भगवान दुःख और दर्द क्यों देते हैं ?
Why does God give sorrow and pain?
SPRITUALITY
भगवान दुःख और दर्द क्यों देते हैं ?
प्रभु ने सृष्टि की रचना नहीं की है। प्रभु सृष्टि बने है। तुम्हें दुख इसलिए मिल रहा है क्योंकि तुम भूल गए हो। तुम अपने स्वरूप को भुल करके मानव देह में ''मैं'' मानके भोगों में विचरण कर रहे हो। मनमाने आचारण कर रहे हो तो प्यारे खेत में बबूल बो और मेवा छुआरा पाओ कभी ऐसा हुआ है। अगर आपके कर्म बिगड़ गए तो आपको भोगना होगा।
इन्द्रिय गलत मार्ग में जा रही है
भगवान ने दुख की रचना नहीं की है। भगवान ने तो सुख की रचना की है। तुम भगवान के अंश हो। तुम्हारे स्वरूप में अभाव है ही नहीं। शरीर कभी पूर्ण हो ही नहीं सकता, यह कामनाएं ही कामनाएं है। हम प्रभु के अंशी है। अग्नि की ताकत नहीं है प्रभु के अंशी को जला दें। किसी दिव्याशास्त्र की ताकत नहीं उसे छेद दें। वायु की ताकत नहीं उड़ा दें। जल की भी ताकत नहीं बहा दें। फिर हमको दुख कैसे हो सकता है। हम मुंह से बोल देते है कि हम भगवान के अंश है लेकिन हम देह में फंसे है। हमें अंदर से चिंता शोक कामनाएं भोग जला रही है। इन दुश्मनों को बिना रौंदे सेना मेहनत करती है और तिलक राजा का होता है। हमारी इंद्रिया मन बुद्धि आदि गलत मार्ग में जा रहे है। इनको सत्य में स्थापित कर दो आप राजा हो। सब दुखों की निवृत्ति हो जाएगी क्योंकि दुख छू नहीं सकता। सृष्टि में पैदा नहीं हुआ दुख जो आपको छू सके।
आप जहाँ रहते हो वो दुखालयम है
भगवान पहले कह रहे है, आप इस कमरे में जा रहे हो इसका नाम है दुखालयम। इसे मृत्यु लोक कहते है। यह कसाईवाड़ा है। अगर जीते जी शरीर से रहित हो जाओ तो तुम पर काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। तुम कालातीत हो। तुम अविनाशी हो। तुम्हें कोई मार ही नहीं सकता और इस शरीर को कोई बचा नहीं सकता चाहे जितना बड़ा तपस्वी हो। क्योंकि शरीर का नाश अवश्यभावी है, क्योंकि यह मरेगा।
दरअसल दुःख इस बात का है
जब यह शारीर मरेगा तो दुख किस बात का। दुख अज्ञान का है। दुख कामनाओं का है। काश ऐसा हो जाता। यह मिल जाता तो ठीक था। यह भोग लेता तो ठीक है। इसी का नाम अविद्या है। यही दुख है। भगवान ने तो पहले ही कह दिया कि यह दुखायलम है और आप कह रहे हो कि हमें सुख दे दो। यह तो वही बात हो गई कि आप मेडिकल स्टोर में जाकर रेवड़ी मिठाई मांग रहे हो। इसका नाम दुखायलयम है। लेकिन दुख किसको जो भगवत विमुख है और जो भगवान का भजन करने वाला है, दसों दिशाए उसके लिए महासुखमय हो जाती है। भगवान का नाम मंगलभवन है। नाम जपोगे। भगवान के आश्रित रहोंगे यानी भगवान के विरूद्ध आचरण ना होना।
दुःख उसको जो भगवान् से दूर
