प्रश्न- महाराज। जी, आज भ्रष्टाचार बहुत बड़े स्तर पर फैला हुआ है, आज वह देख रहा है कि वह ले रहा है, तो मैं भी ले रहा हूँ, तो श्री महाराज, इसका अंत कहाँ है?
महाराज जी का उत्तर-
देखिए, मैंने सत्संग में कहा है कि जब तक किसी व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिकता नहीं है, वह पशु है।
मानव रूप में भी वह राक्षस और पशु है क्योंकि उसे पता ही नहीं क्या धर्म है। अगर उसे अध्यात्म नहीं पता है,
तो उसे डर किससे लगेगा। जब तक भगवान और धर्म की बात नहीं है.
बात किसान की कर लेते हैं। वह एक रुपये की गेंहू बेचकर आया, जब घर में गिना तो उसमें दस रुपये ज्यादा निकले।तो किसान ने पहले कहा कि जाकर उसका पूरा पैसा वापस कर दो। वह दस रुपये तुम्हारे ज्यादा हैं, ले जाओ, तब हमारे घर कोई पानी पिएगा, ऐसे नहीं पिएगा।
अब अगर आज के समय में देखें तो उसे दबाकर रखना चाहिए, दस तिनके में आ गए मगर वह दस तुम्हारे लिए हानिकारक होंगे,
तो आज का समाज चरित्र और धन पाने के लिए धर्म बेच रहा है,
पहले था कि सब कुछ चला जाए, मगर चरित्र और धर्म नहीं जाएगा,
आज दोनों को भुलाया जा रहा है। आप देखिए अब कैसे बनेगा? बिना आध्यात्म के कैसे बुद्धि बचेगी?
अब समस्या यह है कि आप सही मायने में आध्यात्म तब समझें जब आध्यात्म में स्थित हों,
अगर हमारे भीतर पैसे की, सुख की लालसा नहीं है, तब ही हम समाज को अध्यात्म का आईना दिखा सकते हैं।
मगर अगर हमने अध्यात्म भी बेच दिया,
तो आध्यात्म रंग नहीं चढ़ेगा, अब
ऐसा आध्यात्म भी दिखावा बन रहा है, अब सुधर नहीं सकता, सुधार तभी होगा जब सत्य मार्ग पर चलेंगे
और सत्य मार्ग पर चलना वही जानेंगे जो सत्य मार्ग पर चलेंगे,
अब सत्य मार्ग पर चलने वाला मिलना बहुत मुश्किल हो गया है।
भगवान की कृपा से कुछ संत ऐसे हैं जिनकी बातों से हम जान सकते हैं
क्या धर्म है और क्या अधर्म है।
आज के समाज में यह युवा पीढ़ी,
धर्म और अधर्म का कोई मतलब नहीं,
बस वासना की पूर्ति महत्त्वपूर्ण है, जो आज प्रचलित है,
सो वही आगे बढ़ा रहे हैं – बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड,
सब यही प्रचलित है, इससे हमारे समाज को बड़ी हानि हो रही है क्योंकि
परस्त्रीगमन अब स्वभाव बन गया है।
घर में स्वार्थी स्वभाव नहीं जाएगा,
पति-पत्नी में कभी प्रेम नहीं रहेगा,
वे एक जगह टिक नहीं सकते क्योंकि उनका स्वभाव चंचल हो गया है,
अब इसी चंचलता में हिंसा आएगी,
आप देखिए इस चंचलता की वजह से हिंसा बढ़ी है, व्यसन बढ़े हैं, नशा बढ़ा है,
कोई किसी को धोखा दे रहा है, कोई किसी को किसी तरीके से ब्लैकमेल कर रहा है,
यह गंदगी बढ़ती रहेगी क्यूंकि अब हम और आप भी मान रहे हैं,
अगर कोई सरकार भी है तो कोई मुझे नहीं रोकेगा,
मैं बच्चा हूँ,… अगर आप मान गए तो कोई नहीं रोकेगा।
अब धर्म क्या कहता है और यह सब क्या हो रहा है?
कैसे कोई धर्म समझेगा.
