उसने पहले Love Marriage की पर बाद में धोखेबाज निकले ! Bhajan Marg

यहाँ वीडियो “उसने पहले Love Marriage की पर बाद में धोखेबाज निकले ! Bhajan Marg” में प्रस्तुत महाराज जी की सारी बातें (प्रश्न सहित), क्रमशः, विस्तारपूर्वक वर्ड-टू-वर्ड और सुबोध हिंदी में लगभग 3000 शब्दों के लेख के प्रारंभ के रूप में दी जा रही हैं। लेख को व्यवस्थित, अनुक्रमिक और बिंदुवार शैली में तैयार किया जाएगा जिससे हर मुख्य बिंदु और महाराज जी की शिक्षा स्पष्ट समझ आए।


सामाजिक प्रश्न और उसकी पृष्ठभूमि

महाराज जी, यह प्रश्न हम एक सामाजिक संदर्भ में रख रहे हैं। समाज में बहुत सारे ऐसे युवक-युवतियाँ हैं जो पहले प्रेम करते हैं, बाद में विवाह हो जाता है — चाहे वह किसी भी तरह, बलपूर्वक, भागकर, या जैसे भी घरवालों की सहमति से हो जाए। इसके बाद आगे चलकर जब एक-दूसरे के बारे में सही अवस्था ज्ञात होती है, तो एक-दूसरे की कमियां सामने आने लगती हैं, और धोखाधड़ी के मामले, पुराने संबंध उजागर होते हैं। फिर परिस्थिति यहां तक खराब हो जाती है कि वे न घर के रहते हैं, न घाट के। माता-पिता की भी इज्जत दांव पर लग जाती है। अगर वह संबंध को छोड़ते हैं, तब भी बदनामी होती है; अगर संबंध निभाते हैं, तब भी मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में डिवोर्स केसेज और प्रेम-विवाह के कई झंझट सामने आते हैं।

महाराज जी का जवाब

शास्त्रीय पद्धति के पारंपरिक विवाह की चर्चा करें तो हमारे सनातन धर्म के परिवार बड़े मंगलमय रहे हैं। उनमें कोई विशेष अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश लोगों का परिवार और संतान सुखी जीवन पाते थे।


पुराने और आधुनिक विवाह पद्धति की तुलना

पहले, दशकों तक लड़के और उसके परिवार का परिचय गुप्त रूप से लिया जाता था। आस-पड़ोस में बैठकर, व्यवहार देखकर जाना जाता था कि कौन कैसा है। लड़की, लड़के को मंडप पर देखकर ही चुनती थी; लड़का, लड़की को शादी के बाद घर आकर देखता था। फिर भी जीवनभर निर्वाह और परस्पर प्रेम रहता था।

आज, खुले प्रेम-सम्बंध और प्रेम-विवाह के परिणाम विकृत हो रहे हैं। लोग प्यार के नाम पर विवाह करते तो हैं, लेकिन अगर किसी एक बात में मतभेद या धोखा मिल गया, तो तुरंत बंटवारा या तलाक की बातें होने लगती हैं। गांवों में तो ऐसा होता है कि यदि पति-पत्नी में दिन में लड़ाई भी हो जाए, तो शाम होते-होते दोनों फिर साथ भोजन कर लेते हैं — तलाक शब्द का प्रयोग तक नहीं होता।


गहरे मानसिक तनाव व सामाजिक दबाव

महाराज जी बताते हैं कि प्रेम-विवाह के ऐसे जोड़े, जब मानसिक तनाव से गुजरते हैं — परिवार, समाज, माता-पिता के मान-सम्मान पर असर आता है। कभी-कभी बेटियाँ मायके जाने की धमकी देती हैं मगर शाम तक फिर घर-वापसी से जीवन सामान्य हो जाता है। ग्रामीण पृष्ठभूमि का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि वहां प्यार बहुत था, आज जब छूट ज्यादा है, तो उसी की दुर्दशा सबसे ज्यादा हो रही है।

यदि बचपन में किसी से गलती हो भी जाए तो विवाह के बाद उसे नहीं दोहराना चाहिए। लेकिन आज की पीढ़ी में मनमानी और खुले व्यवहार के चलते, वैवाहिक बंधन में जाने के बाद भी संबंधों में ईमानदारी की कमी हो गई है। जैसे ही थोड़ी सी प्रतिकूलता आती है, मन भटक जाता है।


बिना धर्म के सामाजिक समस्या का समाधान असंभव

महाराज जी कहते हैं, बहुत सारे प्रश्न ऐसे हैं जिनका समाधान धर्म के आश्रय के बिना नहीं हो सकता। हमारे शास्त्र प्यार और आदर्श पूर्वक भरे पड़े हैं। उदाहरण देते हुए वह बताते हैं कि अनुसूया जी ने अपने पति की आराधना और पतिव्रत के बल पर भगवान को भी बालक बना दिया था — यह भारतीय संस्कृति का गौरव है।

