प्रश्न- अगर कोई साधु-संन्यासी बनकर रुपये इकट्ठा करता है और माता-पिता, स्त्री-पुत्रोंको रुपये भेजता है, उनका पालन-पोषण करता है तो क्या उसको दोष लगेगा ?
उत्तर- जो साधु-संन्यासी बनकर माँ-बाप आदिको रुपये भेजते हैं, वे तो पापके भागी हैं ही, पर जो उनके दिये हुए रुपयोंसे न्में अपना निर्वाह करते हैं, वे भी पापके भागी हैं; क्योंकि वे दोनों त्याग ही शास्त्र-आज्ञाके विरुद्ध काम करते हैं। माता-पिताकी सेवा तो वे गृहस्थाश्रममें ही रहकर करते, पर वे अवैध काम करके बन संन्यास-आश्रमको दूषित करते हैं तो उनको पाप लगेगा ही। वे बगर पापसे बच नहीं सकते !
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.