आपके दिए गए वीडियो पर आधारित, श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के दिव्य प्रवचन से प्रेरित 2000 शब्दों का हिंदी लेख प्रस्तुत है। इसमें देवउठनी एकादशी का महत्व, कथा, पूजा विधि, और जीवन में आने वाले लाभों को विस्तार से समाहित किया गया है।
देवउठनी एकादशी 2025: तिथि, महत्त्व, कथा और विशेष विधि – श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी की वाणी में
हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। सनातन धर्म में यह तिथि अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाती है। वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी 2 नवम्बर को पड़ेगी, जबकि परायण का शुभ मुहूर्त 3 नवम्बर को प्रातः 6:34 से 7:58 तक रहेगा।
श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के अनुसार यह व्रत अत्यंत फलदायक, पापनाशक और जीवन में आनंद, प्रसन्नता, समर्पण, और आध्यात्मिक उत्थान लाने वाला है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीनों की योग निद्रा के बाद जागृत होते हैं। इन चार मासों में भगवान विष्णु शयन करते हैं और सृष्टि संचालन का कार्य भगवान शंकर संभालते हैं। देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु अपनी शैय्या छोड़ते हैं और पुनः सृष्टि संचालन का दायित्व ग्रहण करते हैं। यह पर्व बेहद श्रद्धा से मनाया जाता है, जिसमें भक्तगण भगवान की पूजा, भजन, ध्यान, कथा श्रवण और व्रत का पालन करते हैं।
कथा और तात्पर्य
पूर्व काल की एक कथा के अनुसार एक राजा था, जो अत्यंत धार्मिक और सत्संगी प्रवृत्ति का था। उसने राज्य में एकादशी के दिन पशुओं को भी अन्न नहीं देने का आदेश दिया था। एक अन्य राज्य से एक व्यक्ति नौकरी के लिए आया, जिसे राजा ने एक शर्त पर नौकरी दी – एकादशी को अन्न ग्रहण नहीं करना। कुछ दिनों तक वह व्यक्ति फलाहार करता रहा, लेकिन फिर उसने भोजन की इच्छा प्रकट की, तो राजा ने उसे वन में भोजन करने की अनुमति दी, साथ ही यह निर्देश दिया कि भोजन भगवान को अर्पित करके ही करना।
वह व्यक्ति दूर वन में गया, भोजन बनाया और भगवान को निवेदन किया। भगवान सरल स्वभाव के कारण तत्काल प्रकट हुए, पीली पीतांबर और मोर मुकुट धारण करके। व्यक्ति ने भगवान को भोजन कराया और फिर स्वयं ग्रहण किया। पुनः एकादशी आई तो राजा ने देखा कि उसका सामान नही बचा, व्यक्ति ने बताया – भगवान आकर भोजन को स्वीकारते हैं। राजा ने अगली एकादशी को छुपकर देखा, और वास्तव में भगवान भगवत स्वरूप में आए और भोजन ग्रहण किया। एक मौके पर भगवान ने देर लगाई, जिससे व्यक्ति निराश होकर नदी में आत्मदान करने चला, तभी भगवान प्रकट हुए और उसे अपने साथ वैकुण्ठ ले गए।
इस कथा से सीख मिलती है कि केवल धार्मिक नियमों से ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समर्पण और श्रद्धा से ही ईश्वर प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत, नियम, पूजा, दान, भजन – सब आवश्यक हैं, किंतु संपूर्ण प्रेम और श्रद्धा सबसे बड़ी पूंजी है। राजा ने बाद में समर्पण भाव अपनाया और अंत में वह भी भगवान के धाम को प्राप्त हुआ।
एकादशी का महत्व और लाभ
शास्त्रों के अनुसार देव उठनी एकादशी अत्यंत बड़ी महत्व वाली है। इसके व्रत से अशांति मिट जाती है, प्रसन्नता एवं आनंद की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा, नियम, संयम एवं ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि का पालन करके करना चाहिए।
- तुलसी-विवाह विधि : इस पर्व पर तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह भी सम्पन्न किया जाता है। इसे गृह सुख, समृद्धि और पित्त दोष निवारण के लिए वरदान माना जाता है।
- पापनाश और जन्मों के दोष मिटाना : श्री ठाकुर जी के अनुसार इस व्रत से 10,000 जन्मों के पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।