भारत के चरित्र की रक्षा कैसे होगी जब मैंने देखा कि
अधर्मी आ रहे हैं। अगर वे हमें छू लें
तो हजारों ने अपनी देह अग्नि में समर्पित की मगर अधर्मियों को छूने नहीं दिया।
हम उसी भारत के लोग हैं, अब हम क्या कर रहे हैं,
सोच समझ कर कहिए,
मैं उससे टूट गया, उससे मित्रता कर ली,
उससे टूटा, उससे मित्रता कर ली,
आप जिस सभ्यता की भाषा में बोल रहे हैं, गाँव की भाषा में आकर बोलिए तो क्या कहेंगे,
अब आपकी वह कौन सी महानता रह गई, जो चरित्र नष्ट हो गया,
वह आपकी बुद्धि को भी अपवित्र कर देगा, आपको आगे नहीं बढ़ने देगा,
अब आप दान नहीं देंगे,
छात्रा जब चंचल हो जाएगी
तो वह कितनों को ब्लैकमेल करती है,
छात्रा जब चंचल होती है
तो दूसरों को ब्लैकमेल करती है और अपने को नियंत्रण में नहीं रख पाती,
अपना जीवन नष्ट कर देती है, भयंकर व्यसनों में चली जाती है,
नशा, नशाखोरी एक जगह नहीं, बल्कि बहुत ऊँचे स्तर तक फैल रही है।
अब हम लोग, जो अपने सुख को सुख मानते हैं, पैसे के प्रबलता के कारण,
अपना कर्तव्य त्याग रहे हैं,
निर्दोष को बचा सकते हैं, मगर दोषी से पैसे मिल गए हैं,
तो निर्दोष फँस जाएगा और दोषी
मुंह खोलकर घूमेगा,
तो जब वह पैसा उनके स्थान पर जाएगा तो उनके घर में भी uproar पैदा करेगा,
वे यहाँ आएंगे,
जिन्हें आप बहुत बड़े अफसर मानते थे, बहुत मान-सम्मान वाले लोग हैं,
वे अकेले में आकर रोते हैं, न उन्हें पता कैसे आँसू बहते हैं, कैसी भाषा निकलती है,
तब लगता है कि जो ईश्वर का सत्य मानता है वही सुखी है।
यदि जीवन में थोड़ा भी असत्य है,
तो मन में प्रतिध्वनि होती है,
फिर पछतावा आता है, प्रकृति पहले ही गंदी हो चुकी,
फिर पछतावे में पड़ना पड़ता है, सर,
अब क्या हुआ, जैसे आपने कहा, अब सत्य का पालन करो,
कोई-कोई सत्य का पालन करने की कोशिश भी करते हैं आपके सत्संग या बड़े-बड़ों की बात सुनकर,
तो बहुत हाई-लो होता है, महाराज जी,
बहुत उदाहरण सामने आते हैं, आपके पास आते हैं और रोते हैं,
एक अधिकारी ने कहा कि आपके बयान का पालन कर रहे हैं, तो निलंबन की नौबत आ गई,
ऊपर वाले कहते हैं, यह करो, नहीं करोगे तो निलंबन करा दूँगा,
कहिए, अब क्या कर्तव्य निभाऊं या धर्म निभाऊं,
अगर अधिकारी का धर्म मानूं तो गड़बड़,
अगर आपकी बात मानूं तो नौकरी जाएगी, क्या करूं?
यह सबके सामने कहने से रोक दिया,
मैंने कहा यदि आप धर्म में स्थापित हैं,
तो विजय आपकी होगी, एक बार निलंबित करेगा,
अगर ऊपर से ईश्वर का सहयोग मिल गया तो निलंबित करने में कुछ नहीं होगा,
क्योंकि भगवान या धर्म का सहयोग मिला तो सफलता मिलेगी,
तब उसने कहा इसी वजह से मुझे निलंबित होने का डर नहीं है,
महाराज, आज नौकरी चली जाए,
तो भी वचन देता हूँ कि अधर्म नहीं करूंगा, धर्म का पालन करूंगा,
किसी और की नहीं सुनूंगा,
जो अधिकार मेरा है वही करूंगा,
हटा दिया गया तो कोई फर्क नहीं,
मगर अधर्म नहीं करूंगा,
भगवान जब इतनी भावना आ जाती है तो खुद आगे देखभाल करेगा,
जो धर्म का पालन करता है,
यहाँ उसे कोई साथ नहीं देगा सिवाय भगवान के,
मगर विजय उसी की होगी।
इतना पर्याप्त है, मगर प्रबलता अधर्म की है,
इसलिए धर्म का पालन करना मुश्किल हो रहा है,
जैसे १०० लोग हैं तो ९९ अधर्म की तरफ,
दिखकर धर्म वाला उदास हो जाता है।
धर्म वाला वही है,
अगर रास्ता ले, इसलिए कभी-कभी अधर्म से धन मिल भी जाए,
तो उसे शास्त्रों के अनुसार कैसे निर्धारित करेंगे?
