
यहाँ प्रस्तुत है विस्तृत हिंदी लेख, जो हाल ही में चांदी की कीमतों में तेज़ उछाल, निवेशकों का FOMO (फोमो – अवसर छूटने का डर), सप्लाई की कमी, तथा भारतीय बाजार, ज्वैलर्स, फंड्स, ETF इत्यादि पर पड़ने वाले प्रभावों को विशेषज्ञों के हवाले से विस्तार पूर्वक प्रस्तुत करता है। मुख्य जानकारी Economic Times के ताज़ा लेख पर आधारित है।
भौतिक चांदी के बाजार में उथल-पुथल: निवेशकों में FOMO, सप्लाई की गंभीर कमी एवं आसमान छूती कीमतें
प्रस्तावना
हाल ही में चांदी की कीमतों में तगड़ी बढ़ोतरी ने निवेशकों के बीच उत्साह, चिंता और FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट) जैसी भावनाएँ पैदा कर दी हैं। बीते कुछ ही हफ्तों में, जिन निवेशकों ने चांदी में निवेश किया था, वे सफेद धातु की इस रैली पर जश्न मना रहे हैं, जबकि जो चूक गए उन्हें FOMO (मौका हाथ से जाने का डर) हो गया है. अब वह आनन् फानन में बुलियन (रॉ चांदी) खरीदने में तुल गए हैं. कुलमिलाकर चांदी के दाम आसमान छूने के पीछे तीन मुख्य पक्ष — रिटेल निवेशक, औद्योगिक मांग और सप्लाई चेन बाधाएं — मिलकर एक ऐसा वातावरण बना चुके हैं, जिसमें चांदी की कीमतें नए रिकॉर्ड पर पहुंच रही हैं।
MCX, ज़वेरी बाजार, पर्थ मिंट और ETF के ताज़ा हालात
पिछले 16 दिन में MCX पर चांदी की स्पॉट कीमतें 17% से अधिक बढ़ी हैं। तो चौतरफा सप्लाई की कमी के कारण भौतिक चांदी के बाजार में वर्चुअल चांदी जैसे ETF और फ्यूचर्स के मुकाबले रिकॉर्ड प्रीमियम देखने को मिल रहे हैं। यही कारण है कि मुंबई के मशहूर ज़वेरी बाजार ने आगे की चांदी ऑर्डर्स पर रोक लगा दी है, पर्थ मिंट ने भी चांदी के ऑर्डर सस्पेंड कर दिए हैं, और भारत में कई प्रमुख म्यूचुअल फंड कंपनियों ने — जैसे कोटक, SBI, UTI, ICICI प्रुडेंशियल इत्यादि — सिल्वर ETF व फंड ऑफ फंड्स में एकमुश्त निवेश को ठप कर दिया है।
क्यों है सप्लाई की कमी इतनी गंभीर?
SPA कैपिटल के फाउंडर संदीप परवाल के अनुसार, भारत — जो दुनिया का सबसे बड़ा चांदी उपभोक्ता है — ने वर्ष 2025 में अपनी चांदी आयात में 42% की गिरावट देखी है, वहीं निवेश और औद्योगिक मांग में बड़ी बढ़ोतरी आई है। वैश्विक स्तर पर भी सप्लाई सीमित है क्योंकि चांदी प्रायः अन्य धातुओं के खनन का सह-उत्पाद है, और नई मिनिंग प्रोजेक्ट्स कम ही हैं। दूसरी ओर, औद्योगिक मांग (इलेक्ट्रॉनिक्स, ग्रीन एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहनों, सेल्स आदि में व्यय) रफ्तार पकड़ रही है।
Tradejini के COO त्रिवेश डी बताते हैं कि बीते कुछ सप्ताहों में घरेलू मांग तेज़ी से बढ़ी है, जबकि आयात में गिरावट जारी है — जिससे सप्लाई साइड पर दबाव अत्यंत स्पष्ट है। MCX फ्यूचर्स व ETF में फर्क देखकर यह तेज़ी समझी जा सकती है।
निवेशकों की रणनीति: अभी फायदा बुक करें या बने रहें?
