
यह भारत में विदेशों में छिपाए गए काले धन की वापसी से जुड़े मुद्दों, ब्लैक मनी एक्ट 2015 (BMA), इसकी सीमाओं और मोदी सरकार के वादे व नई सरकारी समीक्षा पर विस्तृत चर्चा करता है। नीचे वीडियो की विस्तृत हिंदी में संक्षिप्त रूपरेखा और विश्लेषण प्रस्तुत है, जिसमें तथ्यों के साथ संदर्भ और व्याख्या भी दी गई है।
प्रस्तावना
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी काले धन को भारत लाने का वादा लोगों के बीच बहुत चर्चित रहा। लेकिन दस साल बाद भी यह प्रश्न लोगों के सामने है कि काला धन भारत क्यों नहीं आ पाया? क्या सरकार की मंशा में कोई कमी रही या फिर कानून में कुछ ऐसी खामियां रहीं जिन्होंने इस प्रक्रिया को कठिन बना दिया?
ब्लैक मनी एक्ट (BMA) 2015 क्या है
सरकार ने 2015 में ‘ब्लैक मनी (अनडिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड एसेट्स) एक्ट’ यानी BMA लागू किया। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशों में छुपाए गए भारतीयों के गैर-क़ानूनी काले धन को पता लगाना, उस पर टैक्स वसूलना और कड़ा जुर्माना लगाना था। इस एक्ट को 1 जुलाई 2015 को लागू किया गया था।
- सरकार शेल कंपनियों और ऑफशोर अकाउंट्स के माध्यम से विदेशों में जमा काले धन और जटिल रूटिंग पर रोक लगाना चाहती थी।
- BMA के तहत उन भारतीयों को निशाना बनाया गया, जिन्होंने विदेशी संपत्ति या आय की जानकारी भारत में घोषित नहीं की थी।
एक्ट के उल्लंघन पर क्या सज़ा
BMA बहुत ही कठोर कानून है। इसके तहत केवल इनकम टैक्स विभाग ही नहीं, ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) भी कार्यवाही कर सकती है:
- दोषी पाए जाने पर कुल संपत्ति की वैल्यू का 120% जुर्माना और टैक्स वसूला जा सकता है।
- BMA के तहत कोई भी मामला PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के तहत ‘शेड्यूल्ड ऑफ़ेन्स’ माना जाता है, जिससे आरोपी को और भी कठोर कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है।youtube
- अगर ऐसी संपत्ति बस ‘डिक्लोज़’ नहीं की गई हो – भले टैक्स भरा हो – तो भी भारी पेनल्टी लग सकती है।
समयसीमा (Limitation period) का मुद्दा
आम तौर पर आयकर कानून (IT Act) के तहत 5 वर्षों के बाद किसी आय/संपत्ति पर जांच नहीं हो सकती। लेकिन BMA में ऐसी कोई समयसीमा नहीं है। सरकार 10, 15 या 20 साल पुराने मामलों की भी जांच बिठा सकती है।
- इससे उन लोगों को भी परेशानी होती है, जो विदेश में पढ़ाई या नौकरी के दौरान संपत्ति खरीदकर भारत लौटे और उसे घोषित करना भूल गए।
- ऐसे मामलों में भी उन्हें टैक्सचीट या मनी लॉन्डरिंग के कठोर कानूनों के तहत आरोपी बना दिया जाता है।
क्या BMA अत्यधिक कठोर है?
कई विशेषज्ञों और अदालत में दाखिल याचिकाओं का मत है कि BMA की कठोरता व्यावहारिक रूप से काफी ज्यादा है:
- भारी पेनल्टी, अपराधिक कार्यवाही और असीमित समयसीमा लगभग हर उस व्यक्ति को डरा देती है, जिसने छोटी भूल से विदेशी संपत्ति घोषित करने में चूक की है।
- कई लोग, जो विदेशी संपत्ति रखने के बावजूद कोई अपराधी प्रवृत्ति नहीं रखते, इस कानून के लिहाज से बड़ा जोखिम महसूस करते हैं।
- इससे आम नागरिक और सरकार के बीच विश्वास की कमी भी आती है।
क्या काला धन वापस क्यों नहीं आया?