वह परिवार की बुद्धि को भ्रष्ट कर देगा, इतने झगड़े और अशांति पैदा कर देगा,
कि पति-पत्नी, माता-पिता-पुत्र में कभी शांति नहीं रहेगी।
ऐसी भयानक बीमारी या ऐसा बच्चा जो उम्र भर आपको जलाता रहेगा,
आपको उम्र भर उसकी देखभाल करनी पड़ेगी,
चाहे अभी लो या पहले ले चुके हो,
कर्मों का हिसाब होगा,
निर्दोष का कष्ट होगा,
अधर्म से धन लिया है,
तो परिवार नष्ट हो जाएगा,
आज या कल ऐसा जरूर होगा,
कई घटनाएँ होंगी,
पूरा परिवार BMW में जा रहा है,
एक्सीडेंट हो गया या गाड़ी चकनाचूर हो गई,
अंदर आग लग गई, सब भुन गए,
समाचार में सुना होगा,
इतनी अद्भुत गाड़ी, फिल्मी गाने सुनते चल रहे थे,
बढ़िया जा रही थी, ऐसा एक्सीडेंट हो गया, चूर-चूर हो गए।
अधर्म से बचे, साईकिल चलाएँगे, धर्म में सुरक्षित रहेंगे,
बाइक चलाएँगे, मतलब साईकिल ही चलाएँ, स्कूटर भी नहीं,
पर जीवन सुरक्षित रहेगा,
अधर्म का प्रयोग करेंगे, मर्सीडीज से चलोगे,
तो चला नहीं पाओगे,
क्योंकि समय और कर्म दोनों सुधार देंगे,
जो धन आया, वही बच्चों के इंटेलिजेंस पर भी असर करेगा,
बुद्धि नष्ट कर देगा, पत्नी में असंतोष पैदा करेगा,
पति-पत्नी में अशांति पैदा करेगा,
इस तरह का आचरण कि जिनके लिए सब कमाया, उनकी पूरी उम्र जलती रहेगी
और शरीर तक बड़े-बड़े हादसे होंगे,
क्योंकि किसी के अधर्म का धन कभी शांति नहीं देता,
यह निश्चित बात है, एक जमाना था,
दुर्योधन आदि बहुत खुश घूम रहे थे,
पांडवों को वनवास भुगतना पड़ा,
वह धर्म पर थे,
समय आया तो नागों ने काट फेंका उन्हें,
और युधिष्ठिर सिंहासन पर बैठे,
जो थोड़ा सा धर्म वाला है उसे बहुत भटकना और कष्ट सहना पड़ता है,
और अधर्मी फलता भी है, मगर उसकी समृद्धि नष्ट हो जाएगी,
सब कुछ मिलेगा,
महाराज जी, और, सरकार में अगर किसी प्रोजेक्ट के लिए पैसा मिला है,
तो क्या वह अधार्मिक धन है,
कि उसी चीज पर खर्च होना चाहिए,
अगर कहीं और खर्च किया तो वह अधर्म होगा,
सरकार पैसा देती है,
अगर ठेका लिया है तो तय है कि इतना प्रतिशत मिलेगा,
पर वह पैसा नहीं लगाया जहाँ लगाना था,
तो वह अधर्म है, वह नष्ट कर देगा,
सरकारी खाते से पैसा लिया है,
तो उसका अलग हिसाब है,
इंजीनियर को सरकारी पैसा मिला है,
तो उसने अलग हिसाब रखना है,
जो मिला उसका खर्च उसी पर करे,
ब्रिज, सड़क या विभाग में,
नहीं लगाया तो कानून में अपराध है, भागवत में भी अपराध है,
सामाजिक सेवा के लिए मिला है,
कहीं अपने घर में खर्च कर दिया,
तो घर भी नहीं टिकेगा, परिवार में भी सुख नहीं रहेगा,
जैसे संत सेवा के लिए दिया गया तो पूरा सेवा में लगे,
गौ सेवा के लिए दिया है तो उसमें एक रुपये की भी कटौती न करें,
वह आपका कर्जा बन जाएगा,
धर्म है वह,
बहुत हिसाब है, किसी भी विभाग में धर्म के अनुसार चलना चाहिए,
आध्यात्मिकता नहीं है तो कुछ भी नहीं,
धन की प्रवृत्ति बहुत जल्दी नष्ट होती है,
धर्म से चलें तो शिक्षा भी सार्थक,
प्रगति भी सार्थक,
जीवन सार्थक,
बिना अध्यात्म के कुछ नहीं।
यदि आपको पूरे ट्रांसक्रिप्शन की किसी विशेष लाइन या अंश का विवरण चाहिए, तो कृपया टाइमस्टैम्प या अंश बताएं।