संदीप का मत है कि जब तक सप्लाई संतुलित नहीं हो जाती और मांग ज्यादा रहेगी, मौजूदा निवेशक अभी बने रह सकते हैं, क्योंकि उनकी पूंजी में और बढ़ोतरी की संभावना है। यदि उनका निवेश तत्काल बिक्री के लिए नहीं है, तो वे बने रह सकते हैं। त्रिवेश की सलाह है कि चांदी अंतरराष्ट्रीय बाजार में $46.75 प्रति ट्रॉय औंस के Key Support पर बनी हुई है, जबकि $43.18 पर सेकंडरी सपोर्ट है। निवेशकों को इन स्तरों पर ध्यान रखना चाहिए।
क्या अभी खरीदारी का सही समय है?
त्रिवेश के अनुसार, अभी नए निवेशकों को ऐसे ऊँचे प्रीमियम पर बिना सोच-समझे भाग लेना उचित नहीं है, क्योंकि सप्लाई सामान्य होते ही कीमतों में गिरावट संभव है। चांदी का दीर्घकालिक दृष्टिकोण औद्योगिक मांग व ऊर्जा संक्रमण के कारण सशक्त बना रहेगा, लेकिन फिलहाल की तेजी अत्यधिक कमी व तात्कालिक घबराहट से बढ़ी है। बेहतर है कि वायदा और ETF के बीच का स्प्रेड कम होने तक प्रतीक्षा करें।
संदीप का मानना है कि चांदी के दाम ऊर्जा बदलाव, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), और जियोपॉलिटिकल तनाव से प्रेरित निवेश मांग की वजह से और बढ़ सकते हैं। ऐसे में लॉन्ग-टर्म निवेशक और औद्योगिक उपभोक्ता अभी चांदी खरीद सकते हैं — लेकिन यह स्पष्ट है कि मौजूदा बढ़ोतरी Panic-driven scarcity नहीं बल्कि Real supply-demand dynamics की वजह से है।
शहर-दर-शहर प्राइस में भारी फासला, Arbitrage अवसर
इस असामान्यता के चलते भारत के विभिन्न शहरों में भौतिक चांदी की कीमतें काफी अलग-अलग हैं। जहाँ एक ओर Chennai में 16 अक्टूबर को चांदी की दर ₹2 लाख प्रति किलोग्राम तक गई, वहीं MCX स्पॉट प्राइस उसी दिन ₹1,69,674/kg थी, और 1 अक्टूबर को ₹1,44,888/kg थी — यानी इसी महीने 17% की बढ़ोतरी। इसी तरह MCX (Feb 2025) फ्यूचर्स में ₹1,61,000 के आसपास भाव और Nippon SilverBeES ETF में ₹1,76,000 के भाव मिलने से प्राइस स्प्रेड का पता चलता है। यह शॉर्ट टर्म Arbitrage के अवसरों को जन्म दे रहा है।
क्यों तेजी आई है: अंतरराष्ट्रीय बाजार और स्थानीय मांग का संयोजन
सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, तुर्की और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी चांदी की कमी का प्रभाव देखा जा रहा है। यह कमी सिर्फ सेंटीमेंटल मूव नहीं बल्कि असली सप्लाई संकट, ऊँचा वैश्विक लीज रेट और जोरदार लोकल खरीददारी का परिणाम है।
ज्वैलरी बिजनेस: त्योहारी सीजन में परेशानी
ज्वैलर्स के लिए समस्या बहुत बढ़ गई है। त्रिवेश बताते हैं कि कई ज्वैलर्स ने नए ऑर्डर्स स्लो कर दिए हैं या फिर ताजे बुकिंग लेना ही बंद कर दिया है। बार्स और कॉइन्स पर 20,000–30,000 रुपये प्रति किलो की फिजिकल प्रीमियम बढ़ चुकी है। फेस्टिव सीजन आते-आते यह लागत प्रेशर रिटेल दामों में दिखने लगेगा। जब तक सप्लाई सामान्य नहीं होती, मार्जिन्स कमजोर रहेंगे और इन्वेंटरी मैनेजमेंट चुनौतीपूर्ण बना रहेगा।
