मूक जीवों का कल्याण कैसे होगा? – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन के आलोक में
मूक जीवों के कल्याण का रहस्य: क्यों केवल मनुष्य योनि में ही नाम जप, भजन और कर्मों का सुधार संभव है? जानिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन से।
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इंसान तो नाम जप कर के भगवान को प्राप्त कर सकता है, पर मूक जीव का कैसे कल्याण होगा?
आकर्षक हिंदी शीर्षक
मूक जीवों का कल्याण कैसे? जानिए श्री प्रेमानंद जी महाराज के अमृतवचन
भूमिका
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि जहाँ मनुष्य को भगवान के नाम जप, भजन, सत्कर्म और भक्ति का विशेषाधिकार मिला है, वहीं वे जीव जो बोल नहीं सकते, अपनी पीड़ा नहीं कह सकते, वे कैसे मोक्ष या कल्याण प्राप्त करेंगे? इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन में विस्तार से दिया है1.
मानव जीवन का विशेष महत्व
श्री महाराज जी बताते हैं कि 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसमें जीव को विवेक, वाणी और कर्म करने की स्वतंत्रता मिली है।
मनुष्य अपने पूर्व जन्मों के पाप-पुण्य को भजन, नाम जप, सत्कर्म और भगवान की शरणागति से बदल सकता है।
पशु, पक्षी या मूक जीव अपने प्रारब्ध (भाग्य) को केवल भोग सकते हैं, उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकते1.
मूक जीवों की स्थिति
मूक जीव अपनी पीड़ा या कष्ट किसी को बता नहीं सकते, न ही वे भजन, अनुष्ठान या नाम जप कर सकते हैं।
उनके लिए न तो कोई विशेष विधान है, न ही वे अपने कर्मों का नाश कर सकते हैं।
वे केवल अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगते हैं, चाहे वह कष्ट हो या सुख1.
क्यों केवल मनुष्य योनि में ही मोक्ष संभव है?
श्री महाराज जी कहते हैं: "जो ऐसे बढ़िया मनुष्य देह को प्राप्त करके अपने कर्मों का नाश करके भगवत प्राप्ति नहीं करता, वह परलोक में महान दुख पाता है।"
पशु, पक्षी, सर्प, कुत्ता, गधा, ऊँट आदि योनियों में जीव अपने प्रारब्ध के अनुसार ही कष्ट भोगता है, उसमें कोई नया कर्म नहीं कर सकता1.
मनुष्य जीवन में ही नया प्रारब्ध रचना, पापों का नाश और भगवत प्राप्ति संभव है।
क्या मनुष्य अपने भजन का फल मूक जीव को दे सकता है?
प्रश्नकर्ता ने पूछा कि क्या मनुष्य अपने प्रिय मूक जीव के लिए प्रार्थना या भजन कर सकता है, जिससे उसका कष्ट कम हो जाए?
महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि वर्तमान जन्म के कष्ट कम नहीं हो सकते। हाँ, यदि कोई मनुष्य भजन करके उसका फल मूक जीव को समर्पित करे, तो अगले जन्म में उस जीव की योनि उन्नत हो सकती है। लेकिन वर्तमान के कष्ट में कोई बदलाव नहीं आता1.
मूक जीवों का कल्याण – आध्यात्मिक दृष्टिकोण
मूक जीवों का कल्याण उनके कर्मों के भोगने से ही होता है। वे जब तक अपने कर्मों का फल नहीं भोग लेते, तब तक मोक्ष नहीं मिलता।
जब उनका कर्मक्षय (कर्मों का क्षय) हो जाता है, तब उन्हें उच्चतर योनि (जैसे मनुष्य योनि) प्राप्त होती है, जहाँ वे भजन, नाम जप, साधना आदि कर सकते हैं।
इसलिए, मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभ और मूल्यवान है। इसे पाकर ही मोक्ष, भजन और भगवान की प्राप्ति संभव है1.
मानव जीवन में क्या करें?
श्री महाराज जी का संदेश है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने कर्तव्य को पूजा माने, पाप कर्मों से बचे, ईमानदारी से समाज सेवा करे, और भगवान का नाम जपे।
भगवान अगरबत्ती से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अपने कर्तव्य के पालन से होते हैं।
नाम जप, भक्ति और सेवा से ही मनुष्य अपने पापों का नाश कर सकता है और भगवत प्राप्ति कर सकता है123.
मूक जीवों के प्रति करुणा – मनुष्य का धर्म
यद्यपि मूक जीव स्वयं भजन नहीं कर सकते, मनुष्य को चाहिए कि वह उनके प्रति करुणा, दया और सेवा का भाव रखे।
सेवा, करुणा और परोपकार भी भक्ति का ही एक रूप है, जिससे मनुष्य के कर्म शुद्ध होते हैं और समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है3.
मूक जीवों की पीड़ा को समझना, उनकी देखभाल करना और उनके प्रति संवेदनशील रहना भी मानव धर्म का हिस्सा है।
निष्कर्ष
मूक जीव अपने प्रारब्ध के अनुसार ही कष्ट भोगते हैं; वे न तो भजन कर सकते हैं, न ही अपने कर्मों का क्षय कर सकते हैं।
केवल मनुष्य योनि में ही नाम जप, भजन, सेवा, साधना और मोक्ष संभव है।
मनुष्य को चाहिए कि वह अपने दुर्लभ जीवन का सदुपयोग करे, पापों से बचे, सेवा और भक्ति में लीन रहे, और मूक जीवों के प्रति दया व करुणा रखे।
यही सर्वोच्च कल्याण का मार्ग है, यही भजन मार्ग है13.
“मनुष्य जीवन दुर्लभ है, इसे व्यर्थ न जाने दें। जब तक यह अवसर है, भजन, सेवा और सत्कर्म में लगें – यही मूक जीवों, स्वयं और संपूर्ण सृष्टि का कल्याण है।”