प्रश्न- बहन माता-पितासे लड़े तो भाईका क्या कर्तव्य है ?
If the sister fights with the parents, what is the brother's duty?
लड़ाई झगड़े का समाधान RESOLVE CONFLICT
प्रश्न- बहन माता-पितासे लड़े तो भाईका क्या कर्तव्य है ? उत्तर - भाई न्याय देखे और न्यायमें भी वह बहनका पक्ष ले और माता-पितासे कहे कि यह तो अतिथिकी तरह आयी है। इसका लाड़-प्यार करना चाहिये। परंतु बहनका अन्याय हो तो बहनको एकान्तमें समझाये कि बहन ! आपसमें प्रेमकी ही महिमा है, कलहकी नहीं। माँ-बाप आदरणीय हैं। अतः तुम और हम सब माँ- बापका आदर करें। तुच्छ चीजोंके लिये उनका निरादर क्यों करें ?
स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।