संदीप के मुताबिक, यह कमी सामान्य सप्लाई चैन को भी प्रभावित कर रही है, जिसके चलते कीमतें आसमान छू रही हैं और फेस्टिव सीजन में ज्वैलरी के रेट बढ़ने की पूरी संभावना है। उन्होंने बताया कि एक्सपोर्ट डेटा में अच्छे संकेत देखने को मिले हैं, लेकिन डोमेस्टिक सप्लाई की समस्या कंज्यूमर्स के लिए अतिरिक्त लागत ला सकती है। इस दशा में त्योहारी समय तक ज्वैलरी के दाम ऊँचे रहने तय हैं।
वर्चुअल बनाम फिजिकल चांदी: दोनों का अंतर
स्पॉट प्राइस और वर्चुअल (ETF, फ्यूचर्स) चांदी में दरों का फर्क निवेशकों को असमंजस में डाल रहा है। सप्लाई की कमी के कारण भौतिक चांदी का प्रीमियम लगातार बढ़ रहा है, जिससे कमोडिटी मार्केट्स में Price discovery और Arbitrage दोनों में अस्थिरता आई है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि सप्लाई सामान्य होने पर वर्चुअल चांदी की कीमत नीचे आ सकती है, जबकि अन्य का कहना है कि पहले वर्चुअल प्राइस और बढ़ेंगे, फिर वापस गिरेगें, और अंततः फिजिकल वर्चुअल का फर्क कम हो जाएगा।
चांदी में निवेश के जोखिम
चांदी की छोटी-सी अवधि में कीमतों में इतनी उथल-पुथल से निवेशकों के जोखिमों में वृद्धि हो गई है। सप्लाई चेन टूटने, मार्केट वोलैटिलिटी एंव इंटरनेशनल डिमांड-सप्लाई की अनिश्चितता ने निवेश को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अल्पकालिक निवेशक तात्कालिक बुलिश सेंटीमेंट का फायदा उठा सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि के निवेशक को चांदी में सकारात्मक संभावनाएं दिखती हैं, यह मानकर कि औद्योगिक मांग मजबूत बनी रहेगी।
भविष्य का क्या?
ग्लोबल स्तर पर ग्रीन एनर्जी, इलेक्ट्रिक वीइकल्स, हाइब्रिड टेक्नोलॉजीज और सुरक्षित बचत के स्रोत के रूप में चांदी की मांग आगे बढ़ेगी। भारत के लिए, जब तक सप्लाई-डिमांड असंतुलन बना रहेगा, प्राइस और प्रीमियम में ऊंचे स्तर देखे जा सकते हैं। चांदी में निवेश करने वाले निवेशकों को अंतरराष्ट्रीय सपोर्ट लेवल्स, ETF–फ्यूचर्स–स्पॉट के Spread, मार्केट सेंटिमेंट, सप्लाई खपत व एक्सपोर्ट–इम्पोर्ट आंकड़ों पर विशेषज्ञ मार्गदर्शन के साथ ध्यान रखना चाहिए।
निष्कर्ष
वर्तमान में भौतिक चांदी के बाजार में सप्लाई साइड बहुत कमजोर है, और निवेश तथा औद्योगिक मांग मजबूत बनी हुई है। कई प्रमुख बाजारों में प्रीमियम बढ़ रहे हैं व ETF एवं फ्यूचर्स के भावों में भारी अंतर बना है। विशेषज्ञों का मत है कि मौजूदा निवेशक बने रह सकते हैं, जबकि नए निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए। ज्वैलर्स, फंड्स व अन्य ट्रेडर्स को त्योहारी सीजन में ऊँचे लागत दबाव व thin margins का सामना करना पड़ सकता है। ग्लोबल मार्केट्स में चांदी अब केवल ‘पैनिक-बायिंग’ का मामला नहीं बल्कि रियल सप्लाई–डिमांड का संघर्ष बन गया है।
यह लेख चांदी के मौजूदा हालात, निवेश चैनलों, सप्लाई चेन पर पड़ने वाले प्रभाव, विशेषज्ञों की राय, और भविष्य की संभावनाओं को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करता है — जिससे निवेशक, ज्वैलर और अन्य मार्केट पार्टिसिपेंट्स समझ सकें कि इस असामान्य तेजी, FOMO एवं सप्लाई संकट में किस प्रकार रणनीति बनानी चाहिए।
लेख का स्रोत: Economic Times Wealth, 17 अक्टूबर 2025।