माता-पिता चाहते हैं कि मैं बाबाजी बन जाऊँ?

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन पर आधारित)



प्रस्तावना

आज के समय में कई माता-पिता यह कामना रखते हैं कि उनका संतान संसारिक जीवन से हटकर आध्यात्मिक मार्ग पर चले, बाबाजी या संत बन जाए। हालांकि इस मार्ग को चुनना और उसपर टिके रहना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की अमूल्य शिक्षाएँ इस विषय को सटीकता से उजागर करती हैं, जो जीवन के गहन सत्य को समझने की प्रेरणा देती हैं। उनके अनुसार बाबाजी बनना सिर्फ वस्त्र बदलना या बाहरी स्वरूप धारण करना नहीं, बल्कि अपने हृदय और आत्मा को पूर्णतः समर्पित कर देना है।


बाबाजी बनने का अर्थ क्या है?

  • बाबाजी या संत बनना मात्र एक सामाजिक भूमिका नहीं है, यह सम्पूर्ण परिवर्तन है।
  • इसका अर्थ बाहरी संसार के मोह-जाल, रिश्तों, प्रेम, सम्मान, और सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग करना है।
  • प्रपंच, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर जैसे शत्रुओं से निरंतर संघर्ष करना पड़ता है।
  • यह मार्ग सदैव आसान नहीं, बल्कि अत्यंत कठिन और कष्टमय है।

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की बातें (बिंदुवार)

1. जीवन निर्वाह की कठिनता

  • महाराज जी कहते हैं – “बाबाजी बनना जितना सरल समझा जाता है, उतना है नहीं।”
  • जीवन निर्वाह की मूलभूत आवश्यकताएँ भी साधु के लिए सरल नहीं होतीं।
  • कई बार भोजन और रहन-सहन की व्यवस्था मुश्किल हो जाती है। गंगाजल पीकर दिन बिताने पड़ते हैं।

2. व्यावहारिक अनुभव

  • माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि बेटा बाबाजी बन जाए, लेकिन वे महसूस नहीं करते कि यह मार्ग कितना बड़ा त्याग चाहता है।
  • “पूरा परिवार, माँ-बाप, भाई-बहन का प्रेम त्यागना पड़ता है। संत का कोई स्थायी साथी नहीं होता।”
  • समाज की प्रशंसा या प्रसिद्धि संत के लिए विपत्ति बन जाती है—”यश-वाहक होना और भी कठिनाई बढ़ा देता है।”

3. गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता

  • महाराज जी सलाह देते हैं—”गृहस्थ जीवन में रहना, मेहतन करना, परिवार का पालन-पोषण करना – यही श्रेष्ठ है।”
  • “कमाओ, दूसरों को खिलाओ, नाम जप करो—इससे बड़ा कोई धर्म नहीं। बाबाजी बनने के चक्कर में मत पड़ो जब तक भीतर की पुकार न हो।”

4. बाबाजी बनने की कड़ी परीक्षा

  • महाराज जी कहते हैं—”अगर लगता है बाबाजी बनना आसान है, तो सिर्फ एक महीना किसी सच्चे संत के जीवन का अनुभव करो।”
  • इस मार्ग में मोह-माया, काम-क्रोध को जीतना, तन और मन को वश में करना आवश्यक है।
  • हर ओर से उपेक्षा, तिरस्कार, अकेलापन, और दुनिया की इच्छाओं से लड़ना पड़ता है।

5. संत के जीवन की उदासी

  • संत के लिए भगवान ही सबसे बड़ा साथी है, संसार में कोई स्थायी मित्र या प्रेमी नहीं।
  • महाराज जी कहते हैं – “आश्चर्य की बात यह है कि भगवान भी सामने नहीं आते, छुपे रहते हैं।”
  • कई बार सच्चा संत ईश्वर की अनुभूति के लिए तड़पता रहता है, लेकिन दर्शन कम ही होते हैं।

6. आत्म-साक्षात्कार की राह

  • “राधा-राधा का नाम जपते हुए, जीवन के हर क्षण त्याग में बीताते हैं संत।”
  • बाहरी आकर्षण, इच्छाएँ, आराम—इन सबसे दूर रहना संत का कर्तव्य है।
  • इस मार्ग पर केवल वही टिक सकते हैं जो सच्चे प्रेम में डूबकर, भगवान की कृपा की प्रतीक्षा में सब कुछ छोड़ दें।

