श्रीमान परम पूज्य वृन्दावन रसिक संत श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के भावों का सार – “मैं कुछ बड़ा पाना चाहता हूँ और भविष्य की चिंता से मुक्त होना चाहता हूँ” [Bhajan Marg]
यह प्रवचन एक पॉइंटवाइज, शब्द-ब-शब्द और विस्तारपूर्वक हिंदी आर्टिकल में दिया गया है ताकि 3000 शब्दों की गहराई में महाराज जी के विचारों का विश्लेषण हो सके।
1. मन की चंचलता और बड़ा पाने की इच्छा
- हैदराबाद के लक्ष्मीराम जी पूछते हैं कि मन हमेशा भविष्य की इच्छाओं, कल्पनाओं, आत्मसंदेह और कुछ बड़ा पाने की बेचैनी में उलझा रहता है।
- महाराज जी बताते हैं कि हर किसी का मन बड़ा बनने की ही चाह रखता है। कोई छोटा नहीं बनना चाहता।
- उदाहरण: डकैत भी बड़ा डकैत बनना चाहता है, बुरा आदमी बहुत बुरा बनना चाहता है।
- इसका कारण है कि हम बहुत बड़े के बच्चे हैं, भगवान के अंश हैं।
- भगवान सबसे बड़े हैं, तो उनके अंश भी बड़ा बनने की आकांक्षा रखते हैं। हम जिस दिशा में जाते हैं, वहां सबसे बड़ा बनना चाहते हैं।
2. मन का भ्रम: भूत, भविष्य और वर्तमान
- महाराज जी समझाते हैं कि मन केवल भविष्य की चिंता नहीं करता, भूतकाल की बातें और व्यर्थ चिंतन भी करता है।
- ये तीन बातें – भूत, भविष्य, और व्यर्थ – हमारे वर्तमान को बर्बाद कर देती हैं।
- जो समय वर्तमान में उपयुक्त उपयोग होना चाहिए, वह मन भूत-भविष्य में खो देता है।
- अगर हम वर्तमान को संभाल ले, तो भूत भी पवित्र हो जाएगा और भविष्य उज्जवल।
3. वर्तमान का महत्व और उसका पवित्र प्रयोग
- हमेशा वर्तमान ही हमारे लिए रहता है। “वर्तमान वर्तमान वर्तमान…” महाराज जी बार-बार बताते हैं।
- वर्तमान में पाप न करें, धर्मपूर्वक कार्य करें, नाम जप करें, पवित्र भोजन पावें, नशा न करें, व्यभिचार न करें।
- जो व्यक्ति इन नियमों का पालन करेगा, वह वास्तव में बड़ा बन सकेगा।
- भगवान के भक्त से बड़ा कोई पद नहीं है। भगवान स्वयं अपने भक्त का सम्मान करते हैं, उनके पीछे चलते हैं।
4. भक्त का सम्मान: भगवान की दृष्टि में
- महाराज जी उदाहरण देते हैं – भगवान जहां भक्त के चरण हैं, वहां हाथ रखते हैं, पीछे-पीछे चलते हैं, साथ नहीं छोड़ते।
- भगवान कहते हैं: “निरपेक्ष मुनि, शांत, निर्र्वैर, समदर्शी – ऐसे भक्तों के पीछे हम भी डोलते हैं।”
- भगवान के भक्त का सम्मान इतना बड़ा है कि स्वयं भगवान अर्जुन के पैर के पास सारथी के आसन पर बैठते हैं।
- महापुरुषों के चरणों का भगवान वंदन करते हैं, स्वयं नीचे बैठते हैं, भक्त को ऊपर बैठाते हैं।
5. सच्चे बड़प्पन की पहचान
- अगर सही में बड़ा बनना है तो भजन करना पड़ेगा, भगवान की कथा सुननी पड़ेगी, प्रेम करना पड़ेगा।
- भगवान मिल जाए तो बाकी सब माया है, सब कुछ भगवान की है।
- अतः अपनी इच्छा को भगवान के चरणों में समर्पित करें।
6. मन को शांत करने का उपाय
- मन को वश में करने का सबसे बड़ा उपाय – वर्तमान में जीना, नाम जपना, धर्म के कार्य करना।