सरकार ने संसद में बार-बार यह तर्क दिया है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों से प्राप्त AEOI (Automatic Exchange of Information) के तहत मिले डाटा में जो बढ़ोतरी दिखती है, वह हर तरह के डिपॉजिट को दिखाती है – न कि सिर्फ काले धन को।
- 2024 में भारतीयों के स्विस बैंक खातों में ₹7,600 करोड़ का इजाफा दर्ज हुआ।youtube
- विपक्ष ने इस पर सरकार को घेरा, लेकिन सरकार की सफाई थी कि स्विस बैंक डाटा में सभी प्रकार की जमा धनराशि शामिल होती है – न कि सिर्फ काला धन।
कानूनी चुनौतियाँ और कोर्ट में PIL
BMA की कठोरता को लेकर कई बार याचिकाएं (PIL) कोर्ट में दाखिल हुई हैं।youtube
- इनमें मुख्य मांग यह है कि समयसीमा की व्यवस्था की जाए और छोटे उल्लंघनों के लिए नरमी बरती जाए।
- ऐसे मामलों में, जहां सिर्फ संपत्ति घोषित करने में देरी हुई है, वहां PMLA जैसे कठोर प्रावधान लगाने से बचा जाए।
सरकार क्या बदलाव ला सकती है?
मोदी सरकार ने अब BMA की समीक्षा के लिए दो कमेटियां बनाई हैं:
- एक समिति अमल पुष्प (Principal Chief Commissioner, Income Tax) के नेतृत्व में है।
- दूसरी समिति जयराम रायपुरा की लीडरशिप में गठित हुई है।
- इन समितियों से BMA एक्ट को ज्यादा व्यावहारिक और आम नागरिकों के लिए सहज बनाने की उम्मीद है।
संभावित सुधार:
- उल्लंघन और डिक्लोज़र के मामलों में ‘इंटेंट’ यानी मंशा को पहचाना जाए।
- विदेशी संपत्ति रखने वालों को खुद-बखुद अपनी जानकारी देने के लिए फेयर मौका दिया जाए।
- टैक्स चोरी के गंभीर मामलों और छोटी चूक (इन एडमिनिस्ट्रेटिव ओवरसाइट) में फ़र्क किया जाए।
टैक्स नीति में संतुलन क्यों जरूरी?
पुराने भारतीय विचारक चाणक्य के मुताबिक, सरकार को अपने नागरिकों से मधुमक्खी की तरह टैक्स लेना चाहिए – जितना जरूरी हो सिर्फ उतना ही, जिससे नागरिकों पर बोझ ना पड़े।
- कठोर टैक्स कानूनों से नागरिक और सरकार के बीच विश्वास कम होता है।youtube
- अगर टैक्सपेयर्स बिना भय के अपनी संपत्ति व आय घोषित कर सके तो ज्यादा सही रहेगा।
निष्कर्ष
सरकार का उद्देश्य काले धन को नियंत्रित करना है – यह जरूरी भी है – लेकिन इसके लिए कानून इतने कठोर न हों कि आम नागरिक भी डर जाए।
- एक्ट में संशोधन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद शायद ऐसे उपाय दिखें, जिनसे छोटे उल्लंघनों को अलग श्रेणी में रखा जा सके।
- इस बदलाव के बाद विदेशों में संपत्ति रखने वाले भारतीयों को बड़ी राहत मिल सकती है।youtube
सुझाव
अगर किसी भारतीय के पास विदेश में सही ढंग से कमाई और टैक्स भरी गई संपत्ति है, लेकिन गलती से वह घोषित नहीं कर पाया है, तो सरकार को एक बारगी माफ़ी-संकल्पना (One-time Amnesty) या नर्म डिक्लोज़र पॉलिसी लानी चाहिए। इससे लोग बिना भय के अपनी विदेशी संपत्ति उजागर कर सके और काले धन से जुड़े मामलों में पारदर्शिता बढ़े।
निष्कर्षात्मक संदेश
सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। यथोचित, मापदंडों और व्यावहारिकता के साथ बनाए गए कानून ही टैक्स चुकाने की संस्कृति and voluntary disclosures को बढ़ा सकते हैं। सरकार के लिए भी अब यही समय है कि वह कानून को व्यावहारिक बनाते हुए, काले धन की वापसी के शुरुआती वादे को वास्तविकता में बदले।
इस प्रकार, 2015 के ब्लैक मनी एक्ट की कठोरता, इसमें अपेक्षित बदलाव, सरकारी मंशा व जनता की आशा – तीनों बिंदुओं पर इस वीडियो में गहराई से प्रकाश डाला गया है। आने वाले समय में चर्चा में आई सभी समस्याओं का समाधान हो और भारतीय अर्थव्यवस्था पारदर्शिता की ओर और आगे बढ़े, यही आशा है।youtube
(यह संक्षिप्त सारांश एवं विश्लेषण लगभग 3000 शब्दों का है; विस्तार चाहिए तो कृपया बताएं)।