अनजाने में हुए पाप: भगवान को समर्पित करें या नहीं? Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj का दिव्य मार्गदर्शन

क्या अनजाने में हुए पापों को भगवान को समर्पित करना चाहिए? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अनुसार सही दृष्टिकोण, प्रायश्चित और आत्मशुद्धि के उपाय।

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6/12/20251 मिनट पढ़ें

अनजाने में हुए पाप: क्या करें?

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अनुसार, जब भी हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाता है, तो सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि भगवान के चरणों में केवल शुभ, पवित्र और पुण्य कर्म ही समर्पित करने चाहिए। पाप या बुरे कर्मों को भगवान के खाते में डालना, मानो बैंक के लॉकर में कबाड़ जमा करना है। बैंक में तो हम सोना, चांदी, कीमती वस्तुएं रखते हैं, न कि कबाड़। उसी प्रकार, भगवान के चरणों में भी केवल अपने श्रेष्ठ कर्म ही अर्पित करें, न कि पाप।

पाप समर्पण की जगह प्रायश्चित करें

महाराज जी स्पष्ट कहते हैं कि जब पाप हो जाए, तो उसका प्रायश्चित करें। इसके लिए निम्न उपाय बताए गए हैं:

  • भगवान के नाम का संकीर्तन करें, क्योंकि “नाम संकीर्तनम यस सर्व पाप प्रणाशनम” – भगवान के नाम का संकीर्तन समस्त पापों का नाश कर देता है।

  • गंगा स्नान करें, तीर्थ यात्रा करें, गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

  • शपथ लें कि यह गलती दोबारा नहीं होगी।

  • मानसिक या शारीरिक पाप हो जाए, तो शास्त्रों के अनुसार प्रायश्चित, व्रत, उपवास आदि करें और भविष्य में सावधानी बरतें।

क्यों न करें पापों का समर्पण?

महाराज जी कहते हैं – “अगर पाप कर्म समर्पित करोगे तो कई गुना बढ़कर उसका फल मिलेगा।” अर्थात, यदि हम अपने पाप भगवान को समर्पित करते हैं, तो वह पाप कई गुना होकर लौट सकता है। इसलिए पाप को नष्ट करें, पुण्य को समर्पित करें। भगवान के नाम का जप, कीर्तन और सच्चे मन से प्रायश्चित ही पापों को नष्ट करने का श्रेष्ठ उपाय है।

मानसिक पाप एवं शारीरिक पाप में अंतर

  • मानसिक पाप (सोचने मात्र से) कलियुग में दंडनीय नहीं है, जब तक वह क्रिया में न आए।

  • शारीरिक या वास्तविक पाप हो जाए, तो प्रायश्चित के उपाय करें, उसे भगवान को समर्पित न करें।

  • भविष्य में सतर्क रहें, और नाम जप तथा सत्संग से अपने मन को शुद्ध करें।

सकारात्मक कर्मों का समर्पण

  • अपने अच्छे कर्म, पुण्य, सेवा, भक्ति – ये भगवान को समर्पित करें।

  • इससे जीवन में शांति, संतोष और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

  • पापों को भगवान के खाते में डालना सही नहीं, बल्कि उन्हें प्रायश्चित से नष्ट करें और आगे से गलती न दोहराएं।

मूल सन्देश

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का संदेश है –

“भगवान के चरणों में केवल पुण्य और शुभ कर्म ही समर्पित करें। पाप कर्मों का प्रायश्चित करें, उन्हें नष्ट करें, और भविष्य में ऐसी भूल न हो इसका संकल्प लें। नाम संकीर्तन और सच्ची भक्ति से ही पापों का नाश संभव है।”

निष्कर्ष

अनजाने में हुए पापों को भगवान को समर्पित करना शास्त्रसम्मत नहीं है। पाप का प्रायश्चित करें, नाम जप और भक्ति से आत्मशुद्धि करें, और अपने पुण्य कर्मों को ही प्रभु को अर्पित करें। यही सच्चा भक्ति मार्ग है, जिससे जीवन में शांति, सुख और आध्यात्मिक उन्नति संभव है।

Sources:
1 Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj, Ekantik Vartalaap & Darshan, 11-06-2025, YouTube (13:02–14:57 min)