- पितृ दोष से मुक्ति : जो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित हैं, उन्हें विशेष रूप से देवउठनी एकादशी का व्रत करना चाहिए, इससे पितृ दोष दूर होता है।
- चंद्र ग्रह की अनुकूलता : यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो या परेशान करता हो, तो यह व्रत लाभकारी है।
- राजसूर्य एवं अश्वमेध यज्ञ का फल : जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे सौ राजसूर्य यज्ञ और अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है।
- भाग्य जाग्रत एवं सुख-शांति : व्यक्ति का भाग्य जागृत होता है, जीवन से संकट दूर होते हैं, तथा घर-परिवार में प्रेम एवं सुख की स्थापना होती है।
देवउठनी एकादशी की पूजा विधि और नियम
इस पर्व को विशेष नियमों एवं विधि से मनाना अत्यंत शुभ है।
पूजा व व्रत विधि:
- प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- व्रत का संकल्प लें – भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का ध्यान करें।
- घर, मंदिर या जहाँ पूजन करते हैं वहाँ भगवान विष्णु, तुलसी और शालिग्राम का पूजन करें।
- तुलसी शालिग्राम विवाह पूरी श्रद्धा से सम्पन्न करें।
- नियम, संयम एवं जितना हो सके ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- सर्वाधिक समय नाम जप, ध्यान, भजन, सत्संग में बिताएं।
- हिंसा, क्रोध, काम, लोभ आदि से दूर रहें।
- तीर्थ परिक्रमा, दान-पुण्य करें।
- यदि निर्जला व्रत सम्भव न हो, तो फलाहार, दूध, दही अथवा पेय पदार्थ से व्रत रखें।
- पूर्णिमा तक प्रतिप्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, पूजा का नियम बनाये रखें।
व्रत के नियम:
- इस व्रत को पूर्ण संयम और श्रद्धा से करें।
- परिवार के सभी सदस्य, विशेषकर गृहिणी और बच्चे भी जितना सम्भव हो पालन करें।
- इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु का ध्यान, श्रीकृष्ण की कथा, भागवत श्रवण, भजन करें।
- संध्याकाल में भगवान विष्णु को दीपदान करें।
जीवन पर प्रभाव
श्री ठाकुर जी के अनुसार, देवउठनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में पापों का नाश, अशांति का संहार, प्रसन्नता का प्रवेश होता है। उसकी साधारण पूजा भी सौ राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ का फल देती है। संकट और कलह, घर के झगड़े दूर हो जाते हैं, प्रेम-सद्भाव की स्थापना होती है। भक्ति, समर्पण और श्रद्धा से किया गया यह व्रत आपको ईश्वर की कृपा और मोक्ष प्रदान करता है।
देवउठनी एकादशी के पर्व पर सभी प्रभु प्रेमियों से श्री ठाकुर जी कहते हैं – श्रद्धा से व्रत रखें, प्रेम से पूजन करें, संतोष एवं संयम का पालन करें। जीवन को आध्यात्म का मार्ग दिखाएं। नियमित सत्संग, भजन और नाम जप से घर-परिवार में शांति, सुख, प्रेम, समृद्धि आयेगी। प्रभु की कृपा से आपका भाग्य जागृत होगा, पितृ दोष और अन्य संकट दूर होंगे। इसलिए श्रद्धा एवं प्रेम से यह व्रत अवश्य करें।
सारांश
देवउठनी एकादशी का पर्व शास्त्रों के अनुसार सर्वाधिक पुण्य फलदायक है। जब भगवान विष्णु चार महीनों की योग-निद्रा के बाद जागते हैं, सम्पूर्ण सृष्टि के संचालन का भार पुनः ग्रहण करते हैं। यह तिथि विवाह, गृहस्थ सुख, पितृ दोष निवारण, चंद्र ग्रह अनुकूलता, तथा धर्म-आध्यात्म के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। भक्तों को चाहिए कि वे श्री ठाकुर जी के संवाद के अनुसार श्रद्धा, नियम, संयम, समर्पण, भजन, व्रत, दान-पुण्य से इस पर्व को मनाएं और जीवन को उत्तम बनाएं।
राधे-राधे!
यह लेख श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित है। आप इस अद्भुत पर्व की जानकारी अपने परिवार एवं मित्रों के साथ साझा करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और सनातन धर्म का संदेश फैलाएं। भगवान नारायण आपकी रक्षा और कल्याण करें।
व्रत का दिन – 2 नवंबर 2025
पारण मुहूर्त – 3 नवंबर 2025, 6:34 से 7:58 AMyoutube
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