भगवान से मिलने की इच्छा ना हो, बस धन के लिए नाम जप करें तो क्या होगा? – परम पूज्य वृंदावन रसिक संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचन
अगर कोई व्यक्ति भगवान से मिलने की इच्छा नहीं रखता, बल्कि केवल धन के लिए भगवान का नाम जपता है, तो क्या होगा? जानिए परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के श्रीमुख से, उनके प्रवचनों का संपूर्ण हिंदी ट्रांसक्रिप्ट, जिसमें उन्होंने नाम जप, धन, पुण्य-पाप, और सच्चे भजन के रहस्य को विस्तार से बताया है।
SPRITUALITY


भगवान से मिलने की इच्छा ना हो, बस धन के लिए नाम जप करें तो क्या होगा? – परम पूज्य वृंदावन रसिक संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचन
"अगर भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए ही नाम जप किया जाए, भगवान की इच्छा नहीं है, तो दोनों काम अपने आप हो जाएंगे। भगवान की भी मिलन का संयोग बन जाएगा और लौकिक सुख भी मिल जाएंगे, पक्का लौकिक सुख मिल जाएंगे। सब कामनाएं पूर्ण हो जाएंगी। हम उदाहरण हैं, हम वो व्यक्ति है जिसके खाने के लिए एक टुकड़ा रोटी नहीं, जिसके रहने के लिए एक इंच जमीन नहीं, जिसके पास एक रुपया नहीं, एक आदमी बात करने वाला नहीं। आज आप देख लीजिए, तो ये क्या है? अगर हम भगवान से ना जुड़े हो तो हमसे कोई राधे-राधे कहे क्या? भगवान का ही तो सारा वैभव है। अगर आप ईमानदारी से भगवान का भजन करोगे, तो जिन्होंने एक सेकंड में अनंत ब्रह्मांड बना दिए, वो हमारे लिए सुख की व्यवस्था क्यों नहीं कर देंगे? यह सब भगवान से ही जुड़ने से तो है। अगर हम भगवान के ना हो तो थोड़ा सोच लो। हमारे पूरे परिकर (शिष्य) में शासन (आदेश) है, चाहे बच्चा हो, चाहे बच्ची हो, बिल्कुल धर्म से चलो, ऐसे (किसी के सामने मांगने के लिए हाथ नहीं बढ़ाना) किसी से मत कर देना, ऐसे (खुद से कोई पैसा आश्रम में नीचे ) कोई रख देता है। तो बाबा जी है, भिक्षुक है, जो भगवान दे दे, उसी से चलना है। तो भगवान के सहारे रहने से, भगवान का नाम जप करने से, इस लोक में भी मालामाल हो जाओगे, इस लोक में भी, परलोक में तो हो ही जाओगे। पर पहले हमें ये आपको समझना होगा कि जैसे आपके पाप है 500 ग्राम और आपका भजन है 25 ग्राम, तो आपका लोड कितना है पाप का? अभी काम नहीं बनेगा। जब 500 क्रॉस कर जाओगे, तब मालामाल हो जाओगे। जब आपका भजन 500 क्रॉस करके 600 में पहुंचेगा, तब सब रिद्धियां-सिद्धियां, रुपया-पैसा, सब मारा घूमेगा। क्योंकि भगवान सबके स्वामी है और आपने भगवान का भजन किया, तो सब कुछ प्राप्त होगा। इसलिए चिंता नहीं करना, करना चाहिए भगवान का चिंतन करना चाहिए।"
धन की कामना और भगवान का नाम
"अगर जब हम भगवान को पूर्ण समर्पित हैं, तो जैसे मां को चिंता होती है कि बच्चे को बाल भोग (नाश्ता) खिलाना है, बच्चे को राजभोग (दोपहर भोज) कराना है, ऐसे भगवान हमारी व्यवस्था करते हैं। हम कामना नहीं करते, पर वो भगवान व्यवस्था करते हैं। सदा तिनके रखवारी, जिम बालक राखे महातारी, आगे से आगे भगवान व्यवस्था करते हैं। बिल्कुल निश्चिंत हो जाओ, बिल्कुल निर्भय हो जाओ, भगवान तुम्हें बहुत प्यार करते हैं, पर बस भगवान का भजन करो। भजन नहीं करोगे तो समझ नहीं पाओगे भगवान के प्यार को। भगवान के बिना शांति नहीं है।"
संसारिक सुख की प्रार्थना
