जानिए बुद्धि बड़ी होती है या मन , अगर बुद्धि बड़ी होती है तो मन बुद्धि पर क्यों भारी होता है? वे बुद्धि को क्यों हरा देता है?
प्रणाम गुरुजी बुद्धि बड़ी होती है या मन , अगर बुद्धि बड़ी होती है तो मन बुद्धि पर क्यों भारी होता है? वे बुद्धि को क्यों हरा देता है?
महाराज जी का उत्तर
बुद्धि का काम है निश्चय करना बिना उसके निश्चय से मन कुछ नहीं कर सकता. मन का काम है क्रिया का संकल्प करना. मन उस क्रिया के लिए बुद्धि से दस्तखत कराता है. बुद्धि उसमें दस्तखत करती है. अगर बुद्धि दस्तखत नहीं करेगी तो मन कुछ नहीं कर सकता. अब आज कल लोगों का मन का जो बल है वो इंद्रियों के कारण क्षीण (कम) हो चुका है।. इन्द्रियाँ जैसे नेत्रेन्द्री, श्रवणेन्द्री, जनेंद्री, रसेंद्री.
उदहारण के लिए अब इंद्री ने देखा की यह बहुत मीठी चीज है. मुझे खाना है.
हमारे कहने में देर हुई. इतने में उसने मन को घसीटा. मन ने कहा, इसको ऐसे खाया जाए तो सुख मिलेगा.
इतनी देर में बुद्धि से दस्तकत करवा लिए और वो क्रिया में उतर गया. यह अज्ञानी पुरुष की निशानी है.
जो शास्त्रसम्मत साधना करता है वह अज्ञानी पुरुष के उल्टा देखता है, उसके उल्टा अनुभव करता है. उदहारण के लिए उसकी इंद्र ने देखा यह विषय (मीठी चीज) से सुख मिलेगा. वे सोचता है, बहुतों ने भोगा इस विषय को, किसको सुख मिला है. यह प्रश्न अंदर ही अंदर मन के पास पहुंचा. जो मन इंद्री के साथ मिलकर भोग में जान वाला था. वो एकदम रुका और बुद्धि ने निर्णय किया. नहीं कदापि नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता. शास्त्रसम्मत व्यक्ति ने मन और इंद्रियों को अधीन कर लिया, इससे आप गलती करने से बच जाते है.
पर यहां उल्टा है इंद्रियों ने मन को अधीन कर रखा है. मन ने बुद्धि को अधीन कर रखा है. बुद्धि एक सेकंड में दस्तकत कर देती है. ऐसी क्रिया हो जाती है फिर जेल मिलती है, नरक मिलता है आपको समझ में आ रहा है ना.
जब भजन करोगे तो ये सब ऐसे दिखाई देते हैं जैसे आप बाहर दिखाई देते हो न ऐसे एक- एक बात अंदर की आपको दिखाई देती है. अब इस समय बुद्धि क्या निर्णय कर रही है, मन की चाल क्या है? इंद्री क्या कर रही हैं? इस समय वाणी का वेग (दबाव) है, इस समय उदर (पेट) का वेग है. इस समय जनेंद्री का वेग है. हर एक वेग का पता लगा लेती है. उसे पूरे सिस्टम का पता होता है. जैसे होता है ना इंजीनियर तो वे पूरे जनरेटर को नहीं जानता.
वैसे ही एक भजन करने वाला पूरे सिस्टम का जानकार इंजीनियर है. कहाँ से कहाँ कहीं एक भी फाल्ट होगा तो स्टार्ट नहीं होगा जनरेटर. एक भी गलती हो गई तो अध्यात्म का आनंद छुपने लगेगा.
शरीर एक रथ हैं, इंद्रिया इसके घोड़े हैं, मन उसकी घोड़ा की लगाम है और बुद्धि उसका सारथी है. जो उसमें बैठा हुआ है, वह जीव है. सारी बात जो है बुद्धि के हाथ में है.
बुद्धि ने अगर चतुरता दिखाई लगाम खींच ली तो घोड़े सही रास्ते पर चलते रहेंगे।. और बुद्धि अगर नशे पर हो गई, ड्राइवर की नशे पर लगाम ढीली पड़ी, घोड़े बहुत बलवान है ठोक देंगे, कहीं जाके कहीं गड्ढे में गिरा देंगे.
बुद्धि शुद्ध तभी मानी जाएगी जब बुद्धि भगवान में अर्पित हो. भगवान कहते हैं अब बुद्धि योग हो गया. अब बुद्धि नहीं रह गई है. उसमें भगवान समा गए.
लगाम एकदम देखना इंद्रियों के ना घोड़े भगें रात दिन इनमें संयम के कोड़े लगे.
अब घोड़े चाहे जितना ही चले उनको सत मार्ग में ही चलना पड़ेगा. क्योंकि लगाम एकदम टाइट है. मन एकदम ठिकाने पर लगा दिया गया है.
लेकिन अब लोग मन को नहीं जानते. इंद्रियों को नहीं जानते तो उल्टा हो रहा है. विषय इतने बलवान है कि इंद्रियों को खींच लेते है. इंद्रियां इतनी बलवान है कि मन को अधीन कर लेते है. मन इतना बलवान है कि बुद्धि को अधीन कर लेती है, तो हमारी दुर्दशा होती चली जा रही है.
अगर भगवान के भजन बाल से बुद्धि ठीक हो जाए तो मन को घसीट ले तो मन इंद्रियों को घसीट ले।. इंद्रियाँ निर्विषय हो गईं तो भगवत प्राप्ति हो गई।. यह खेल है समझ में आया.