SBI कर्मचारी की वेतन वृद्धि रोकने की सजा पर हाई कोर्ट की मुहर: जानें पूरा मामला
SBI कर्मचारी के दुर्व्यवहार पर वेतन वृद्धि रोकने की सजा हाई कोर्ट ने बरकरार रखी, जानें पूरी घटना और कोर्ट का फैसला।


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मामले की पृष्ठभूमि
हाल ही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के एक कर्मचारी के खिलाफ बैंक द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को सही ठहराया है। इस कर्मचारी पर महिला ग्राहक और बैंक के अन्य कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न का आरोप था। बैंक ने इस मामले में आंतरिक जांच करवाई, जिसमें आरोप सही पाए गए। इसके बाद कर्मचारी की दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी गई, जिसे कर्मचारी ने कोर्ट में चुनौती दी थी12।
क्या था आरोप?
महिला ग्राहक के साथ अनुचित व्यवहार
बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ यौन उत्पीड़न
महिला ग्राहकों के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी
ग्राहकों को सेवा देने में देरी
बार-बार देर से आना और अनुशासनहीनता
इन सभी आरोपों की जांच बैंक की आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee) और विभागीय जांच अधिकारी ने की। जांच में तीन आरोप पूरी तरह से सिद्ध हुए और तीन आंशिक रूप से सिद्ध हुए12।
अनुशासनात्मक कार्रवाई का विवरण
कर्मचारी की दो वेतन वृद्धि रोक दी गई, वह भी संचयी प्रभाव के साथ (cumulative effect), यानी इसका असर भविष्य की वेतन वृद्धि पर भी रहेगा।
शुरुआत में सजा और कठोर थी, लेकिन अपीलीय प्राधिकरण ने इसे कम करते हुए सिर्फ दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी12।
कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला गया, लेकिन उसकी प्रोन्नति और वेतन वृद्धि पर स्थायी असर पड़ा13।
कर्मचारी की दलीलें और कोर्ट का जवाब
कर्मचारी ने हाई कोर्ट में दलील दी कि:
जांच प्रक्रिया में उसे पूरा अवसर नहीं दिया गया।
जांच निष्पक्ष नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देकर सजा को अनुचित बताया।
कोर्ट का फैसला:
हाई कोर्ट ने पाया कि जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों का पालन हुआ।
कर्मचारी को आरोप पत्र, सभी दस्तावेज और गवाहों की सूची दी गई थी।
कर्मचारी ने न तो गवाहों की जिरह करने से मना किया और न ही किसी दस्तावेज की अनुपलब्धता की शिकायत की।
कोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक और अपीलीय प्राधिकरण के निष्कर्ष एकमत हैं और आरोप सिद्ध हुए हैं।
कोर्ट की कानूनी दलीलें और संदेश
कोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में दखल तभी दिया जा सकता है जब प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन या गंभीर प्रक्रिया संबंधी त्रुटि हो, जो इस मामले में नहीं थी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुशासनात्मक प्राधिकरण के तथ्यों की समीक्षा कोर्ट नहीं कर सकता जब तक कि वे पूरी तरह गलत या बिना साक्ष्य के न हों2।
कोर्ट ने माना कि बैंक ने साक्ष्यों के आधार पर उचित और कानूनी कार्रवाई की है।
POSH Act का महत्व
इस मामले में POSH Act, 2013 (Sexual Harassment of Women at Workplace Act) के तहत जांच हुई। कोर्ट ने माना कि कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा के लिए इस तरह की सख्त कार्रवाई जरूरी है, जिससे बैंकिंग सेक्टर में अनुशासन और जवाबदेही बनी रहे12।
सजा की प्रासंगिकता और प्रभाव
कोर्ट ने कहा कि सजा गंभीरता के अनुसार उचित और अपेक्षाकृत हल्की है।
कर्मचारी की दो वेतन वृद्धि रोकने से न केवल उसकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी, बल्कि उसकी प्रोन्नति और भविष्य की वेतन वृद्धि पर भी असर पड़ेगा3।
इस फैसले से यह संदेश गया कि सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में अनुशासन और कार्यस्थल की गरिमा सर्वोपरि है।
महत्वपूर्ण बिंदु
बैंक कर्मचारियों के लिए यह फैसला एक चेतावनी है कि कार्यस्थल पर अनुचित व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
POSH Act के तहत सभी संस्थानों को आंतरिक शिकायत समिति बनाना और निष्पक्ष जांच करना अनिवार्य है।
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में हस्तक्षेप तभी संभव है जब साक्ष्य या प्रक्रिया में गंभीर दोष हो।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अनुशासन और कार्यस्थल की गरिमा के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। बैंक द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को सही ठहराते हुए कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि जांच प्रक्रिया निष्पक्ष और न्यायसंगत थी। यह फैसला कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और संस्थागत जवाबदेही को मजबूत करता है