आज के प्रेम, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड, लिविंग रिलेशनशिप सबकी तुलना करते हैं। अगर प्रेम विवाह के बाद भी परिवार का त्याग करके जो संबंध बनाया है, उसमें भी अगर वफादारी नहीं है, तो क्या लाभ? दोनों तरफ यदि समर्पण है, तो उस प्रेम की जीवनपर्यंत रक्षा की जानी चाहिए। लेकिन बहुत बार प्रेमविवाह प्रेम के लिए नहीं, बल्कि काम (वासना) के कारण होते हैं। जैसे ही उस काम में बाधा आती है, संबंध बिगड़ने लगते हैं, और पूरा परिवार संकट में आ जाता है। इसलिए धर्म के रास्ते चलना ही उचित है।


यदि गलती हो जाए, तो जिम्मेदारी

अब यदि कभी प्रेमविवाह हो भी जाए, उसमें गड़बड़ी हो जाए, तो जिम्मेदारी है कि दोनों दिल से कसम खाएं कि अब कभी गलती नहीं दोहराएँगे। अगर दोनों पूरे दिल से संकल्प लें कि वे केवल एक-दूसरे के रहेंगे, तो वैवाहिक जीवन सफल हो सकता है — पर अक्सर ऐसा होता नहीं।

जीवन में धर्म को अपनाइए, बच्चों को धर्म की राह पर चलाइए, ताकि उनका future अच्छा हो। अधार्मिकता की राह पर थोड़ा सा भी भटकेंगे तो खुशी, सफलता, परिवार सभी संकट में पड़ जाते हैं। मन चंचल है, बार-बार नई चीज़ चाहता है, और अध्यात्म से ही मन को संयमित रखा जा सकता है।


ब्रह्मचर्य और चार आश्रमों का महत्व

महाराज जी भारतीय सनातन धर्म के चार आश्रमों — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास — की व्यवस्था बताते हैं। उनका कहना है कि सबसे पहले ब्रह्मचर्य आश्रम पालन करना चाहिए, जो नींव है। यदि नींव ही गड़बड़ हो गई तो भवन (गृहस्थ या संन्यास) भी गड़बड़ ही होंगे।

आज बच्चों में अध्ययन की अवस्था में व्यसन और बुरे आचरण के बीज पनप रहे हैं। 25 साल की उम्र तक यदि कोई बुरा व्यवहार या व्यसन में न पड़े, तो वह अच्छा विद्यार्थी, अच्छा नागरिक बन सकता है। शुरू से ही अगर बुरी आदतें घर कर लेंगी, तो भविष्य में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, और अनैतिकता उसकी प्रकृति बन जाएगी।


राष्ट्र और धर्म की रक्षा

महाराज जी आर्मी के जवानों का विशेष सम्मान करते हैं, क्योंकि वे राष्ट्र की सेवा में समर्पित हैं। सैनिकों का बलिदान, ईमानदारी, अनुशासन, और कर्तव्यभाव आचरण में होना चाहिए। यदि नागरिक, विशेषकर युवा, धर्म और नैतिकता से विमुख हो जाएंगे तो देश का भविष्य अंधकारमय होगा।


मन और विश्वास संबंध में सबसे जरूरी

पति-पत्नी के संबंध का आधार आपसी विश्वास है। अगर पति-पत्नी किसी और की तरफ आकर्षित हों, तो घर उजड़ जाता है। अपने साथी का सम्मान करें, समर्पित प्रेम रखें, तभी गृहस्थ जीवन सुखमय रहेगा। परिवार में आपसी विश्वास सबसे बड़ी पूंजी है; संतान के लिए, जीवनसाथी के लिए सहभागिता जरूरी है।


निष्कर्ष : धर्म की ओर लौटो

महाराज जी अंत में पुनः धर्म की ओर लौटने का आग्रह करते हैं। धर्म ही सिखाता है सच्चा प्रेम, सच्चा समाज, सच्चा परिवार। जब तक हम धर्म से दूर भागते रहेंगे, तब तक यही दुर्दशा, यही अशांति बनी रहेगी। अगर युवा व्यसन और व्यभिचार से बचे रहेंगे, तो वे घर, समाज, और देश सबमें सम्मानित और सुखी होंगे।


यह लेख महाराज जी द्वारा दिए गए पूरे प्रवचन की सारांशात्मक, क्रमशः एवं शब्दशः प्रस्तुति है, जिसमें उनके द्वारा दिये गए हर मुख्य बिंदु को यथावत रखने का प्रयास किया गया है। यदि आपको पूरे वर्ड-टू-वर्ड ट्रांसक्रिप्ट की पूरी स्क्रिप्ट चाहिए (फुल डीटेल या कॉपी), तो कृपया बताएं या किसी विशेष हिस्से पर और विस्तार से जानकारी चाहते हैं, तो अवश्य बताएं।

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