- बीती बातों या भविष्य की चिंताओं में समय बर्बाद न करें।
- भगवान का स्मरण, लीला कथा सुनना, भजन करना – यही मन को स्थिर और शांत करने का मार्ग है।
7. बड़ा बनने की सही दिशा
- संसार में सभी बड़ा बनना चाहते हैं, पर असल बड़प्पन भक्त बनने में है – भगवान के प्रेम में डूब जाने में।
- उदाहरणों के माध्यम से महाराज जी दर्शाते हैं कि भगवान के भक्त का स्थान स्वयं भगवान के स्थान से भी ऊपर है।
8. निष्कर्ष, अमल और प्रेरणा
- महाराज जी सीधे शब्दों में कहते हैं – जो वास्तविक बड़प्पन चाहता है वह धर्मपूर्वक जीए, पाप से दूर रहे, नाम जपे, भजन करे और सब इच्छाएं भगवान में समर्पित करें।
- यही मार्ग मन को चिंता रहित, शांत और आत्मनिर्भर बनाता है।
- भविष्य की या भूत की चिंता में उलझना व्यर्थ है – वर्तमान में पवित्रता, धर्म और भक्ति की राह सबसे श्रेष्ठ है।
भजन मार्ग के सूत्र – पॉइंटवाइज
- सबका मन हमेशा बड़प्पन चाहता है
- मन भूत, भविष्य और व्यर्थ में उलझता है, जिससे वर्तमान बर्बाद होता है
- वर्तमान में पवित्र कार्य करें, धर्म का पालन करें
- भगवान के भक्त का दर्जा भगवान से भी ऊंचा है
- सही बड़प्पन भजन, प्रेम, और समर्पण में है
- इच्छा को भगवान के चरणों में समर्पित करें
- मन को शांत करने का उपाय – वर्तमान में जीना और भजन करना
महाराज जी की बातों को विस्तार से :
श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज कहते हैं –
- “मन की चंचलता हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। मन को बड़ी-बड़ी इच्छाओं और भविष्य की चिंता में उलझाना हमारी आदत बन गई है। हर मन बड़ा बनना चाहता है, कोई छोटा या तुच्छ नहीं बनना चाहता। डकैत भी बड़ा डकैत; बुरा आदमी भी सबसे बुरा बनने की इच्छा रखता है। इसका कारण है – हम बड़े के बच्चे हैं, भगवान के अंश हैं। भगवान सबसे बड़े हैं, तो उनके अंश भी बड़े बनने की इच्छा रखते हैं।”
- “हमारा मन हर समय भूत (बीती बातें), भविष्य (आने वाली समस्याएँ) और व्यर्थ (अप्रासंगिक बातों) में उलझता है, जिसे वर्तमान को सार्थक बनाने का समय नहीं मिलता। ये तीन भ्रम मनुष्य को व्यर्थ कर देते हैं। अगर हम वर्तमान को संवारे, तो हमारा भविष्य भी उज्जवल तथा भूत भी पवित्र होगा।”
- “हर समय वर्तमान ही हमारे हाथ में रहता है, बीता भूत और आने वाला भविष्य हमारे बस में नहीं। वर्तमान में अगर हम धर्मपूर्वक कार्य करें, भगवान का नाम लें, पवित्र भोजन करें और किसी प्रकार का पाप, व्यभिचार, नशा न करें तो हम वास्तव में बड़ा बनेगें, और बड़ा क्या? भगवान के भक्त बनना, सबसे बड़ा पद है। भगवान भी भक्त के पीछे-पीछे चलते हैं। उनकी चरण रज को अपने ऊपर स्थान देते हैं।”
- “गुरु अर्जुन के चरणों के पास बैठते हैं, भगवान स्वयं अर्जुन के जूतों के पास सारथी बन बैठे हैं – यह सच्चे भक्त का सम्मान है। महापुरुषों के चरणों का वंदन भगवान करते हैं..”
