
महाराज जी का उत्तर– सुख, शांति और प्यार यह जो तीन शब्द कहे-इन पर विचार करो. हर व्यक्ति सुख चाहता है-जिसमें दुख ना मिला हो.
हर व्यक्ति शांति चाहता है जहां अशांति ना हो,
हर व्यक्ति निश्चल प्यार चाहता है, मुझे कोई प्यार करें.
सबके हृदय की मांग होती है -सुख, शांति और प्यार. यह तीनों सिर्फ भगवान से मिलते हैं. यहां नहीं मिल सकते, यहां हम अगर रुपए में सुख चाहे, तो चाहे जितना रुपया जमा कर लो रुपए में सुख नहीं है, रुपया इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि उससे सामग्री मिलती है, अगर आपको रुपए से भरे कमरे में बंद कर दिया जाए, तो आप चिल्ला कर कहोगे कि मुझे बाहर निकालो क्योंकि रुपए में सुख नहीं है. रुपए से सामग्री मिलती है.
हमें सामग्री से प्यार है, जैसे खाना, पीना, देखना, सुनना और वह प्यार इंद्रियों को है जबकि इंद्रियों के भोगों में सुख, शांति और प्यार नहीं है इसलिए सब की खोज है- एक अविनाशी सुख, एक शाश्वत शांति और एक ऐसा प्यार जो केवल मुझे प्यार करें, मेरे लिए प्यार करें. पर ऐसा यहां है नहीं.
हां, अपने लिए प्यार करने वाला है पर यह प्यार नहीं. प्यार की परिभाषा तत्सुख होती है, तत्सुख का मतलब जिसमें मेरा प्यारा सुखी हो, चाहे मुझे प्राण देना पड़े, वह केवल भगवान करते हैं, यह तीनों बातें भगवान की खोज कर रही हैं. सुख शांति और प्रेम भगवान में है, इसलिए हर जीव परमात्मा की खोज कर रहा है.
हमको लगता है कि हम संसार के सुख भोगकर सुखी हो जाएंगे लेकिन इस सुख को कोई और भोग रहा है और वह तीसरे की ओर देख रहा है और तीसरा जहां देख रहा है उसे भी कोई भोग रहा है लेकिन वह भी असंतुष्ट है, इसका मतलब भोगों में सुख नहीं है, शांति नहीं है, प्यार नहीं है. प्यार है तो परमात्मा में है, सुख और शांति परमात्मा में है.
प्रश्न – पर महाराज जी यह तत्कालिक सुख बहुत अच्छे लगते हैं और भगवान के बारे में लगता है कि वह कब मिलेंगे।
हां, बिल्कुल बात ठीक है, जिनका भोग तुरंत अमृत जैसा लगे, उनका परिणाम विष होता है. आप सब गृहस्थ हैं- आप लोगों ने भी सब भोग भोग रखे हैं. क्या आपका कभी मन बोला कि मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. ऐसा कभी नहीं हुआ, ऐसा तब ही होगा जब आपको भगवान के चरण मिल जाएंगे. जैसे केवट भगवान श्री राम के चरण धो रहा है, तो उसे ऐसा ही महसूस हो रहा है।
भगवान जब बाद में उसे जानकी जी की अंगूठी देते हैं, तो वह कहता है अब कुछ ना चाहे मोरे स्वामी। आज मुझे वह मिल गया जो बहुत जन्मों से खोज रहा था। यह बात तभी आएगी जब आपको भगवान मिलेंगे कि अब कुछ नहीं चाहिए, नहीं तो यह चाहिए, वह चाहिए और चाह बढ़ती ही जाएगी, चाहा करते-करते मर जाते हैं, फिर नया जन्म होता है फिर वही चाह फिर नया जन्म, ऐसे कितने कल्प व्यतीत हो गए. आखिर हमारी मांग क्या है. हमारे अंदर की जो मांग है वह भगवान है क्योंकि सुख, शांति और प्रेम सिर्फ भगवान में है, वह संसार के सुख और भोगों में नहीं है, आप कहीं भी खोज कर देख लो.