मेरे से नामजप के अलावा और कुछ नहीं हो पा रहा — क्या करूँ? (Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj के प्रवचन के आधार पर एक गहन आर्टिकल)
नामजप के अलावा अन्य साधना या धार्मिक कार्य न कर पाने की स्थिति में क्या करें? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन के आधार पर नामजप की महिमा, उसके लाभ, और जीवन में संतुलन लाने के व्यावहारिक उपाय।
SPRITUALITY


#नामजप #प्रेमानंदमहाराज #भजनमार्ग #आध्यात्मिकजीवन #सत्संग #श्रीराधा #साधना #गृहस्थधर्म #हिन्दीआर्टिकल
आकर्षक हिंदी शीर्षक
नामजप के अलावा कुछ नहीं हो पा रहा? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का समाधान
नामजप: साधना का सार और उसकी महिमा
जब साधक के जीवन में यह स्थिति आती है कि उससे केवल नामजप ही हो पाता है, अन्य कोई पाठ, नियमावली, या धार्मिक अनुष्ठान नहीं हो पा रहे — तो मन में चिंता, अपराधबोध या हीनता का भाव आना स्वाभाविक है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन में इस विषय को अत्यंत सरलता और गहराई से समझाया है कि नामजप ही सर्वोच्च साधना है और केवल नामजप से भी भगवत्प्राप्ति संभव है।
नामजप क्यों है सर्वश्रेष्ठ?
भगवान का नाम स्वयं भगवान के समान ही सामर्थ्यशाली है।
नामजप से सभी पापों का नाश होता है और परम शांति की प्राप्ति होती है।
भजन, कीर्तन, सेवा, कथा-श्रवण — ये सब साधन हैं, परंतु नामजप सबसे सरल, सुलभ और प्रभावी मार्ग है।
केवल नामजप ही क्यों हो पा रहा है? — कारण और समाधान
1. मन की स्थिति और प्रारब्ध
कई बार जीवन की परिस्थितियाँ, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ, स्वास्थ्य, मन की चंचलता या कर्मों का प्रभाव ऐसा होता है कि साधक से अन्य साधन नहीं हो पाते। ऐसे में केवल नामजप ही सहज रूप से संभव हो पाता है। महाराज जी कहते हैं — इसमें कोई कमी या हीनता नहीं है। यह भी भगवान की विशेष कृपा है कि कम से कम नामजप तो हो रहा है1।
2. नामजप में ही परम लाभ
"केवल नामजप करते रहो, इसी से भगवत्प्राप्ति हो जाएगी। निरंतर नाम चलाते रहो, बस इसी से काम बन जाएगा।"1
यदि अन्य साधन नहीं हो पा रहे, तो नामजप को ही दृढ़ता और श्रद्धा से करते रहना चाहिए।
नामजप के साथ पापाचरण का त्याग आवश्यक है। यदि गंदे आचरण करोगे, तो नामजप उसी को भस्म करने में लगा रहेगा और आनंद की अनुभूति नहीं होगी।
पापाचरण का त्याग कर केवल नामजप किया जाए, तो नामजप मात्र से ही सर्व दुखों का नाश और भगवत्प्राप्ति संभव है।
नामजप के लाभ और अनुभव
1. पापों का नाश और परम सुख की प्राप्ति
नामजप से पापों की जड़ नष्ट होती है। जैसे-जैसे पाप कम होते जाते हैं, वैसे-वैसे चिंता, शोक, भय आदि नष्ट होते जाते हैं और हृदय में शांति, आनंद, और भगवत्प्रेम का उदय होता है।
2. प्रारंभ में आनंद क्यों नहीं आता?
जैसे मिश्री मीठी होती है, परंतु यदि किसी को पित्त रोग है तो उसे कड़वी लगेगी — वैसे ही विषय वासनाओं के कारण प्रारंभ में नामजप में आनंद नहीं आता।
निरंतर नामजप से विषय वासनाएँ कम होती जाती हैं और अंततः नामजप में अमृतमय आनंद की अनुभूति होने लगती है1।
3. नियम टूट जाए तो?
यदि कभी नामजप का नियम टूट जाए, तो अगले दिन उसकी पूर्ति की जा सकती है। गृहस्थ जीवन में व्यवधान आ सकते हैं, परंतु प्रयास करते रहना चाहिए। भगवान बहुत उदार हैं, वे क्षमा कर देते हैं, परंतु नियम-निष्ठा का प्रयास अवश्य करें।
गृहस्थ जीवन और नामजप
1. क्या गृहस्थ में रहते हुए केवल नामजप से भगवत्प्राप्ति संभव है?
