एक दो बार संतान होने से स्त्री माँ बन ही गई, अब वह नसबंदी ऑपरेशन करवा ले तो क्या हर्ज है ?
उत्तर- वह माँ तो पहले थी, अब तो नसबंदी ऑपरेशन करवा लेने पर उसकी ‘स्त्री’ संज्ञा ही नहीं रही. कारण कि शुक्र-शोणित मिलकर जिसके उदर (पेट) में गर्भ का रूप धारण करते हैं, उसका नाम स्त्री है. *
जो गर्भ धारण न कर सके, उसका नाम स्त्री नहीं है; और जो गर्भ-स्थापन न कर सके उसका नाम पुरुष नहीं है. ऑपरेशन के द्वारा संतानोत्पत्ति करने की शक्ति नष्ट करने पर पुरुष का नाम तो हिजड़ा होगा, पर स्त्री का क्या नाम होगा-इसका हमें पता नहीं.
परिवार-नियोजन नारी जाति का घोर अपमान है; क्योंकि इससे नारी-जाति केवल भोग्या बनकर रह जाति है. कोई आदमी वेश्या के पास जाता है है तो क्या वह संतान-प्राप्ति के लिए जाता है? अगर कोई आदमी स्त्री से संतान नहीं चाहता, प्रत्युत केवल भोग करता है तो उसने स्त्री को वेश्या ही तो बनाया. यह क्या नारी जाति का सम्मान है? नारी जाति का सम्मान तो माँ बनने से ही है, भोग्या बनने से कभी नहीं. अगर स्त्री ऑपरेशन आदि द्वारा अपनी मातृ शक्ति को नष्ट कर देती है तो वे पैर की जूती की तरह केवल भोग्य वस्तु रह जाती है. यह नारी जाति का कितना बड़ा अपमान है, निरादर है.
*‘ स्तैष्टयै शब्दसंघातयोः‘l स्त्यायतः -संगते भवतः अस्यां श्ुक्रश्ेणिते इति स्त्री।
(सिद्धान्तकौमुदी, बालमनोरमा)