7. विरक्ति और वैराग्य का मार्ग

  • संत, बाबाजी बनने का अर्थ है—मृतप्रायः होकर जीवित रहना।
  • संसार की हर अनुभूति से परे, बस ‘राधा-राधा’, ‘भगवान-भगवान’ का जाप और वही एकमात्र लक्ष्य।
  • “किसी भी सांसारिक आकर्षण, प्रशंसा, सुख-दुःख का प्रभाव संत को छूता नहीं।”

8. भगवान का सरल न मिलना

  • “भगवान अपने भक्तों को जल्दी दर्शन नहीं देते, क्योंकि वे चाहते हैं कि भक्त पूरी तरह तड़पे, ‘मेरे आशिक’ हो जाए।”
  • यह तड़प ही साधक को पूर्ण संत बना देती है।
  • अगर भगवान मार्ग में मुस्करा दें तो साधक बड़े से बड़ा त्याग हँसते-हँसते कर लेता है।

9. सच्चे प्रेम की तलाश

  • संसार में आखिर किससे प्रेम करें? सभी अपना ही सोचते हैं, वास्तविक प्रेम केवल भगवान के लिए होता है।
  • “मेरे लिए कोई नहीं, सब अपने लिए। एक परमात्मा को छोड़कर कोई साथ नहीं चलता।”

10. अंतहीन प्रतीक्षा और कृपा

  • महाराज जी कहते हैं—”भगवान की कृपा एक दिन निश्चित होगी, जब साधक की तड़प सर्वोच्च हो जाएगी।”
  • तब—वही अंतहीन प्रतीक्षा, वही तड़प साधक को संपूर्णता देती है।

बाबाजी बनना—सरल या कठिन?

  • अक्सर लोग सोचते हैं—बाबाजी बनना क्षणिक और मोहमुक्त जीवन है।
  • वास्तविकता यह है कि यह मार्ग त्याग, सेवा, तपस्या, वैराग्य और आत्मिक तप का नाम है।
  • सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर, प्रेम का अभाव, अकेलापन और ईश्वर तक पहुँचने की तीव्र लालसा इसकी विशेषता है।

गृहस्थ जीवन में साधना क्यों श्रेष्ठ?

  • महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि—
    • मन, कर्म, वचन से भगवान का नाम जपना
    • परिवार, समाज में मधुर संबंध बनाए रखना
    • मेहनत कर खाना, दूसरों को खिलाना और संयमित जीवन जीना
  • यह सब बाबाजी बनने से भी कहीं अधिक सहज और पुण्यदायक है।

बच्चें को बाबाजी क्यों न बनायें?

  • माता-पिता का सपना हो सकता है कि बेटा बाबाजी बन जाए, लेकिन—
    • सबकी प्रकृति और मन:स्थिति भिन्न होती है।
    • बलपूर्वक संतान को भगवद्-मार्ग या संत जीवन में धकेलना, उसकी इच्छाओं की अवहेलना है।
    • अगर सहज प्रवृत्ति न हो तो साधक मार्ग में लड़खड़ा सकता है।

संत-महात्माओं के शब्दों में

  • “सच्चा संत वही है जो प्रेम में डूबकर, स्वार्थ रहित जीवन जीता है।”
  • “संसार में रहकर संसारी धर्म निभाना, सच्चे संत का ही कार्य है।”
  • “भगवान से जब तक रमण नहीं, संत जीवन में आनंद भी नहीं।”

बाबाजी बनना—जीवत्मा की परीक्षा

  • यह मार्ग उन लोगों के लिए है जो दुनिया की परवाह किए बिना, ईश्वर-प्राप्ति के लिए हर त्याग को तैयार हैं।
  • बाल्यावस्था में माता-पिता की प्रेरणा से बाबाजी बनना, जीवनभर का पश्चाताप भी बन सकता है।
  • हां, जिसे अंदर से आवाज़ आए, जिसने संपूर्ण ब्रह्मांड में केवल “राधा-राधा” को खोजा, वही इस पथ पर सफल है।

संत जीवन में महानता

  • संत का जीवन महान है, पर उतना ही कठिन और त्यागमय।
  • चुनौतियों, भूख, अभाव, अकेलेपन, तिरस्कार को झेलते हुए भी जो “राधा-राधा” जपता रहे, वही असली संत।
  • संसार के मोह—रिश्ते, धन, मान-अपमान, यश को त्यागना किसी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं।