सेवक वही जो स्वामी के विरूद्ध आचरण ना करें। अब आपको दुख हो तो बताना। दुख किसको होता है। दुख मन को होता है और मन हमारा जहां ठिकाने में लगना चाहिए वहां लगा नहीं है। हमें ना मृत्यु का डर ना कोई चाह क्योंकि मन प्रभु ने ले लिया। देखो डॉक्टर हमारे शरीर के एक अंग में सुन करने की दवाई लगाकर उसको मन से हटा देता है और ऑपरेशन करने पर हमें दर्द नहीं होता। तो बताओ एक दवाई से ऐसा हो जाता है तो हम अपने मन को भगवान में लगा दे तो पूरे जीवन कोई दुख का हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
अपने स्वरुप को भूले हुए हो इसलिए दुःख मिल रहा है
भगवान किसी को दुख नहीं देते हां भगवान ने खेती दे दी है यानी कर्मक्षेत्र दे दिया है। अब दुख बोंगे तो दुख ही मिलेगा। दुख पापकर्म से मिलता है। अधर्म से मिलता है। अच्छे कर्म करोंगे तो सुख मिलेगा। वैसे आपको सुख दुख से कोई मतलब नहीं है। आप अपने स्वरूप को भुले हुए हो लेकिन अपने को भुले हुए हो इसलिए दुख मिल रहा है। हम अपने शरीर में रहते हुए अपने को नहीं देख पा रहे। दर्पण में शरीर को देख कर उसे अपना स्वरूप मान रहे हो। इसी भूल को मिटाने के लिए अध्यात्म मार्ग है। जिस दिन अपने को जान जाओंगे उस दिन भगवान को जानना नहीं पड़ेगा क्योंकि आप भी वही है। कोई दूसरे नहीं है। पक्का मानो। 100 परसेंट।
हम दुःख को पकड़े हुए है
जीव शब्द इसलिए कहा गया है कि आपने शरीर से अपनापन कर लिया है अन्यथा आप वही है दूसरा कोई नहीं है। उस पूर्ण परमात्मा का अंश भी पूर्ण परमात्मा ही है कोई दूसरा नहीं है। आप दुख को पकड़के दुख भोग रहे है। आपको दुख छू नहीं सकता। आप छोड़ दो दुख। शरीर अभिमान छोड़ो। गलत आचरण छोड़ो। अभी नाच पड़ोगे। मीरा जी को इतना दुख दिया जा रहा है प्रगट में लेकिन वह कह रही है पायो जी पायो मैंने राम रत्न धन पायो। इसलिए सबसे प्रार्थना करते है कि यह व्यसन, यह गंदे आचारण जो तुम सुख पाने के लिए कर रहे हो यह कभी सुख देने वाले नहीं है।
गृहस्थ धर्म में एक मर्यादा
गृहस्थ धर्म में एक मर्यादा बनाई गई है जब तक विवाह ना हो ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जब पाणीगृहण (शादी) करो तो संयम में हो जाओ। उसी से आप अपनी गृहस्थ धर्म की पुजा भगवान की प्रसन्नता के लिए करो। लेकिन यहां अब समझ ही नहीं रहे। अब तो ऐसा व्यवहार बदलता चला जा रहा है कि बोलने का मन नहीं करता है। अब बताओ वो कैसे गृहस्थ अच्छे बनेंगे जिनके चार ब्वॉयफ्रेंड चार गर्लफ्रेंड है। कैसे वह धर्म मर्यादा बनेंगे। एक इंद्रिय रसेंद्रि है। अगर आप इसको होटल के अलग अलग चाट खवा दोंगे ना फिर इसको अपनी घर की रोटी दाल अच्छी नहीं लगेगी। ध्यान रखना, ऐसी सब इंद्रियां है। बहुत चंचल है और व्यथन मथ करके आपको भोगों में लगाने वाली है। अब आप बाद में कहो कि आपको दुख मिल रहा है। परेशानी मिल रही है तो आपने जो बो दिया। वो ही पाओगे.
