
यह लेख प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत करता है प्रसन्ना और ललिता की, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में एक अहम बदलाव लाकर दिखाया कि किस तरह एक छोटी-सी आदत जीवन की दिशा बदल सकती है। यह लेख न केवल उनकी यात्रा और अनुभवों को बांटता है, बल्कि भारतीय समाज, परिवार, धन प्रबंधन, और सरल जीवनशैली पर भी विस्तार से प्रकाश डालता है।youtube
परिवर्तन की शुरुआत
प्रसन्ना और ललिता की कहानी एक आम भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार से शुरू होती है। प्रसन्ना ने अपने करियर की शुरुआत चेन्नई से की, जहां वह अपनी पढ़ाई के बाद बेंग्लुरु शिफ्ट हुए। उनकी शादी के बाद, दोनों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव आया। ललिता ने घर संभालने का फैसला किया और दोनों ने मिलकर अपने आर्थिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए योजना बनानी शुरू की।youtube
प्रसन्ना शुरू में अपनी आमदनी का अधिकांश हिस्सा खर्च कर देते थे। वे अक्सर मौके के अनुसार गाड़ियां बदलते और ब्रांडेड कपड़े पहनना पसंद करते थे। उनके पास एक समय में लगभग 200-300 शर्ट, 58 पर्फ्यूम, और 23 जोड़ी जूते तक थे। लेकिन, इस सब के बावजूद, वे संतुष्ट नहीं थे।youtube
विलासितापूर्ण जीवन से अभावग्रस्तता की ओर
2015 के बाद, जब दोनों की शादी हुई, तो ललिता ने घर में कदम रखते ही महसूस किया कि हर कोना चीजों से भरा है। दोनों ने महसूस किया कि यह संग्रहण उन्हें खुशी नहीं दे पा रहा। धीरे-धीरे, उन्होंने जान लिया कि असली सुकून जरुरतों को पहचानने और दिखावे की दुनिया से बाहर निकलने में ही हैं।
उन्होंने अपनी पुरानी वस्तुएं दान कर दी। अब उनके वार्डरोब में मात्र 20-25 शर्ट, 2-3 परफ्यूम आदि हैं। अब कोई फिजूल खर्ची और गैर-ज़रूरी खरीददारी नहीं, हर खर्च कई दिन सोच-समझकर ही किया जाता है।
न्यूनतम आवश्यकताएँ बनाम विलासिता
दोनों ने हर खर्च को ‘जरूरत, चाहत, और विलासिता’ के खांचे में रखना शुरू किया। कुछ भी खरीदने से पहले वे खुद से प्रश्न करते – क्या यह चीज सच में जरूरी है? अगर नहीं, तो उसे खरीदने का निर्णय स्थगित कर देते।
एक घटना बताती है कि किस तरह उन्होंने वैक्यूम क्लीनर तक को खरीदने में विलंब किया और तब तक खुद ही सफाई की, जिससे पैसे भी बचे और सेहत भी सुधरी। इसी आदत ने उनकी फिजूलखर्ची पर लगाम लगाई और उन्हें वित्तीय रूप से मजबूत बनाया।
कर्ज से मुक्ति तक की यात्रा
कमाई के सतत बढ़ने और प्रमोशन मिलने के बावजूद, एक दौर में प्रसन्ना और ललिता पर होम लोन, पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड डेब्ट जैसी आर्थिक जिम्मेदारियां हावी हो गईं। कुल मिलाकर लगभग 45 लाख का कर्ज था, जबकि सैलरी सिर्फ 24 लाख सालाना के करीब थी। यह स्थिति उनके लिए आंखें खोलने वाली साबित हुई।
उन्होंने घर का बजट तैयार किया, हर खर्च की जगह तय की, और जो राशि बची उसे पूरी तरह निवेश या कर्ज चुकाने में लगा दी। एक्स्ट्रा खर्च बिल्कुल बंद कर दिया; कार तक बदलना छोड़ दिया – जबकि पहले वे प्रमोशन होने पर कार चेंज कर लेते थे.