माता-पिता का कर्तव्य

  • परम कर्तव्य है कि संतान की इच्छाओं, मानस और प्रवृत्तियों को समझें।
  • उसके भीतर की साधना, उसकी वैयक्तिक रुचि व क्षमता का सम्मान करें।
  • बलपूर्वक उसे किसी भी दिशाबोध में झोंकना सर्वथा अनुचित है——सच्चा संत वही है जो अपनी आत्मा से प्रेरित होकर चले।

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की शिक्षा का सार

  • गृहस्थ जीवन में रहकर भी ईश्वर की पूर्ण कृपा मिल सकती है।
  • संत मार्ग बेहद कठिन है, मन, वचन, कर्म के साथ ईश्वर में तल्लीन होना आवश्यक है।
  • सच्चा संत वही है, जिसमें दया, करुणा, त्याग और सेवा भाव हो।

निष्कर्ष

किसी भी माता-पिता का सपना संतान को आदर्श जीवन में देखना स्वाभाविक है, लेकिन संत या बाबाजी बनाना सिर्फ आडंबर या सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं, बल्कि संपूर्ण आत्मसमर्पण व कड़ी साधना का मार्ग है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी भक्ति, साधना और सेवा का मार्ग अपनाया जा सकता है। जो व्यक्ति सच्चे हृदय से और अपनी रुचि से भगवद्-मार्ग चुनता है, वही सफल और संतुष्ट जीवन जी सकता है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की वाणी में यही संदेश—वास्तविक संत वही है, जो भीतर से तैयार हो, ऊपर से थोपा गया नहीं।


महाराज जी की मुख्य बातें (पॉइंटवाइज)

  1. बाबाजी बनना अत्यंत कठिन, सहज नहीं।
  2. जीवन निर्वाह, भोजन-रहन-सहन संत के लिए बड़ा चेलेंज।
  3. परिवार जन, रिश्ते, प्रेम – सबका त्याग करना पड़ता है।
  4. गृहस्थ जीवन की सलाह—परिवार, मेहनत, सेवा, जप उत्तम।
  5. जिसको बाबा बनना सरल लगे, वह एक महीना प्रयास कर देखे।
  6. बाह्य आराम, नाम-प्रशंसा भी संत के लिए विपत्ति।
  7. संत के पास कोई “अपना” नहीं, भगवान ही एकमात्र सहारा।
  8. भगवान अकेले में भी तुरंत नहीं आते, तड़पाते हैं।
  9. वास्तविक प्रेम संसार में दुर्लभ, केवल भगवान सच्चे प्रिय।
  10. संत जीवन में आनंद, अकेलापन दोनों।
  11. खुद की इच्छा हो, तो ही बाबाजी बनना—दबाव से नहीं।
  12. संत जीवन में मिलने वाला सम्मान भी त्याग की कसौटी है।
  13. भगवान की कृपा देर में, पर निश्चित होती है।
  14. गृहस्थ जीवन में भी भक्ति, तपस्या और सेवा संभव।
  15. माता-पिता का कर्तव्य—संतान की इच्छा का आदर।
  16. बाबाजी बनने से बेहतर—गृहस्थ धर्म का निष्पादन।

Frequently Asked Questions

1. क्या सभी को बाबाजी बनना चाहिए?

  • नहीं, सिर्फ स्वेच्छा और भीतर की प्रेरणा से ही यह निर्णय लेना चाहिए।

2. माता-पिता यदि संत बनाना चाहें तो?

  • संतान की स्वतंत्रता, रुचि और मानसिकता का सम्मान सबसे जरूरी है।

3. गृहस्थ जीवन में रहते हुए भक्ति कैसे करें?

  • परिवार, समाज, कर्म और जप—सबका समुचित तालमेल बनाकर, संयमित और आस्थापूर्वक जीवन जिएं।

4. संत का सबसे बड़ा लक्ष्य क्या है?

  • भगवान का साक्षात्कार, सर्वस्व त्याग और सेवा।

यह संपूर्ण लेख श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की अमूल्य वाणी और जीवन उपयोगी मार्गदर्शन पर आधारित है। संत का मार्ग चुनने के पूर्व यह गहन चिंतन आवश्यक है कि “माता-पिता चाहते हैं कि मैं बाबाजी बन जाऊँ”—इस विचार की गहराई को माता-पिता, शिक्षक और स्वयं हर व्यक्ति समझे।

  1. https://www.youtube.com/watch?v=fKGNJHWdrlY

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