व्यभिचारी कभी सुखी नहीं हो सकता। व्यसनी कभी सुखी नहीं हो सकता। मांसाहार करने वाले का हृदय कभी शांत और आनंदित नहीं हो सकता क्योंकि आत्म बल हीन कभी शांति प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान निर्दय नहीं तुमने निर्दयता के कार्य करे जो तुम्हे फल मिला। नही तो सच्ची कहते है आपका अपराध ना हो पाप ना हो। तो कहीं से भी निकल जाए, ना कोई सांप डसेगा। ना कोई कांटा लगेगा। और अगर अपराध है तो महल में भी है तो वह आपको कांटा जाएगा। महल में आपको दंड दे जाएगा। इसलिए अपराधरहित जीवन ही सुखी जीवन है।
मेरी प्रार्थना- भोगने के लिए पाप नहीं करो
हम लोगों ने ऐसे ऐसे अपराध किए कि जिनको कोई नहीं जानता, जिसका कोई दंड नहीं मिला और कोई प्रायश्चित नहीं मिला। वो अपराध सामने आएंगे तो आपको परास्त कर देंगे। इसलिए हम सबसे प्रार्थना करते है कि सुख के लोभ के लिए पापाचरण मत करो। यह व्यभिचार, यह व्यसन, यह मांस पाना दूसरो की हिंसा करने का स्वभाव आपका नाश कर देगा चाहे जितना धन एकत्रित कर लो। तुम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते। तो यह दोषारोपण तो कभी मत लगाना कि भगवान ने क्यों दुख रचा। अच्छा यह बताओ भारत सरकार का पुलिस डिर्पाटमेंट आपका दुश्मन है या मित्र। यह बताओ। आप विचार करो। हम बताते है, यह आपका मित्र है क्योंकि जरा भी जरूरत पड़ने पर अपने प्राणों की परवाह किए बगैर यह कूद पड़ते है और यही हम जब अधर्म आचरण कर देते है तो यह आपके साथ शत्रुवत व्यवहार करते है।
अंतिम निष्कर्ष -आस्तिकता मिट गई तो जीवन का कोई महत्व नहीं
ऐसे ही संपूर्ण संसार का डिर्पाटमेंट भगवान का है। सब तुम्हारे हितैशी है। आप देखो सही चल करके वो हर जगह सपोर्ट करने लिए आपके साथ खड़े है। लेकिन आप गलत चलोंगे कानून के खिलाफ चलोंगे तो आपको लगेगा बड़े निर्दयी हैं। ऐसे ही भगवान के पार्षद है। आप सही ढंग से चलो देखो आपको कैसे भगवान बचाते है। और अगर आपने बहुत गंदा आचरण किया है और कोई जानता नहीं है तो वो जानता है जो सबकी जानता है। वो जब पिटेगा तो आप सबको यही कहोंगे कि हमने गलती नहीं की लेकिन भले इस बार गलती नहीं की जिसके लिए पिट रहे हो पर वो पीछे वाला हिसाब आया है। अब तुम्हे कोई नहीं बचा सकता। इस सिद्धांत को लोग समझते नहीं और मनमानी आचरण करते हैं। जैसे सूर्य की ताकत नही वे खुद के रहते हुए अंधेरा कर सके, सूर्य जब तक रहेंगे तो अंधेरा नहीं हो सकता। वो अंर्तध्यान हो जाए तब ही अंधेरा है। ऐसे ही भगवान का नाम है-मंगलभवन। भगवान चाहे भी तो अमंगल नहीं कर सकते जैसे पुतना को भगवान ने मारा। हमको लगा कि भगवान ने पुतना को मार दिया। लेकिन उसे वो गति मिली जो बड़े बड़े तपस्वियों और ऋषियों के लिए दुलर्भ है। जो यशोदा मैया की गति थी वो ही पुतना की हुई और आई थी भगवान को मारने। भगवान मंगलभवन है, अमंगल कर ही नहीं सकते। तो यह बात हम मन में बैठा लेंगे कि भगवान ने दुख क्यों दिया या दुख की रचना क्यों की तो हमारी आस्तिकता मिट जाएगी। आस्तिकता मिट गई तो जीवन का कोई महत्व नहीं रहा।