प्रश्न-गर्भस्त्राव, गर्भपात और भ्रूण हत्या-इन तीनों में क्या अंतर है ?
Question: What is the difference between miscarriage, abortion and foeticide?
महापाप से बचो AVOD THE BIGOTRY
प्रश्न-गर्भस्त्राव, गर्भपात और भ्रूण हत्या-इन तीनों में क्या अंतर है ?
उत्तर-गर्भ में जीव का शरीर बनना शुरू होने से पहले ही रज-वीर्य गिर जाए तो उसको ‘गर्भस्त्राव‘ कहते है। जब गर्भ में शरीर बनना शुरू हो जाए तब उसको गिरा देना, ‘गर्भपात‘ कहलाता है। जब गर्भ में स्थित जीव के हाथ, पांव, मस्तक आदि अंग निकल आते हैं और यह बच्चा है या बच्ची-इसका भेद स्पष्ट होने लगता है, तब उसको गिरा देना ‘भ्रूण हत्या‘ कहलाती है। गर्भस्त्राव, गर्भपात और भ्रूण हत्या-इन तीनों को किसी भी तरह से करने पर महापाप लगता है। हां, अपने-आप गर्भ गिर जाय तो उसका पाप नहीं लगता। जैसे, संसार में बहुत से जीव अपने-आप मर जाते हैं पर उसका पाप हमें नहीं लगता; क्योंकि हम उनको मारा भी नहीं और मारने की इच्छा भी नहीं की।
यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक "गृहस्थ कैसे रहे ?" से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुखदास जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.
स्वामी रामसुखदास जी का जन्म वि.सं.१९६० (ई.स.१९०४) में राजस्थानके नागौर जिलेके छोटेसे गाँवमें हुआ था और उनकी माताजीने ४ वर्षकी अवस्थामें ही उनको सन्तोंकी शरणमें दे दिया था, आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर; द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.२०६२ (दि. ३.७.२००५) ब्राह्ममुहूर्तमें भगवद्-धाम पधारें । सन्त कभी अपनेको शरीर मानते ही नहीं, शरीर सदा मृत्युमें रहता है और मैं सदा अमरत्वमें रहता हूँ‒यह उनका अनुभव होता है । वे सदा अपने कल्याणकारी प्रवचन द्वारा सदा हमारे साथ हैं । सन्तोंका जीवन उनके विचार ही होते हैं ।