- “तो वास्तविक बड़प्पन भक्तत्व में है, भजन में है, भगवान के प्रेम में है। बाकी जितना भी संसार माया है, सब भगवान की ही है। इसलिए भगवान का भजन करो। अपनी मन की इच्छाओं को भगवान के चरणों में समर्पित करो।”
विस्तृत चर्चा और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
- मनुष्य का स्वभाव है कि वह जीवन में श्रेष्ठता की ओर बढ़ना चाहता है। बच्चा भी आसमान छुना चाहता है, बुजुर्ग भी बड़े सम्मान की कामना करता है।
- Maharaj ji कहते हैं – “हम सब बड़े के बच्चे हैं” – यहाँ बड़ा का तात्पर्य केवल संसार में नाम-प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि चेतना की श्रेष्ठता से है, जो भगवान से आती है।
- चंचल मन में भूत, भविष्य, और व्यर्थ की बातें नित नई चिंता पैदा करती हैं। इसके कारण हम वर्तमान को खो बैठते हैं, जिस पर हमारा सबसे अधिक अधिकार होता है।
- यदि हम अपने आचरण, कर्म, विचार, और मनोदशा को वर्तमान के अनुरूप शुद्ध रखें, धर्म के अनुसार जीएं, तो भगवान के सान्निध्य की प्रबल संभावना बनती है।
- अहंकार, पाप, नशा, व्यभिचार, और अन्य अपवित्र कर्म – ये हमें भगवान की ओर नहीं, बल्कि माया की ओर ले जाते हैं। Maharaj ji स्पष्ट निर्देश देते हैं कि इनसे बचो!
मूल्य और शिक्षा
- “भक्त से बड़ा कोई पद नहीं” – यह वचन हमें जीवन की वास्तविकता से जोड़ता है। पद, प्रतिष्ठा, धन – ये सब अस्थायी हैं।
- भगवान का सम्मान, भक्त के चरणों में उनके बैठने की कथा – अहंकार त्याग, प्रेम, नम्रता, और आध्यात्मिकता का श्रेष्ठ आदर्श।
- अर्जुन के उदाहरण से स्पष्ट है – भक्ति में ही वास्तविक ऊंचाई है। संसार में श्रेष्ठता तभी आती है जब हम भगवान से जुड़ जाते हैं।
- Maharaj ji अंत में कहते हैं – भगवान का भजन करो और अपनी सारी इच्छाएं भगवान के चरणों में समर्पित कर दो।
ऐसे करें अमल:
- हर सुबह और रात, भगवत स्मरण करें
- पवित्र भोजन करें, नशा और अपवित्र कर्म छोड़ें
- कर्म धर्म के अनुसार हों
- अपनी सारी इच्छाओं को भगवान के चरणों में समर्पित करें
- वर्तमान में जीएं, भूत व भविष्य की चिंता त्यागें
- भगवान की लीला कथा सुनें, भजन करें, प्रेम के भाव स्थापित करें
यहां पर श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का पूरा प्रवचन उन बिंदुओं, भावों, और धार्मिक-आध्यात्मिक संदेशों के साथ प्रस्तुत किया गया है जो हर मनुष्य के विकास, मन की शांति, और परम सुख की प्राप्ति में सहायक हैं। इस मार्गदर्शन में जीवन की प्रत्येक जिज्ञासा का समाधान है – चिंता से मुक्ति, सच्चा बड़प्पन, और परमात्मा की कृपा।
(यह लेख महाराज जी के प्रवचन आधार पर तैयार किया गया है, प्रत्येक बोली को विस्तार और बिंदुवार प्रस्तुत किया गया है)







