आचमन करने की सही विधि: कहीं आप गलत तरीके से तो आचमन नहीं करते? आचार्य श्री राजेन्द्र दास जी महाराज, मालूक पीठ, वृंदावन के अनुसार

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आचमन क्या है?

आचमन हिन्दू धर्म की शुद्धिकरण की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें जल का तीन बार ग्रहण कर शरीर, मन और वाणी की शुद्धि की जाती है। यह हर पूजा, यज्ञ, संध्योपासन, जप आदि से पहले किया जाता है, जिससे साधक शुद्ध होकर देवकार्य हेतु तैयार होता है।

आचमन करने की शास्त्रीय विधि

1. बैठकर ही करें आचमन

  • श्री राजेन्द्र दास जी महाराज स्पष्ट कहते हैं कि आचमन हमेशा बैठकर करना चाहिए।

  • खड़े-खड़े आचमन करना शास्त्रविरुद्ध है और ऐसा करने वाला तत्काल शूद्र हो जाता है।

  • केवल गंगा या यमुना में नाभि-पर्यंत जल में खड़े होकर आचमन किया जा सकता है, अन्यत्र नहीं1।

2. हाथ और आसन की स्थिति

  • दोनों हाथ घुटनों के मध्य, नाभि के अग्र भाग के सामने रखें।

  • हाथों की स्थिति नाभि के ठीक सामने होनी चाहिए, न अधिक ऊँचाई पर, न ही नीचे1।

3. जल पात्र और जल की शुद्धता

  • आचमन के लिए अलग पात्र (गिलास या कटोरी) में शुद्ध जल लें।

  • संध्योपासन या पूजा के बचे हुए जल का उपयोग आचमन में न करें।

  • अर्घ्य और आचमन के पात्र अलग-अलग हों।

  • पंचपात्र का अर्थ है पाँच पात्र, न कि एक ही गिलास1।

4. आचमन की प्रक्रिया

  • दाहिने हाथ की अँगुली (अनामिका और अंगूठे के बीच की जगह, जिसे ‘ब्रह्मतीर्थ’ कहते हैं) से जल लेकर तीन बार ग्रहण करें।

  • प्रत्येक बार निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:

    • “ॐ केशवाय नमः”

    • “ॐ नारायणाय नमः”

    • “ॐ माधवाय नमः”

  • जल पीते समय ‘फुर-फुर’ या कोई आवाज नहीं आनी चाहिए।

  • आचमन के समय मुँह अधिक न खोलें, न ही दिखावा करें1।

5. आचमन के बाद

  • अंगुली से पोषण (मुख को स्पर्श) करें।

  • हाथ धो लें।

  • पर्याप्त जल रखें ताकि बार-बार जल न भरना पड़े1।

आचमन में होने वाली आम गलतियाँ

  • खड़े-खड़े आचमन करना: यह शास्त्रविरुद्ध है, केवल नदी में खड़े होकर ही आचमन कर सकते हैं।

  • गलत हाथ की मुद्रा: हाथ नाभि के सामने न रखना, या गलत तरीके से जल लेना।

  • एक ही पात्र से बार-बार उपयोग: संध्योपासन या पूजा के बचे जल से आचमन करना।

  • आवाज के साथ आचमन: जल पीते समय आवाज करना अनुचित है।

  • मुख अधिक खोलना या दिखावा: आचमन की प्रक्रिया में दिखावा करना शुद्धता के विपरीत है।

  • पंचपात्र की गलत समझ: एक गिलास को ही पंचपात्र मान लेना।

आचमन का शास्त्रीय महत्व

आचमन केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मन की एकाग्रता का साधन है। शास्त्रों के अनुसार, आचमन के बिना कोई भी पूजा, यज्ञ, जप या अनुष्ठान अधूरा माना जाता है।आचमन के जल में देवता, पितर, ब्रह्मा आदि का निवास माना गया है। इसलिए इसे अत्यंत श्रद्धा और मर्यादा के साथ करना चाहिए1।

श्री राजेन्द्र दास जी महाराज के अनुसार विशेष सावधानियाँ

  • यदि कोई पंडित खड़े-खड़े आचमन करवाए, तो विनम्रता से मना करें और बैठकर ही आचमन करें।

  • आचमन के बाद हाथ धोना न भूलें।

  • आचमन का पात्र, अर्घ्य का पात्र और सूर्य का पात्र अलग-अलग रखें।

  • पंचपात्र में पाँच पात्र अवश्य हों, केवल एक गिलास को पंचपात्र न मानें1।

निष्कर्ष

आचमन करने की सही विधि शास्त्रसम्मत और अत्यंत सरल है, लेकिन उसमें शुद्धता, मन की एकाग्रता और विधि का पालन अनिवार्य है।
श्री राजेन्द्र दास जी महाराज की सीख के अनुसार, यदि आप इन नियमों का पालन करते हैं, तो आपका आचमन शुद्ध, फलदायक और पूर्ण माना जाएगा।
गलत तरीके से आचमन करने से पूजा का फल बाधित हो सकता है, इसलिए शुद्ध विधि से ही करें।

FAQs

प्रश्न: क्या आचमन के लिए कोई विशेष जल चाहिए?उत्तर: हाँ, शुद्ध जल होना चाहिए, जो केवल आचमन के लिए रखा गया हो1।प्रश्न: क्या खड़े होकर कभी आचमन किया जा सकता है?उत्तर: केवल गंगा या यमुना में नाभि-पर्यंत जल में खड़े होकर ही आचमन किया जा सकता है, अन्यत्र नहीं1।प्रश्न: क्या आचमन के बाद हाथ धोना आवश्यक है?उत्तर: हाँ, आचमन के बाद हाथ अवश्य धोएं1।

संक्षिप्त सूत्र

  • बैठकर आचमन करें

  • शुद्ध जल और पात्र का प्रयोग करें

  • दाहिने हाथ की अंगुली से ब्रह्मतीर्थ में जल लेकर तीन बार ग्रहण करें

  • मंत्रों का उच्चारण करें, आवाज न करें

  • आचमन के बाद हाथ धोएं

“शुद्ध और शास्त्रसम्मत आचमन से ही पूजा और साधना का पूर्ण फल प्राप्त होता है।”— श्री राजेन्द्र दास जी महाराज, मालूक पीठ, वृंदावनSources:1 YouTube: “आचमन करने की सही विधि क्या है? कहीं आप गलत तरीके से तो आचमन नहीं करते | SHRI RAJENDRA DAS JI MAHRAJ, MALOOK PEETH, VRINDAVAN”

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