कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जिसका धार्मिक, सांस्कृतिक और समाजिक महत्व अपार है। यह पर्व कार्तिक महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। कार्तिक मास स्वयं में धार्मिक गतिविधियों और पुण्य कार्यों के लिए समर्पित है, लेकिन यह पूर्णिमा, वह भी जब देव दीपावली का संयोग हो, पूरे मास की साधना, उपासना और तितिक्षा का चरम बिंदु है।
1. कार्तिक पूर्णिमा: तिथि और विशेषता
कार्तिक पूर्णिमा 2025 में 4 नवंबर की रात 10 बजकर 36 मिनट से आरंभ होकर 5 नवंबर की शाम 6:48 तक रहेगी। कार्तिक मास शरद ऋतु की सुवास, निर्मलता और आत्मिक सकारात्मकता का पर्याय है। पुराणों और शास्त्रों में उल्लेखित है कि कार्तिक महीने में किए गए स्नान, दान, व्रत, उपासना और श्रीविष्णु की आराधना का अति विशेष फल प्राप्त होता है।
2. धार्मिक पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
कार्तिक पूर्णिमा के साथ अनेक ऐतिहासिक, पौराणिक और लोककथाएं जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता स्वयं काशी के घाटों पर अवतरित होकर दीपोत्सव मनाते हैं, जिसे ‘देव दीपावली’ कहा जाता है। यही नहीं, यह दिन भगवान विष्णु के लक्ष्मी-नारायण स्वरूप की उपासना का भी विशेष अवसर है। इस पूर्णिमा का संबंध भगवान शिव, विष्णु और चंद्रमा से भी विशेष रूप से है। देवी तुलसी और पीपल की आराधना इस दिन की जाती है।
3. स्नान, दान और पुण्य की परंपरा
भारतीय सभ्यता में नदी-स्नान को विशेष स्थान प्राप्त है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, सरस्वती, गंडक आदि नदियों में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पिछले जन्मों तक के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्नान के पश्चात्, दान-पुण्य—विशेषकर अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, गाय, भूमि आदि—का अत्यंत महत्व है।
4. पूजा विधि और उपासना के नियम
कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान करना श्रेष्ठ माना गया है। गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान का विशेष महात्म्य है। तत्पश्चात्, शुद्ध वास्म पहनकर भगवान विष्णु, लक्ष्मी और शिव की पूजा की जाती है। तुलसी के पौधे के समक्ष दीप जलाकर पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाते हैं। प्रातः 7:58 से 9:20 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त है। इसी प्रकार, शाम को प्रदोषकाल—5:15 से 7:51 तक—भी शुभ कार्यों और दीपदान के लिए उत्तम है।
विशेष ध्यान देना चाहिए कि श्रद्धा, नियम, साधना तथा आस्था का पूर्ण निर्वहन इस दिन अत्यंत आवश्यक है। सामूहिक उपासना, भजन-कीर्तन, कथा-श्रवण, दीपदान—ये सब कार्तिक पूर्णिमा के दिन के मुख्य अंग हैं। शाम के समय दीपदान अवश्य किया जाता है, जो पापों का नाश और पुण्य-प्राप्ति का साधन माने जाते हैं।
5. योग और शुभ संयोग
2025 की कार्तिक पूर्णिमा पर ‘सर्वार्थ सिद्धि योग’ और ‘रवि योग’ दोनों ही उपस्थित रहेंगे। यह संयोग अविरल ऊर्जा, शुभता और सिद्धि की प्रतीक है। शास्त्रीय मान्यता है कि इन योगों में किया गया कोई भी धार्मिक अथवा सांसारिक कार्य विशेष सफल होता है। इस दिन दीप, अग्नि, शंख, घंटा, पुष्प, फल, धूप और नैवेद्य का अधिकाधिक उपयोग होता है।
6. देव दीपावली: दिव्यता और भव्यता का उत्सव
बनारस (काशी) में देव दीपावली का आयोजन इस दिन की प्रतिष्ठा को द्विगुणित कर देता है। यह पर्व गंगा घाटों पर असंख्य दीप प्रज्वलित कर, नदियों को चांदनी और दीपों के अद्भुत संगम से सजा देता है। इसी अवसर पर हजारों श्रद्धालु नावों, घाटों और मंदिरों में उपस्थित होकर गंगा आरती, दीपदान और भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं। देवताओं के साथ मनुष्य का यह उत्सव आध्यात्मिक ऊर्जा का विशेष संगम है।
7. धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता
कार्तिक पूर्णिमा केवल पूजा-पाठ या स्नान-दान तक ही सीमित नहीं है। यह दिन सामाजिकता, लोकपरंपराओं, मेलों और सांस्कृतिक आयोजनों का भी पर्व है। कई जगहों पर मेला, कथा, भंडारा, वृक्षारोपण और पंथ-भक्ति आयोजनों की परंपरा है। वृंदावन, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, गया तथा हेमकुंट साहिब, पुष्कर आदि तीर्थस्थलों पर यह पर्व अत्यंत भव्यता के साथ मनाया जाता है।
8. लोककथाएं और पौराणिक संदर्भ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर त्रिलोक की रक्षा की थी, जिससे इसका नाम ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी पड़ा। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन तुलसी विवाह, रुक्मिणी विवाह और सत्यनारायण व्रत आदि भी मनाए जाते हैं। इस दिन दत्तात्रेय जयंती और गुरुनानक जयंती का भी संयोग रहता है, जो इसे और भी विविधता और आध्यात्मिकता से भर देता है।
9. उपवास का विशेष महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन उपवास करने या केवल फलाहार ग्रहण करने की भी परंपरा है। श्रद्धालु इस दिन एक समय भोजन करते हैं, या किसी विशेष वस्तु का त्याग करते हैं। रात के समय दिशा-भ्रमण, भगवान की कथा, स्तोत्र, मंगलाचरण आदि का आयोजन कर पुण्य अर्जन किया जाता है।
10. चंद्रदर्शन और चंद्रपूजन
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजा और दर्शन का भी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी पूरी आभा में रहता है, और उसकी चांदनी से पृथ्वी को जीवन, उत्साह और स्वास्थ्य की ऊर्जाएँ प्राप्त होती हैं। चंद्र देव को दूध, चावल, सफेद पुष्प आदि अर्पित किए जाते हैं, जिससे पाप-क्षय होता है।
11. कार्तिक पूर्णिमा के साथ जुड़े पर्व
इस दिन हिन्दू धर्म के अलावा, सिख धर्म के अनुयायी भी गुरुनानक जयंती मनाते हैं। कई स्थानों पर दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस का स्मरण किया जाता है। अतः कार्तिक पूर्णिमा धार्मिक समन्वय, सहिष्णुता एवं एकता का भी प्रतीक है।
12. पारिवारिक और सामूहिक आनंद
यह दिन पारिवारिक एकता, सामूहिकता, मेल-मिलाप और सामूहिक साधना-अनुष्ठान का पर्व है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा-अर्चना, दीपदान, भजन, कीर्तन, कथा-पाठ और सामूहिक भोज में भाग लेते हैं। जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा करने, भोजन कराने, वस्त्र दान देने, पशु-पक्षियों को दाना खिलाने जैसी गतिविधियाँ लोक चेतना को जागृत करती हैं।
13. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कार्तिक पूर्णिमा
आज के समय में, कार्तिक पूर्णिमा के पर्व ने अपनी सांस्कृतिक चेतना और आध्यात्मिक महत्व को बनाए रखा है। डिजिटल मीडिया के दौर में भी, श्रद्धालु ऑनलाइन पूजा, कथा, जागरण आदि में भाग लेते हैं। पर्व के आयोजन का स्वरूप बदला है, लेकिन उसकी आत्मा—पवित्रता, अनुशासन, सेवा, साधना, और समर्पण—आज भी जीवंत है।
14. तुलसी पूजा और दीपदान
तुलसी के पौधे की पूजा, दीपदान, और तुलसी विवाह जैसी रस्में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों में काफ़ी महत्व रखती हैं। तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय है। दीपदान से अंधकार का नाश तथा आत्मिक और सांसारिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति मानी जाती है।
15. समापन एवं सन्देश
कार्तिक पूर्णिमा त्योहार मोक्ष, शांति और कल्याण की चरम साधना का पर्व है। यह दिन धर्म, आस्था, सेवा, और सदभावना का साकार रूप है। इस दिन किए गए पुण्यकर्म, स्नान, पूजन, दान और साधना का प्रभाव जीवन को सौम्यता, सकारात्मकता और समृद्धि से भर देता है। लोककथा, पौराणिकता और सामाजिक एकता का यह पर्व, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना की अनूठी मिसाल है।
कार्तिक पूर्णिमा सभी श्रद्धालुओं, समाज और राष्ट्र में चिरस्थायी सुख, शांति और समृद्धि का संचार करे; ऐसी मंगलकामना के साथ पर्व का समापन होता है।