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि गृहस्थ और विरक्त — यह शरीर का धर्म है, मन का नहीं।
गृहस्थ धर्म में रहते हुए भी, यदि पापाचरण और आसक्ति का त्याग कर दिया जाए, तो वही गति प्राप्त हो सकती है जो एक विरक्त महात्मा को मिलती है1।
गृहस्थ समाज का पोषण करते हुए, परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए भी नामजप से परम पद की प्राप्ति संभव है।
2. भजन या अन्य साधन न हो पाए तो क्या करें?
केवल नामजप करते रहना चाहिए।
अन्य साधन जैसे पाठ, कथा, सेवा यदि न हो पाए तो भी निराश न हों।
नामजप में ही पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें।
नामजप और समर्पण: क्या यह आलस्य लाता है?
कुछ साधकों को लगता है कि हर कार्य और उसका परिणाम भगवान को समर्पित कर देने से कहीं आलस्य तो नहीं आ जाएगा। महाराज जी कहते हैं —
"भगवान का समर्पण वीरता प्रदान करता है, आलस्य नहीं।"
समर्पण का अर्थ है — अपने कर्तव्य, धर्म और प्रयास के बाद फल भगवान पर छोड़ देना।
समर्पण कायरता नहीं, बल्कि परम साहस और विश्वास का प्रतीक है।
पापाचरण या कर्तव्यच्युत होकर समर्पण करना कायरता है, परंतु सत्कर्म और सतमार्ग में चलकर समर्पण करना परम मंगलकारी है.
नामजप ही क्यों हर प्रश्न का उत्तर है?
महाराज जी बार-बार कहते हैं कि हर समस्या का समाधान नामजप है।
बाहरी उपाय (दीपक जलाना, हवन, आदि) केवल प्रतीकात्मक हैं।
पाप की जड़ भीतर है, उसका नाश केवल नामजप और भजन से ही संभव है।
जैसे सांप बिल के अंदर है, बाहर से लाठी मारने से नहीं मरेगा — वैसे ही भीतर की प्रवृत्तियों का नाश नामजप से ही होगा।
नामजप में वृद्धि कैसे करें?
निरंतरता बनाए रखें, परिणाम की चिंता न करें।
जैसे-जैसे भजन बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे पाप और विषय वासनाएँ नष्ट होंगी।
हृदय में शांति, आनंद, और भगवत्प्रेम का अनुभव होने लगेगा।
यदि कभी नियम टूट जाए, तो उसकी पूर्ति करें और पुनः नियमित हो जाएँ1।
अनुभव और लक्षण: कैसे जानें कि नामजप का फल मिल रहा है?
चिंता, भय, शोक, डिप्रेशन आदि कम होते जाएँ।
धर्मप्रियता, भगवान के प्रति प्रेम, गंदे आचरण से घृणा — ये लक्षण प्रकट होने लगें।
हृदय में स्वतः अनुभव होने लगे कि पाप कम हो रहे हैं, मन शुद्ध हो रहा है1।
निष्कर्ष: क्या करें जब केवल नामजप ही हो पा रहा हो?
केवल नामजप को ही सर्वोच्च साधना मानकर, श्रद्धा और विश्वास से करते रहें।
पापाचरण और गंदे आचरण का त्याग करें।
अन्य साधन न हो पाएँ तो भी निराश न हों — नामजप ही पर्याप्त है।
नियम-निष्ठा का प्रयास करें, परंतु यदि कभी चूक हो जाए तो पुनः प्रयास करें।
जीवन के हर कार्य को भगवान को समर्पित करें, परंतु कर्तव्य और धर्म का पालन अवश्य करें।
नामजप से ही समस्त दुखों का नाश और परम सुख की प्राप्ति संभव है1।
"नामजप मात्र से ही भगवत्प्राप्ति हो जाती है, सब दुखों का नाश हो जाता है। भगवान का नाम सर्वसामर्थ्यशाली है।"
— श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज1
अंतिम संदेश
साधक को चाहिए कि वह नामजप को ही सर्वोच्च साधना मानकर, श्रद्धा और विश्वास से निरंतर करता रहे। अन्य साधन न हो पाना कोई दोष नहीं है। भगवान का नाम सर्वसामर्थ्यशाली है — उसी में जीवन का परम लाभ, परम सुख और परम शांति निहित है।
राधे-राधे!
SOURCE: