माता-पिता को कन्या के घर का अन्न खाना चाहिये या नहीं ?
Should parents eat food from the girl's house or not?
SPRITUALITY
प्रश्न - माता-पिताको कन्या के घरका अन्न खाना चाहिये या नहीं ?
उत्तर- माता-पिता ने कन्या का दान कर दिया तो वह उस घरकी मालकिन बन गयी, अब माता-पिताको उसके घर का अन्न लेनेका अधिकार नहीं है। दान की हुई वस्तुपर दाता का अधिकार नहीं रहता। हमने एक कथा सुनी है। बरसाने का एक चमार सुबह किसी काम के लिये नन्दगाँव गया। वहीं दोपहर हो गयी। कुछ खाया-पीया नहीं था। प्यास लगी थी, पर बेटी के गाँवका जल कैसे पीया जाय ? * क्योंकि हमारे वृषभानुजी ने यहाँ कन्या दी है-ऐसा सोचकर उसने वहाँका जल नहीं पीया और बरसानेके लिये चल दिया। चलते-चलते वह प्यासके कारण रास्तेमें गिर पड़ा। उस समय राधाजी उस चमारकी कन्याका रूप धारण करके उसके पास आयीं और बोलीं कि पिताजी ! मैं आपके लिये जल लायी हूँ, पी लो। चमार ने कहा कि बेटी! मैं अभी नन्दगाँवकी सीमामें हूँ; अतः मैं यहाँका पानी नहीं पी सकता। राधाजीने कहा कि पिताजी ! मैं तो बरसानेका जल लायी हूँ। उसने वह जल पी लिया और कहा कि बेटी ! अब तुम जाओ, मैं आता हूँ। राधाजी चली गयीं। चमार अपने घर पहुँचा तो उसने अपनी बेटीको गोदमें लेकर कहा कि बेटी! तुमने जल पिलाकर मेरे प्राण बचा लिये! अगर तुम जल लेकर नहीं आती तो मेरे प्राण चले जाते। कन्याने कहा कि पिताजी ! मैं तो जल लेकर आयी ही नहीं थी! तब चमार समझ गया कि राधाजी ही मेरी कन्याका रूप धारण करके जल पिलाने आयी थीं। तात्पर्य है कि पहले लोग अपनी बेटीके गाँवका भी अन्न-जल नहीं लेते थे।
जब तक कन्याकी सन्तान न हो जाय, तबतक उसके घरका अन्न-जल नहीं लेना चाहिये। परंतु कन्याकी सन्तान होनेपर माता-पिता कन्याके यहाँका अन्न-जल ले सकते हैं। कारण कि दामादने केवल पितृऋणसे मुक्त होनेके लिये ही दूसरेकी कन्या स्वीकार की है। उससे सन्तान होनेपर दामाद पितृऋणसे मुक्त हो जाता है; अतः कन्यापर माँ-बापका अधिकार हो जाता है, तभी तो दौहित्र अपने नाना-नानीका श्राद्ध-तर्पण करता है, उनको पिण्ड-पानी देता है और परलोकमें नाना-नानी अपने दौहित्रके द्वारा किया हुआ श्राद्ध-तर्पण, पिण्ड-पानी स्वीकार भी करते हैं। यदि कन्याकी सन्तान पुत्री हो, पुत्र न हो, तो भी उसके घरका अन्न-जल ले सकते हैं; क्योंकि सन्तान होनेसे कन्यादान सफल हो जाता है।
* बरसानेके लोग राधाजीको अपनी कन्या मानते हैं।