निवेश और बचत की रणनीति
दोनों की निवेश रणनीति अत्यंत सुलझी हुई है। कुल आय का करीब 30% म्यूचुअल फंड में SIP के तौर पर जाता है। इसके अलावा, PPF, NPS, फिक्स्ड डिपॉजिट, और जमीन में निवेश करते हैं। गोल्ड भी निवेश का एक माध्यम है।
- 30% म्यूचुअल फंड
- 10-20% NPS
- बाकी फिक्स्ड डिपॉजिट, PPF
- समय-समय पर जमीन में निवेश
उनका मानना है कि रियल एस्टेट (खासकर जमीन) दीर्घकालिक निवेश के लिहाज से सबसे ज्यादा फायदा देता है। कोयंबटूर जैसे शहरों में सरकारी परियोजनाएं, IT हब्स, और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को देखकर उन्होंने लैंड खरीदी।
खरीददारी और खर्च प्रबंधन के गुर
प्रसन्ना और ललिता सबसे छोटी रकम की प्लानिंग करना भी नहीं भूलते। चाहे वह पेस्ट कंट्रोल हो, इन्श्योरेंस प्रीमियम, केबल टीवी चार्ज, इत्यादि – हर चीज के लिए छोटा-छोटा आरडी (Recurring Deposit) बनवाकर रखते हैं। इससे जब समय आता है, तो बड़ी रकम एक साथ देने की चिंता नहीं रहती।
मेडिकल खर्च और बीमा की अहमियत
बुजुर्ग माता-पिता के लिए मेडिकल खर्च बड़ा मुद्दा है। उन्होंने सस्ती कीमत पर दवाइयाँ खरीदने के लिए जनऔषधि केंद्रों का सहारा लिया और हर महीने लगभग 6,000-8,000 रुपए तक की बचत की। इसके अलावा, मेडिकल इंश्योरेंस कवरेज लगभग 30-50 लाख तक रखा, जिससे आपात स्थिति में आर्थिक चिंता कम हो सके।
साझा जिम्मेदारी और परिवार
बजट बनाने, निवेश, और खर्च प्लानिंग – हर निर्णय दोनों मिलकर लेते हैं। प्रसन्ना अपनी पूरी सैलरी ललिता के हवाले कर देते हैं और दोनों बैठकर हर माह की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखते हैं। भारतीय समाज में आमतौर पर ये भूमिका पुरुषों की मानी जाती है, लेकिन दोनों का मानना है कि परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी महिलाओं के साथ मिलकर बांटी जानी चाहिए।
बच्चों का न होना – सोच और वजह
एक रोचक पहलू यह है कि दोनों ने ‘चाइल्ड-फ्री लाइफ’ का चयन किया है। उन्होंने कभी योजना बनाकर यह निर्णय नहीं लिया, बल्कि समय के साथ जैसा जीवन मिला उसे अपनाया। उनके लिए परिवार में हर सदस्य, यहां तक कि उनका कुत्ता भी, उतना ही महत्वपूर्ण है। उनके लिए यात्रा, संस्कृति, और जीवन का आनंद एक साथ रहकर लेना अधिक मायने रखता है।
संस्कृति, यात्रा और जीवन के मूल्य
दोनों को यात्रा करना बेहद पसंद है, लेकिन वे विदेश यात्रा की बजाय पूरे भारत को घूमना पसंद करते हैं। विशेष रूप से, वे रोड ट्रिप पर जाना और भारत के ऐतिहासिक स्थलों, मंदिरों की सांस्कृतिक धरोहर को देखने में रुचि रखते हैं। उनका मानना है कि संस्कृति और कला के बिना जीवन अधूरा है, और मंदिरों की यात्रा से उन्हें भारतीय विरासत को समझने का मौका मिलता है।
निष्कर्ष : सादगी में बड़ी शक्ति
प्रसन्ना और ललिता की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणादायक है। उनकी यात्रा यह सिखाती है कि दिखावे की बजाय सादगी को अपनाने, वित्तीय अनुशासन रखने, और परिवार के हर सदस्य को साथ लेकर चलने से न केवल आर्थिक मजबूती आती है, बल्कि मानसिक और सामाजिक सुकून भी मिलता है।
यह कहानी एक संदेश देती है कि असली खुशी और वित्तीय स्वतंत्रता फिजूलखर्ची से दूर रहने, छोटी-छोटी इच्छाओं को टालने, ईमानदारी से निवेश करने, और सबसे जरूरी, परिवार को सबसे ऊपर रखने में है।
मुख्य सीख
- आवश्यकता पहचानें, फिजूलखर्ची से बचें
- खर्च और निवेश में पारदर्शिता और साझेदारी
- दीर्घकालिक निवेश जैसे जमीन, गोल्ड, PPF में ध्यान दें
- मेडिकल खर्च और बीमा को लेकर सजग रहें
- सादगी और संस्कृति को महत्व दें
- परिवार, भले बच्चों का न हो, फिर भी हर सदस्य की भूमिका अहम मानी जाए
- जीवन का आनंद दिखावे में नहीं, संतुलित और सोच-समझकर जीने में है
यह कहानी न केवल पैसा बचाने या निवेश करने की सीख देती है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाये रखने, साझेदारी, और संस्कृति की जड़ों से जुड़े रहने के बारे में भी जागरूक करती है।
Read this also