हम संसार में हैं, अगर हमारे अंदर कोई आकांक्षा है, तो अन्य से ना कहकर भगवान से कहना चाहिए। भगवान ने चार प्रकार के भक्त बताए हैं – आर्थ, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी। आर्थ-संकट निवृत्ति के लिए केवल भगवान का आश्रय, अर्थार्थी- धन प्राप्ति के लिए केवल भगवान का आश्रय, जिज्ञासु- अपने आप को भगवान के चरणों में समर्पित करने के लिए जो ज्ञान चाहिए, हमारी हर जिज्ञासा की पूर्ति जगतगुरु भगवान से। और ज्ञानी-, जो भगवान में अभेद हो चुका है, जो भगवान स्वरूप हो चुका है, ब्रह्मविद ब्रह्म विभवती। तो हमारे शास्त्र आज्ञा करते हैं कि अगर हमें अर्थ की प्राप्ति चाहिए, तो केवल भगवान से चाहिए। हम भगवान के ही आश्रित रहें, किसी व्यक्ति के आश्रित ना रहें और प्रयत्न करें, प्रयास करें, खूब नाम जप करें, भगवती स्तोत्रों का गायन करें, भगवत आराधना करें, और भगवान से धन चाहे तो प्राप्त हो जाएगा। पर ध्यान रहे, जब तक पाप रहेगा, तब तक नहीं प्राप्त होगा। जब आपका पाप क्षय पहले करेगा नाम जप, तब आपको प्राप्ति होगी।"
कामना, तपस्या और साधना
"केवल कामना करने से धन की प्राप्ति नहीं होगी। देखो, पद की प्राप्ति ध्रुव जी के मन में आई, तो जाकर तपस्या की, मधुबन में मथुरा में आकर, तब प्राप्त हुआ। ऐसे कुछ नहीं प्राप्त हो जाता। आपके पास तप हो, आपके पास भजन हो, आपके पास साधना हो, तब आपकी कामना पूर्ण होगी। आप व्रत, नियम, संयम, तपस्या, भजन इनको स्वीकार करें, कामना करें या ना करें, आपको सुख घेर लेगा। और आप यह सब ना करें, तो लाख कामना करते रहो, किसी मंदिर में जाकर ऐसे पूर्ण होने वाली है क्या? कभी तुक्का लग जाए पुण्य का तो बात अलग की बात है, ना कह नहीं, ऐसे पूर्ण होने वाली नहीं।"
पुण्य, पाप और भजन का संतुलन
"जैसे आपके पाप है 500 ग्राम और आपका भजन है 25 ग्राम, तो आपका लोड कितना है पाप का? अभी काम नहीं बनेगा। जब 500 क्रॉस कर जाओगे, तब मालामाल हो जाओगे। जब आपका भजन 500 क्रॉस करके 600 में पहुंचेगा, तब सब रिद्धियां-सिद्धियां, रुपया-पैसा, सब मारा घूमेगा। क्योंकि भगवान सबके स्वामी है और आपने भगवान का भजन किया, तो सब कुछ प्राप्त होगा।"
धन, पुण्य और पाप का फल
"जो पाप करेंगे, चाहे जितने बड़े धनी हो, मिट्टी में मिल जाएंगे। रावण की खोपड़ी को अपनी गोद में रखकर मंदोदरी कहती है, राम विमुख का साहाल तुम्हारा रहा न को कुल रोवन हारा, उससे बड़ा विद्वान, उससे बड़ा धनी, उससे बड़ा बलवान कौन हो सकता है, मिट्टी में मिला दिया भगवान ने। इसीलिए चाहे जितने बड़े तुम आज धनी हो, पुण्य के प्रताप से हो, और अगर आज मतवालापन करोगे, पाप करोगे, तो कल तुम नष्ट हो जाओगे, ना लोक के रहोगे, ना परलोक के रहोगे। इसलिए धर्म से चलना चाहिए।"
सच्चा भजन और भगवान की कृपा
"अगर आप ईमानदारी से भगवान का भजन करोगे, तो जिन्होंने एक सेकंड में अनंत ब्रह्मांड बना दिए, वो हमारे लिए सुख की व्यवस्था क्यों नहीं कर देंगे? यह सब भगवान से ही जुड़ने से तो है।"
भजन के बिना शांति नहीं
"भगवान के बिना शांति नहीं है। देखो जैसे लोग पशुओं को भूंज के खाते हैं, हम कहते हैं दया करो इन जीवों पर, तुम ऐसा पाप कर रहे हो, तुम्हें भूंज देगा काल। आप शराब मत पियो, बहन बेटियों की तरफ गंदी बातें मत करो, नाम जप करो, परोपकार करो, अभी आनंद आने लगेगा। अब लोग पाप कर्म करते हैं और चाहते सुख है, तो कैसे मिल पाएगा? गंदे आचरण करोगे, पाप कर्म करोगे, तो सुख कैसे मिल पाएगा?"
सारांश – महाराज जी के वचन
केवल धन के लिए नाम जप करने से भी धन की प्राप्ति हो सकती है, लेकिन भजन और पुण्य का संतुलन जरूरी है।
सच्चा भजन और भगवान का आश्रय लेने से, भगवान स्वयं व्यवस्था करते हैं, जैसे मां अपने बच्चे की चिंता करती है।
संसारिक सुख की कामना भगवान से करना चाहिए, किसी और से नहीं।
पाप और पुण्य का संतुलन जरूरी है; जब तक पाप क्षय नहीं होगा, केवल नाम जप से धन नहीं मिलेगा।
सच्चा धर्म और आचरण जरूरी है; अधर्म और पाप से प्राप्त धन और सुख टिकाऊ नहीं होते।
भगवान का भजन और सच्चा चिंतन ही जीवन को सफल बनाता है।
नोट:
यह संपूर्ण लेख केवल परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों का ट्रांसक्रिप्ट है, इसमें किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत व्याख्या या वर्णन नहीं जोड़ा गया है।