।

  • कंठी माला धारण करने के बाद, जीवन में शुद्धता, संयम और भगवान के प्रति समर्पण आवश्यक है।

  • यदि कोई कंठी माला पहनकर गलत आचरण करता है, तो उसका दोष पहनाने वाले पर भी आ सकता है, यदि वह संत या गुरु नहीं है।

  • कंठी माला पहनना एक गहन आध्यात्मिक संकल्प है, जिसे केवल गुरु की कृपा और मार्गदर्शन में ही धारण करना चाहिए।

महाराज जी के वचन से प्रेरित जीवन सूत्र

  • “कंठी माला कोई खिलवाड़ चीज नहीं, यह गुरु की शरण में जाकर ही धारण करनी चाहिए।”

  • “अपने द्वारा किसी को कंठी माला पहनाना उचित नहीं, यह संतों का कार्य है।”

  • “कंठी माला पहनने के बाद जीवन में संयम और शुद्धता अनिवार्य है।”

अंतिम संदेश

कंठी माला का महत्व केवल धारण करने में नहीं, बल्कि उसके पीछे छुपे संकल्प, गुरु-शिष्य संबंध, और जीवन के आचरण में है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों का सार यही है कि कंठी माला धारण करने की प्रक्रिया को हल्के में न लें, इसे केवल गुरु की शरण में जाकर, उनकी कृपा से ही स्वीकार करें। तभी इसका वास्तविक आध्यात्मिक लाभ और कल्याण संभव है1।

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  1. https://www.youtube.com/watch?v=97cAG3mG00g