कमर्शियल रियल एस्टेट: झूठे वादे, कानूनी खामियां और गलत लोकेशन कैसे बना देती हैं निवेश को घाटे का सौदा

कमर्शियल रियल एस्टेट में झूठे वादे, कानूनी खामियां और गलत लोकेशन निवेश को भारी घाटे में बदल सकते हैं। जानें कैसे बचें इन जोखिमों से।

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6/13/20251 min read

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कमर्शियल रियल एस्टेट में निवेश: क्यों बन सकता है ये घाटे का सौदा?

कमर्शियल रियल एस्टेट (Commercial Real Estate) में निवेश अक्सर आकर्षक नजर आता है, क्योंकि यहां रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी की तुलना में रेंटल यील्ड (6-7%) ज्यादा बताई जाती है। लेकिन, ऊंचे रिटर्न के साथ कई बड़े जोखिम भी जुड़े होते हैं—खासकर जब निवेशक झूठे वादों, कानूनी खामियों और गलत लोकेशन के जाल में फंस जाते हैं123

1. झूठे वादे और मिसलीडिंग मार्केटिंग

  • कई बार ब्रोकर्स या डेवलपर्स निवेशकों को गारंटीड रिटर्न, फिक्स्ड लीज, या आने वाली मेट्रो कनेक्टिविटी जैसे वादे करते हैं, जो बाद में पूरे नहीं होते।

  • आकर्षक ब्रोशर, नकली लेआउट और फर्जी सुविधाएं दिखाकर निवेशकों को लुभाया जाता है, जबकि असलियत में प्रोजेक्ट में ये चीजें नहीं मिलतीं।

  • कई बार डेवलपर्स बिना RERA रजिस्ट्रेशन के प्रोजेक्ट बेचते हैं या गलत जानकारी देते हैं, जिससे बाद में कानूनी दिक्कतें आती हैं45

सच्ची कहानी:
ग्रेटर नोएडा के एक निवेशक ने दो ऑफिस यूनिट्स में 1 करोड़ रुपये लगाए, लेकिन वादे के बावजूद न तो किरायेदार मिले और न ही प्रॉपर्टी की कीमत में खास बढ़ोतरी हुई। उल्टा, हर साल 75,000 रुपये मेंटेनेंस चार्ज देना पड़ रहा है, और बेचने पर भी ट्रांसफर चार्ज व टैक्स में काफी पैसा कट जाएगा123

2. कानूनी खामियां और डॉक्युमेंटेशन की कमी

  • प्रॉपर्टी के टाइटल, लैंड यूज, जोनिंग अप्रूवल, बिल्डिंग परमिशन आदि की सही जांच न हो तो निवेशक फंस सकते हैं।

  • कई बार प्रॉपर्टी सरकारी लीज या कलेक्टर जोन में होती है, जिसकी जानकारी बाद में मिलती है और फिर रीसेल मुश्किल हो जाती है।

  • लीगल डॉक्युमेंट्स में क्लॉजेस निवेशक के खिलाफ होते हैं या छुपे हुए चार्जेज बाद में सामने आते हैं64

  • RERA में शिकायत तभी संभव है जब आपके पास लिखित करार और प्रॉमिस डॉक्युमेंट्स हों। वर्बल वादों पर कानूनी कार्रवाई बहुत मुश्किल है15

3. गलत लोकेशन का चुनाव: सबसे बड़ा जाल

  • लोकेशन कमर्शियल प्रॉपर्टी की सफलता में सबसे अहम है। अगर आसपास डिमांड नहीं है, या ज्यादा सप्लाई है, तो किरायेदार मिलना मुश्किल हो जाता है।

  • देशभर में 75% से ज्यादा रिटेल स्पेस 'घोस्ट मॉल' बन चुके हैं—यानि खाली पड़े हैं। दिल्ली-NCR में 21 ऐसे मॉल हैं, जहां कोई किरायेदार नहीं है1723

  • कई मॉल्स और ऑफिस स्पेस बेहतर लोकेशन या नई कनेक्टिविटी के कारण अपनी वैल्यू खो बैठते हैं। ऐसे में निवेशक सालों तक फंसे रहते हैं, न किराया मिलता है, न बेचने पर सही दाम723

4. बेचने में दिक्कत और कैपिटल लॉस

  • कमर्शियल प्रॉपर्टी में एंट्री कॉस्ट ज्यादा होती है और निकासी (एग्जिट) बहुत मुश्किल।

  • ट्रांसफर चार्ज, टैक्स, और कम डिमांड के कारण रियलाइज्ड वैल्यू अक्सर पेपर वैल्यू से बहुत कम होती है।

  • कई बार निवेशक 10 साल तक प्रॉपर्टी होल्ड करने के बाद भी प्रॉफिट की जगह लॉस में ही रहते हैं123

5. कानूनी उपाय और बचाव के तरीके

  • RERA में रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट और एजेंट से ही डील करें।

  • हर डॉक्युमेंट, एग्रीमेंट और वादे को लिखित में लें।

  • किसी भी प्रॉपर्टी में निवेश से पहले टाइटल वेरिफिकेशन, लैंड यूज, अप्रूवल्स, और बिल्डिंग परमिशन की पूरी जांच करें।

  • लीगल एक्सपर्ट से सलाह लें और डिटेल्ड ड्यू डिलिजेंस करें645

  • अगर मिसलीडिंग वादे लिखित में हैं, तो RERA या कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं। सरकार ने अब झूठे विज्ञापन पर सख्त कानून बनाए हैं—गलत वादा करने पर बिल्डर को पैसे लौटाने और पेनल्टी देने का प्रावधान है5

6. निवेश से पहले ध्यान रखें ये बातें

  • लोकेशन की डिमांड, आसपास की सप्लाई और किरायेदारों की प्रोफाइल जरूर चेक करें।

  • प्रॉपर्टी की लिक्विडिटी (बेचने में आसानी) और लॉन्ग टर्म में वैल्यू ग्रोथ की संभावना देखें।

  • ब्रोकर्स के वादों पर आंख बंद कर भरोसा न करें, खुद रिसर्च करें।

  • ग्रेड-A प्रॉपर्टी में निवेश करें, भले ही टिकट साइज बड़ा हो, लेकिन वहां टेनेंट क्वालिटी और कंप्लायंस बेहतर होती है123

  • अगर आप मिडिल क्लास निवेशक हैं, तो सोच-समझकर ही कमर्शियल प्रॉपर्टी में जाएं—कई बार इक्विटी या दूसरे एसेट क्लास ज्यादा बेहतर रिटर्न दे सकते हैं123